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Mutual Funds : Direct vs Regular Plan : म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए डायरेक्ट प्लान बेहतर है या रेगुलर प्लान? (AI Generated Image)
Mutual Funds : Direct vs Regular Plan : म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों के सामने अक्सर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि उन्हें डायरेक्ट प्लान चुनना चाहिए या फिर रेगुलर प्लान. दोनों ही रास्ते एक ही स्कीम तक पहुंचाते हैं, लेकिन इनके बीच कुछ ऐसे फर्क हैं जो आपके रिटर्न और इनवेस्टमेंट से जुड़े तजुर्बे को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं. अगर आप निवेश में नए हैं तो शायद रेगुलर प्लान आपको आसान लगे, वहीं अनुभवी निवेशक डायरेक्ट प्लान से ज्यादा फायदा उठा सकते हैं. आइए समझते हैं कि डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड में तीन बड़े अंतर क्या हैं और इनके फायदे-नुकसान क्या हैं.
1. खर्च और रिटर्न का फर्क
सबसे बड़ा और अहम फर्क दोनों स्कीमों के खर्च यानी एक्सपेंस रेशियो में होता है. डायरेक्ट म्यूचुअल फंड सीधे एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) से खरीदे जाते हैं. इनमें किसी बिचौलिये या ब्रोकरेज की जरूरत नहीं होती. यही वजह है कि डायरेक्ट प्लान का एक्सपेंस रेशियो कम रहता है. आम तौर पर यह 0.5% से 1% के बीच ही होता है.
दूसरी तरफ रेगुलर म्यूचुअल फंड में डिस्ट्रीब्यूटर या ब्रोकर की फीस भी जुड़ जाती है. इस वजह से इनका एक्सपेंस रेशियो 1% से 2.5% तक जा सकता है. यह अंतर भले ही सुनने में छोटा लगे, लेकिन लंबे समय में कंपाउंडिंग की वजह से यह आपके रिटर्न को काफी कम कर देता है. यही कारण है कि डायरेक्ट प्लान लंबे समय में ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि आपकी जेब से फीस और कमीशन पर कम पैसा कटता है.
2. निवेश करने और उसे मैनेज करने का तरीका
डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड में अगला बड़ा फर्क इनमें निवेश करने और मैनेज करने के तरीके का फर्क है. डायरेक्ट प्लान आपको AMC की वेबसाइट, मोबाइल ऐप या कुछ ऑथराइज्ड प्लेटफॉर्म पर ही मिलते हैं. यहां निवेशक को इनवेस्टमेंट से जुड़े सारे ट्रांजैक्शन खुद ही संभालने पड़ते हैं.
वहीं रेगुलर प्लान में इन बातों की जिम्मेदारी काफी हद तक ब्रोकर या डिस्ट्रीब्यूटर संभालते हैं. वे न सिर्फ निवेश की प्रक्रिया से जुड़े पेपरवर्क और प्रोसेस को पूरा करना आसान बनाते हैं. इसलिए यह तरीका उन निवेशकों के लिए सुविधाजनक रहता है, जो नए हैं या इन चीजों के लिए समय नहीं निकाल पाते. हालांकि इस सुविधा के बदले आपको ज्यादा फीस चुकानी पड़ती है.
3. सलाहकार की भूमिका और निवेशक की जरूरत
तीसरा बड़ा अंतर इस बात से जुड़ा है कि आपको निवेश में कितनी सलाह और मदद चाहिए. अगर आप निवेश की दुनिया में नए हैं और म्यूचुअल फंड चुनने में कंफ्यूज हो जाते हैं, तो रेगुलर प्लान आपके लिए बेहतर हो सकता है. यहां आपको ब्रोकर या फाइनेंशियल एडवाइजर की सलाह मिलती है, जो आपकी जरूरत और रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से स्कीम चुनने में मदद कर सकते हैं.
दूसरी तरफ अगर आप मार्केट को अच्छी तरह समझते हैं, खुद रिसर्च कर सकते हैं और हर फैसला अपने हिसाब से लेना चाहते हैं, तो डायरेक्ट प्लान आपके लिए सही ऑप्शन है. इसमें आपको एक ही स्कीम में निवेश करने पर भी कम खर्च में ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना रहती है.
यह समझना जरूरी है कि डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड एक ही स्कीम में निवेश करते हैं, फर्क सिर्फ इनके खर्च, मैनेजमेंट और निवेश से जुड़ी सुविधा में है. डायरेक्ट प्लान उन निवेशकों के लिए सही हैं जो कम लागत में बेहतर रिटर्न चाहते हैं और निवेश से जुड़ी प्रॉसेस को खुद संभाल सकते हैं. वहीं रेगुलर प्लान उन लोगों के लिए बेहतर हैं जिन्हें निवेश की प्रक्रिया को आसान रखना है और प्रोफेशनल सपोर्ट की जरूरत महसूस होती है.
म्यूचुअल फंड के डायरेक्ट और रेगुलर प्लान में अंतर
म्यूचुअल फंड डायरेक्ट प्लान | म्यूचुअल फंड रेगुलर प्लान | |
एक्सपेंस रेशियो | कम, क्योंकि इसमें ब्रोकर/डिस्ट्रीब्यूटर का कमीशन नहीं जुड़ता | ज्यादा, क्योंकि इसमें कमीशन शामिल होता है |
रिटर्न | लंबे समय में ज्यादा रिटर्न, खर्च कम होने के कारण | रिटर्न थोड़ा कम, क्योंकि फीस और कमीशन कटता है |
निवेश का तरीका | सीधे AMC की वेबसाइट, ऐप या ऑथराइज्ड प्लेटफॉर्म से | ब्रोकर या डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए |
निवेश का मैनेजमेंट | निवेशक को खुद रिसर्च और मैनेजमेंट करना होता है | ब्रोकर/एडवाइजर से सलाह और सुविधा ले सकते हैं |
किसके लिए बेहतर | अनुभवी निवेशकों के लिए | नए निवेशकों के लिए |
(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, किसी स्कीम में निवेश की सलाह देना नहीं. निवेश का कोई भी फैसला अपने इनवेस्टमेंट एडवाइजर से सलाह-मशविरा करने के बाद ही करें)