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Gold: यूरो को पछाड़कर सोना बना दूसरा सबसे बड़ा फॉरेक्स एसेट्स, अब आगे क्या?

Gold overtakes Euro: यूरोपीय सेंट्रल बैंक की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि सोना, यूरो को पछाड़कर केंद्रीय बैंकों के लिए दूसरी सबसे बड़ी फॉरेक्स एक्सचेंज रिजर्व एसेट्स बन गया है.

Gold overtakes Euro: यूरोपीय सेंट्रल बैंक की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि सोना, यूरो को पछाड़कर केंद्रीय बैंकों के लिए दूसरी सबसे बड़ी फॉरेक्स एक्सचेंज रिजर्व एसेट्स बन गया है.

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FE Hindi Desk
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Gold Surpasses Euro: पिछले कई सालों में सोने ने केंद्रीय बैंकों का बहुत ध्यान आकर्षित किया है. (Image: Reuters)

Gold overtakes Euro as world’s second largest forex reserve asset: यूरोपियन सेंट्रल बैंक की एक हालिया रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया है कि अब सोना यूरो को पीछे छोड़कर दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के लिए दूसरी सबसे बड़ी फॉरेक्स एक्सचेंज रिजर्व एसेट्स बन गया है. यह सुनकर शायद कुछ लोगों को हैरानी हो, लेकिन सच्चाई यह है कि बीते कई सालों से केंद्रीय बैंक सोने की ओर रुख कर रहे हैं. यह तो होना ही था कि कागजी करंसी की बजाय सोने को तवज्जो दी जाए. हालांकि यह बदलाव जितना तयशुदा लगता है, उतना ही यह चौंकाने वाला भी है और इसके मायने काफी गहरे हैं.

अगर ध्यान से देखें तो डॉलर का हिस्सा अब विदेशी मुद्रा भंडारों में घटता जा रहा है. फिर भी यह अब भी कुल रिजर्व का 46% हिस्सा है. दूसरी ओर, सोना अब 20% के स्तर को छू चुका है, जबकि यूरो सिर्फ 16% पर सिमट गया है. इसका सीधा मतलब है कि अब केंद्रीय बैंक डॉलर और यूरो जैसे करेंसी बेस्ड भंडार की बजाय सोने पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं.

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अब सवाल उठता है कि क्या वाकई बैंकों ने इतना सोना खरीदा है कि फर्क दिखने लगा है? जवाब है - बिल्कुल. खासतौर पर हाल के तीन सालों में यानी 2022, 2023 और 2024 में हर साल केंद्रीय बैंकों ने 1,000 टन से भी ज्यादा सोना खरीदा है. जबकि इससे पहले के दशक में यह औसत 400 से 500 टन के बीच था.

दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के पास अब लगभग 36,000 टन सोना है. यह आंकड़ा 1965 में ब्रेटन वुड्स दौर में बने 38,000 टन के ऑल टाइम हाई के बेहद करीब है. इनमें सबसे ज्यादा सोना अमेरिका के पास है. करीब 8,133 टन. 2025 की पहली तिमाही में अमेरिका ने नया सोना नहीं खरीदा. वहीं भारत के पास दिसंबर 2024 तक 876.18 टन सोना था, जिसमें पहली तिमाही 2025 में 3.42 टन जोड़ा गया और अब यह 879.60 टन तक पहुंच चुका है.

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मजे की बात ये है कि केंद्रीय बैंक अभी भी रुकने के मूड में नहीं हैं. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के ताज़ा सर्वे के मुताबिक 95% केंद्रीय बैंकों का मानना है कि अगले 12 महीनों में वे अपनी सोने की होल्डिंग और बढ़ाएंगे. इनमें से 43% तो पूरी तरह आश्वस्त हैं कि यह ज़रूरत और भी तेजी से बढ़ेगी.

अब ये बात भी ध्यान देने लायक है कि केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने को रिज़र्व के रूप में रखना कोई नई बात नहीं है. लेकिन हाल के दिनों में उन्होंने सोने को लेकर पहले से ज़्यादा भरोसा दिखाया है. वजह साफ है - सोना हमेशा से ही आर्थिक अनिश्चितता और संकट के समय एक सेफ हेवन यानी सुरक्षित पनाहगाह की तरह काम करता आया है. जब वैश्विक स्तर पर युद्ध, तनाव या मुद्राओं की स्थिति डगमगाती है, तो सोना एक भरोसेमंद विकल्प के तौर पर सामने आता है. IMF के अनुसार, भले ही डॉलर अभी भी सबसे बड़ी वैश्विक मुद्रा है, लेकिन इसका वर्चस्व धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा है.

अब जब हम पीछे मुड़कर देखें तो लगता है कि 2022 में जो कदम केंद्रीय बैंकों ने उठाया, वह एक सोची-समझी फाइनेंशियल चाल थी. हकीकत में इसका पूरा असर आने वाले वर्षों में दिखेगा.

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फिलहाल अगर सोने की कीमतों की बात करें, तो यह आज 3,350 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच चुका है, जो अप्रैल 22 को बनाए गए 3,500 डॉलर के रिकॉर्ड से महज 4% नीचे है. अक्टूबर 2022 में जब यह रैली शुरू हुई थी, तब कीमत करीब 1,500 डॉलर थी. यानी अब तक 120% की जोरदार उछाल आ चुकी है. हालांकि जानकारों का कहना है कि इतनी तेज़ी के बाद अब सोना थोड़ा थक चुका है, और अगर कोई नया बड़ा कारण सामने नहीं आता तो इसमें कुछ गिरावट या मुनाफावसूली देखने को मिल सकती है.

2023 और 2024 में सोने ने हर साल 20% से ज़्यादा रिटर्न दिया. 2025 में अब तक यह 27% ऊपर चल रहा है. इस बार की तेजी की वजह रही ट्रंप के टैरिफ्स, देशों के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ने वाला दबाव. 2026 की दूसरी छमाही में जब दूसरे देशों की जवाबी टैरिफ लागू होंगे, तब स्थिति क्या मोड़ लेगी, यह देखना बाकी है.

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वहीं दूसरी ओर, भू-राजनीतिक माहौल भी किसी भी वक्त विस्फोटक रूप ले सकता है. इज़राइल और ईरान के बीच का संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा. अगर अमेरिका इस संघर्ष में सीधे शामिल होता है, तो इसका असर सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ सकता है. ऐसे में इतिहास यही कहता है कि एकमात्र संपत्ति जो ऐसी स्थितियों में टिक पाई है - वो है सोना.

तो अब सबसे अहम सवाल - इससे आम निवेशक क्या सीख ले?

लगभग सभी फाइनेंशियल प्लानर मानते हैं कि हर आम निवेशक को अपने पोर्टफोलियो का करीब 10% हिस्सा सोने में रखना चाहिए. लेकिन अब जब सोना इतनी ऊंचाई पर है, तो क्या अभी निवेश शुरू करना ठीक रहेगा?

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इसका जवाब भी उतना ही आसान है - अगर आपका फाइनेंशियल लक्ष्य अभी कुछ साल दूर है, तो आप सोने में नियमित और धीरे-धीरे निवेश (SIP) करना शुरू कर सकते हैं. हो सकता है बीच में दाम कुछ नीचे जाएं, जैसा कि हर एसेट क्लास में होता है. लेकिन अगर आने वाले वक्त में अनिश्चितता बनी रहती है, तो लंबी अवधि में सोना आपके निवेश के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच साबित होगा.

(Article by Sunil Dhawan)

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