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FD vs Debt Funds : एफडी पर मिलने वाला ब्याज घट रहा है, ऐसे में डेट फंड पहले से ज्यादा आकर्षक लग रहे हैं. (Image : Pixabay)
Fixed Deposit vs Debt Funds: रिस्क से दूर रहने वाले तमाम निवेशकों के बीच फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) अब भी सबसे लोकप्रिय इनवेस्टमेंट है. लेकिन ब्याज दरों में कटौती के दौर में इन पर मिलने वाला ब्याज लगातार घट रहा है. ऐसे में निवेशकों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि क्या उन्हें अब भी एफडी में पहले जितना ही निवेश बनाए रखना चाहिए या फिर अपनी कुछ जमापूंजी अब डेट म्यूचुअल फंड जैसे दूसरे विकल्पों में भी लगानी चाहिए? एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो साल में 250 से अधिक डेट फंड्स ने एफडी की तुलना में ज्यादा रिटर्न दिया है. ऐसे में निवेशकों को अपनी रणनीति को दोबारा सोचने की जरूरत महसूस हो सकती है.
डेट फंड्स और एफडी में क्या है बड़ा फर्क?
एफडी एक फिक्स रिटर्न देने वाला निवेश है, जहां रिस्क बहुत कम होता है. लेकिन फिलहाल इन पर मिलने वाली ब्याज दरें आमतौर पर 6 से 7 फीसदी के बीच ही रह गई हैं. मिसाल के तौर पर देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने हाल ही में एफडी की ब्याज दरों में 20 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है. जिसके बाद अब ये बैंक 2 से 3 साल की अवधि की एफडी पर केवल 6.7% तक ब्याज दे रहा है. दूसरी ओर, डेट फंड्स की अलग-अलग कैटेगरी में अधिकांश फंड्स का पिछले 3 साल का औसत सालाना रिटर्न इससे 2 से 3 फीसदी तक ज्यादा है. लेकिन डेट फंड्स पर मिलने वाला रिटर्न एफडी की तरह फिक्स नहीं होता और उसमें थोड़ा रिस्क भी रहता है, लेकिन ब्याज दरों में बदलाव का फायदा इन्हें मिल सकता है, जिससे इनमें बेहतर रिटर्न मिलने की गुंजाइश बनती है.
किस तरह के डेट फंड्स में करना चाहिए निवेश?
आपके लिए डेट फंड की कौन से कैटेगरी बेहतर है, यह आपके इनवेस्टमेंट होराइजन यानी निवेश की संभावित अवधि पर निर्भर है. अगर आप 1 से 3 साल के लिए निवेश करना चाहते हैं, तो शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स अच्छा विकल्प हो सकते हैं. वहीं अगर 3 से 5 साल के लिए निवेश करना है, तो मीडियम ड्यूरेशन फंड्स या डायनेमिक बॉन्ड फंड्स में पैसे लगाने पर विचार कर सकते हैं. जो निवेशक रिस्क से बचने के लिए सरकारी गारंटी वाले ऑप्शन चाहते हैं, उनके लिए गिल्ट फंड्स सुरक्षित विकल्प हो सकते हैं. अगर ब्याज दरें आगे चलकर और गिरती हैं, तो इन फंड्स से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना रहती है.
क्या होगी निवेश की सही रणनीति?
निवेशक अपने निवेश अवधि के अनुसार फंड चुनने के साथ ही साथ लैडरिंग स्ट्रैटेजी पर भी अमल कर सकते हैं. इस रणनीति के तहत अलग-अलग मैच्योरिटी वाले फंड्स में निवेश करके ब्याज दरों में होने वाले उतार-चढ़ावों के नफा-नुकसान और री-इन्वेस्टमेंट रिस्क को बैलेंस किया जा सकता है. साथ ही सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए निवेश करके भी संभावित उतार-चढ़ाव के असर को कम किया जा सकता है.
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निवेश से पहले किन बातों का रखें ध्यान?
निवेश करने से पहले अपने जोखिम लेने की क्षमता, निवेश का समय और लक्ष्य को जरूर समझें. अगर आप रिटायर्ड हैं या बहुत कम रिस्क लेने वाले निवेशक हैं, तो गिल्ट फंड्स या बैंकिंग और पीएसयू फंड्स बेहतर हो सकते हैं. वहीं, जो निवेशक इंटरेस्ट रेट साइकल के बारे में जानकारी रखते हैं, वे लंबे समय के लिए डायनेमिक या लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स में निवेश कर सकते हैं. हालांकि डेट फंड्स की NAV में उतार-चढ़ाव हो सकता है, इसलिए इसमें निवेश सोच-समझकर करें. साथ ही टैक्सेशन और एग्जिट लोड जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखें.
एफडी आज भी सुरक्षित निवेश का एक विकल्प है, लेकिन घटती ब्याज दरों के इस दौर में यह उतना आकर्षक नहीं रहा. डेट म्यूचुअल फंड्स, खासतौर पर शॉर्ट और मीडियम ड्यूरेशन फंड्स, मौजूदा माहौल में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. अगर सही रणनीति के साथ और रिस्क को समझते हुए निवेश किया जाए, तो डेट फंड्स और एफडी को मिलाकर बेहतर पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है.