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FD Rates : फिक्स्ड डिपॉजिट को आपने जिस ब्याज दर पर लॉक किया है, वही पूरे टेन्योर के लिए लागू रहेगा. (Pixabay)
Fixed Deposit Rates : हर निवेशक ऐसा नहीं होता है कि वह बाजार का रिस्क लेना चाहे. ऐसे कन्जर्वेटिव निवेशक हमेशा ऐसे फिक्स्ड इनकम विकल्पों की तलाश में रहते हैं, जहां रिटर्न बेहतर मिल सके. फिक्स्ड डिपॉजिट एक ऐसा ही निवेश का विकल्प है, जो आपकी जमा पूंजी पर बिना कोई असर डाले पूरे टेन्योर के दौरान पहले से तय ब्याज के अनुसार रिटर्न प्रदान करता है. एफडी की दरें अलग अलग बैंकों में अलग अलग हो सकती हैं.
अगर आपने अपने फाइनेंशियल प्लान के तहत एफडी में निवेश किया है, तो आपको यह जानकारी होगी कि फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरें हमेशा एक जैसी नहीं रहती हैं. बैंक या वित्तीय संस्थान एफडी की दरों में समय समय पर बदलाव (Bank FD Rates Revision) करते हैं. ये दरें कम या ज्यादा हो सकती हैं. सवाल यही उठता है कि इस फिक्स्ड इनकम के पॉपुलर विकल्प में दरें हमेशा फिक्स्ड क्यों नहीं होती हैं. इनमें क्यों संशोधन किया जाता है.
दरों में बदलाव का आपकी जमा पर होगा असर?
यहां एक बात जानना जरूरी है कि फिक्स्ड डिपॉजिट को आपने जिस ब्याज दर पर लॉक किया है, वही पूरे टेन्योर के लिए लागू रहेगा. यानी अगर आपने किसी बैंक में 5 साल की एफडी में 7 फीसदी सालाना ब्याज पर 1 लाख रुपये निवेश किया है. वहीं अगले साल उस बैंक ने एफडी रेट 7.25 फीसदी कर दिया तो भी आपको पहले से तय 7 फीसदी के हिसाब से रिटर्न मिलेगा. यानी एक बार एफडी लॉक कर दिया तो आगे दरों में बदलाव का चाहे बढ़े या घटे, कोई असर नहीं होगा. नई एफडी लेने पर ही बढ़ी ब्याज दर का फायदा उठा सकेंगे.
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1. रेपो रेट में बदलाव एक बड़ा कारण
रेपो दर वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक अन्य कमर्शियल बैंकों को लोन देते हैं. आरबीआई हर तिमाही में रेपो दरों (Repo Rate) का आकलन करता है और अलग अलग कारणों से कभी-कभी इन दरों में संशोधन कर सकता है. रेपो रेट बढ़ने पर बैंक होमलोन या अन्य लोन बढ़ा देते हैं. इसलिए बदले में वे एफडी रेट में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं. इसी तरह रेपो रेट घटने पर एफडी रेट कम हो सकता है.
इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि बढ़ते इनफ्लेशन की अवधि के दौरान आरबीआई उधार को सीमित करने के लिए रेपो दरों में बढ़ोतरी करता है. इसके परिणामस्वरूप, अर्थव्यवस्था में कैश की सप्लाई घट सकती है और महंगाई कंट्रोल होती है. दूसरी ओर, जब सरकार ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए अर्थव्यवस्था में कैश सप्लाई बढ़ाना चाहती है, तो रेपो रेट कम कर दी जाती हैं.
रेपो दरों में बढ़ोतरी से बैंक एफडी दरों में बढ़ोतरी करते हैं, जिससे डिपॉजिटर्स बैंक जमा की ओर आकर्षित हों. बैंकों के लिए भी कैश क्राइसिस की समस्या कम होती है.
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2. लिक्विडिटी
सिस्टम में लिक्विडिटी की समस्या (Liquidity Crisis) होती है तो वित्तीय संस्थाओं को अपने कैश फ्लो की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रिटेल एफडी पर निर्भर रहने की आवश्यकता हो सकती है. ऐसी अवधि के दौरान, बैंक या वित्तीय संस्थान अधिक डिपॉजिट आकर्षित करने के लिए एफडी दरों में बढ़ोतरी कर सकते हैं. दूसरी ओर, पर्याप्त लिक्विडिटी होने पर दरें घटा भी सकते हैं.
3. क्रेडिट डिमांड
क्रेडिट की सामान्य मांग (Credit Demand) भी एफडी ब्याज दरों को प्रभावित करती है. क्रेडिट की अधिक मांग आम तौर पर एफडी दरों में बढ़ोतरी का कारण बन सकती है. लेकिन जब क्रेडिट डिमांड गिरती है, तो बैंक एफडी दरों में कटौती कर सकते हैं.
4. कॉल मनी
बैंक सीआरआर और एसएलआर रिजर्व को पूरा करने के लिए एसेट और लायबिलिटी में असंतुलन को भरने के लिए कॉल मनी (Call Money) का सहारा लेते हैं, साथ ही लिक्विडिटी की मांग और आपूर्ति से अचानक फंड की आवश्यकता होती है जो कॉल मनी दरों को और प्रभावित करती है. जब लिक्विडिटी की स्थिति टाइट होती है तो कॉल मनी बढ़ जाती है, जिससे जमा दरें प्रभावित होती हैं.
5. फंड लागत कम करना
जब फंड लागत गिरती है तो बैंक ब्याज दरों में कटौती करते हैं. भले ही ब्याज दरें अधिक हों, आधार दरों में संशोधन होता है, जो रिटेल लोन पर आधारित होते हैं. इसलिए, उच्च लागत वाली जमा दरों में कमी की जाती है.