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बिजनेस कांग्लोमरेट फंड भारत के व्यापारिक घरानों में हिस्सेदारी खरीदने का एक बेहतर और किफायती तरीका हो सकते हैं. (AI Image)
Business Conglomerate Funds : क्या आप लंबे समय से भारत के बड़े कारोबारी घरानों जैसे टाटा, बिड़ला, बजाज, महिंद्रा या गोदरेज के बिजनेस के बारे में सुनते आ रहे हैं? या क्या आप आजादी के बाद के बड़े कारोबारी परिवारों जैसे जिंदल, अडानी या अंबानी को फॉलो करते हैं और उनके बड़े बिजनेस साम्राज्य में हिस्सेदारी खरीदने का सपना देखते हैं? अगर हां तो अब म्यूचुअल फंड (mutual funds) की एक यूनिक कैटेगरी आपका सपना पूरा कर सकती है. ये कैटेगरी है बिजनेस कांग्लोमरेट फंड्स.
असल में ज्यादातर आम निवेशकों के लिए इन बड़े कांग्लोमरेट (गठबंधन कंपनियों) की सभी ग्रुप कंपनियों के शेयर खरीद पाना आसान नहीं होता. हर ग्रुप की इतनी सारी लिस्टेड कंपनियों में निवेश करने के लिए काफी बड़ी रकम की जरूरत होती है. इसके अलावा यह चुनना भी मुश्किल है कि उनकी कई अलग-अलग इंडस्ट्रीज में से कौन-सा बिजनेस आगे जाकर सबसे ज्यादा सफल होगा. यह सब मिलकर इस काम को बहुत मुश्किल बना देता है.
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बिजनेस कांग्लोमरेट फंड है समाधान
बड़ौदा बीएनपी परिबा म्यूचुअल फंड में सीनियर फंड मैनेजर - इक्विटी, जितेंद्र श्रीराम का कहना है कि बिजनेस कांग्लोमरेट फंड भारत के सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में हिस्सेदारी खरीदने का एक बेहतर और किफायती तरीका हो सकते हैं. ये म्यूचुअल फंड योजनाएं उन व्यापारिक समूहों (कॉन्ग्लोमरेट्स) में निवेश करती हैं, जिनका कारोबार अर्थव्यवस्था के कई अलग-अलग सेक्टर में फैला होता है.
अनुभवी फंड मैनेजर और रिसर्च एनालिस्ट द्वारा प्रबंधित, ये फंड किसी भी व्यापारिक समूह की लिस्टेड कंपनियों में से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों को चुनते हैं. इसका नतीजा एक ऐसा केंद्रित लेकिन डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो होता है, ताकि भारत के बड़े कॉरपोरेट घरानों की वेल्थ क्रिएशन क्षमता का लाभ आम निवेशकों को भी मिल सके, और यह सब एक किफायती शुरुआती निवेश के साथ संभव है.
म्यूचुअल फंड्स की यह कैटेगरी क्यों हो रही पॉपुलर?
इसकी बड़ी वजह है डिमर्जर (कंपनी को हिस्सों में बांटना) और रीस्ट्रक्चरिंग (पुनर्गठन) से होने वाला मूल्य बढ़ना. जब बड़ी कंपनियां अपने अलग-अलग बिजनेस यूनिट को अलग से लिस्ट कराती हैं या बेचती हैं, तो अक्सर अलग अलग हिस्सों का वैल्यूएशन, पूरी कंपनी से भी ज्यादा हो जाता है.
हाल के कुछ उदाहरण :
आईटीसी ने अपने होटल कारोबार को अलग कंपनी में डिमर्ज किया.
रेमंड ने अपनी लाइफस्टाइल डिविजन को अलग किया.
हिंदुस्तान यूनिलीवर ने क्वालिटी वॉल्स आइसक्रीम बिजनेस को अलग किया.
बिजनेस में तेजी आने की संभावना
परिवारिक समझौतों और रणनीतिक बंटवारे की वजह से कारोबारों में मालिकाना हक और साफ हो गया है, बिजनेस पर ज्यादा फोकस हुआ है और ग्रोथ की रफ्तार भी तेज हुई है. इसके अलावा, गैर-जरूरी संपत्तियां बेचकर कंपनियों के पास कैश आता है, जिसे वे नए और तेजी से बढ़ते सेक्टर्स जैसे रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म में निवेश करने के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं.
इनमें से कुछ ट्रेंड मल्टीनेशनल कंपनियों (MNCs) के ग्लोबल कॉर्पोरेट फैसलों से भी प्रेरित हो रहे हैं. जैसे : जनरल इलेक्ट्रिक (GE) ने अपने बिजनेस को 3 हिस्सों में बांटा. हनीवेल ने अपने बंटवारे की घोषणा की. BASF इंडिया का बंटवारा भी यही दिखाता है कि पहले कारोबार को विकसित करो, फिर बढ़ाओ और उसके बाद अलग करके निवेशकों को मौका दो कि वे अपनी पसंद का हिस्सा चुन सकें.
निवेशकों के लिए प्रमुख फायदे
जाने माने ब्रांड तक पहुंच : भारत की सबसे सम्मानित और पहचानी जाने वाली कंपनियों में हिस्सा पाने का मौका.
सेक्टर्स की विविधता : एक ही निवेश से कई अलग-अलग इंडस्ट्री में एक्सपोजर.
प्रोफेशनल मैनेजमेंट : विशेषज्ञ हर ग्रुप में से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले बिजनेस चुनते हैं.
विकास और पुनर्गठन में भागीदारी – कंपनियों के विस्तार और वैल्यू-अनलॉकिंग, दोनों से लाभ.
निष्कर्ष
बिजनेस कांग्लोमरेट फंड्स छोटे निवेशकों को बिना किसी परेशानी या बिना बड़ी लागत के, भारत के सबसे बड़े और डाइवर्सिफाइड बिजनेस घरानों में निवेश करने का आसान मौका देते हैं, वह भी बिना किसी परेशानी और बिना अलग-अलग शेयर खरीदने का खर्च उठाए.
प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट की मदद से आप इन बड़ी कंपनियों की ग्रोथ, पुनर्गठन और नई-नई इनोवेशन की यात्रा में शामिल हो सकते हैं, और संभावित रूप से अपने पोर्टफोलियो को उनके साथ बढ़ते हुए देख सकते हैं.