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How Liquid Funds Work: लिक्विड फंड का मुख्य उद्देश्य हाई लेवल की लिक्विडिटी और कैपिटल की सुरक्षा प्रदान करना है. (Pixabay)
Liquid Funds Investment: शेयर बाजार में बीते दिनों आई रिकॉर्ड तेजी देखकर म्यूचुअल फंड निवेशक फिलहाल सतर्क हुए हैं. उनका फोकस इक्विटी से डेट की ओर चला गया है. जनवरी 2024 में डेट फंडों में कुल 76,468.96 करोड़ का इनफ्लो हुआ है, जो दिसंबर 2023 में 75,559.93 करोड़ के आउटफ्लो के मुकाबले बड़ा बदलाव है. एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) के लेटेस्ट डाटा के मुताबिक डेट कैटेगरी में भी लिक्विड फंड लीडर साबित हुए हैं. इंडस्ट्री से जुड़े जानकार इसके पीछे 2 बड़े रीजन गिना रहे हैं. एक तो आगे रेट कट का सिनैरियो बन रहा है, वहीं वह अपना पैसा तब तक के लिए शॉर्ट टर्म स्कीम्स में पार्क कर रहे हैं, जबतक कि इक्विटी मार्केट करेक्ट होकर निवेश का अवसर प्रदान करे.
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किस कैटेगरी में कितना निवेश
एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया के लेटेस्ट आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2024 में सबसे ज्यादा 49,467.67 करोड़ का इनफ्लो लिक्विड फंड में आया है. जबकि इस सेगमेंट में दिसंबर 2023 में 9675.27 करोड़ का आउटफ्लो दिखा था. मनी मार्केट में जनवरी 2024 के दौरान 10,651.05 करोड़ का इनफ्लो हुआ, जबकि गिल्ट फंड में करीब 500 करोड़ का इनफ्लो हुआ. लिक्विड फंड और ओवरनाइट फंड जोड़ दें तो कुल इनफ्लो 58,463 करोड़ का रहा है. यानी ओवरनाइट फंड में 8995 करोड़ का इनफ्लो हुआ.
अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड में 2937 करोड़ और लो ड्यूरेशन फंडों में 2116 करोड़ का इनफ्लो आया. शॉर्ट ड्यूरेशन और मीडियम ड्यूरेशन फंडों में 223 करोड़ और 211 करोड़ का आउटफ्लो हुआ. डायनमिक बॉन्ड फंड में 63 करोड़ का आउटफ्लो, जबकि कॉरपोरेट बॉन्ड फंड में 1301 करोड़ का इनफ्लो आया.
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डेट स्कीम में क्यों बढ़ रहा है निवेश
बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का कहना है कि लिक्विड फंड में भारी निवेश आने का कारण यह है कि निवेशक अपना पैसा शॉर्ट टर्म के लिए बैंक की बजाए इस डेट फंड कैटेगरी में निवेश कर रहे हैं. आल में अभी इक्विटी मार्केट रिकॉर्ड हाई के आस पास ही बना हुआ है. बड़ी रैली के बाद निवेशकों को अभी बाजार कुछ महंगा दिख रहा है और उन्हें इक्विटी मार्केट में करेक्शन का इंतजार है. बाजार में करेक्शन आने पर निवेशक अपना पैसा लिक्विड फंड से इक्विटी की ओर शिफ्ट करेंगे.
डेट स्कीम में निवेश बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण यह है कि आगे रेट कट का माहौल बन रहा है. ऐसे में ब्याज दरें नीचे आएंगी. वहीं रेट कट शुरू होने के बाद जिन्होंने लंबी अवधि के डेट या बॉन्ड में निवेश किया है, आगे उनकी वैल्यू बढ़ जाएगी. इस वजह से निवेशक अभी डेट स्कीम में पैसे लगा रहे हैं. इसके अलावा बेहतर इकोनॉमिक इंडीकेटर और स्थिर बाजार माहौल भी डेट विकल्पों में निवेश बढ़ने की वजह हैं.
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लिक्विड फंड कैसे करते हैं काम
लिक्विड फंड का मुख्य उद्देश्य निवेशकों को हाई लेवल की लिक्विडिटी यानी तरलता और उनके कैपिटल की सुरक्षा प्रदान करना है. इस वजह से फंड मैनेजर हाई रेट वाले डेट विकल्पों में निवेश करता है, जो सिर्फ 91 दिनों में मैच्योर होते हैं. आवंटित अनुपात फंड के निवेश उद्देश्य के अनुसार हैं. फंड मैनेजर यह सुनिश्चित करेगा कि पोर्टफोलियो की एवरेज मैच्योरिटी 3 महीने हो. इससे ब्याज दर में उतार-चढ़ाव के प्रति फंड के रिटर्न की सेंसिटिविटी कम हो जाती है और लिक्विड फंड में रिस्क कम हो जाता है.
फंड वैल्यू में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव का अनुभव नहीं होता है. इसके अतिरिक्त, अंडरलाइंग सिक्योरिटीज की मैच्योरिटी पोर्टफोलियो की मैच्योरिटी से मेल खाती है. यह अधिक रिटर्न देने में मदद करता है. लिक्विड फंड आपके पास बचत खाते में या घर में पड़ी रकम को किसी सेफ स्कीम में लगातकर हाई रिटर्न पाने का एक बेहतरीन विकल्प है. ये कम जोखिम वाला विकल्प है, जो नियमित बचत बैंक खाते की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं. वहीं लिक्विड फंड में बैंकों के बचत खाते की तरह लिक्विडिटी भी मिलती है. इन फंडों में लॉक-इन अवधि नहीं होती है. आप लिक्विड फंड को नियमित बचत खाते के रूप में उपयोग कर सकते हैं और हाई रिटर्न अर्जित कर सकते हैं.
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डेट पर टैक्स के नियम
जब आप डेट फंड में निवेश करते हैं, तो आप कैपिटल गेंस कमाते हैं और उन पर टैक्स लगता है. टैक्सेशन की दर इस बात पर निर्भर करती है कि आप डेट फंड में कितने समय तक निवेशित रहते हैं. जिस अवधि तक आप निवेशित रहते हैं उसे होल्डिंग अवधि के रूप में जाना जाता है. लिक्विड फंड डेट फंडों का एक वर्ग है, इसलिए पहले 3 साल में हासिल गेंस को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (STCG) के रूप में जाना जाता है. 3 साल या उससे अधिक के बाद किए गए पूंजीगत लाभ को लॉन्ग् टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) के रूप में जाना जाता है. डेट फंड से प्राप्त STCG को आपकी कुल आय में जोड़ा जाता है और उसपर इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स लगाया जाता है. डेट फंडों से प्राप्त LTCG पर इंडेक्सेशन के बाद 20 फीसदी की समान दर से टैक्स लगता है. सभी म्यूचुअल फंडों द्वारा दिए गए डिविडेंड को आपकी कुल आय में जोड़ा जाता है और आपके स्लैब के आधार पर टैक्स लगाया जाता है.