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2025 में सेंट्रल बैंकों की गोल्ड खरीद 1,000 टन से कम हो सकती है. इससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या उनके नजरिए में बदलाव आ रहा है. (Image: Reuters)
Is the Gold Boom Over? Central banks gold demand shows signs of cooling: 2022 से गोल्ड की कीमतों में तेजी बनी हुई है और इसकी सबसे ज्यादा डिमांड सेंट्रल बैंकों से आ रही है, जो लगातार बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहे हैं. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने 2022 में 1,082 टन, 2023 में 1,037 टन और 2024 में रिकॉर्ड 1,180 टन सोना खरीदा. जबकि 2020 और 2021 में कुल मिलाकर यह आंकड़ा 1,000 टन से भी कम था, जिससे साफ है कि बीते तीन सालों में सेंट्रल बैंकों की गोल्ड बाइंग में जबरदस्त उछाल आया है.
आंकड़ों से साफ जाहिर है कि जैसे-जैसे सेंट्रल बैंकों ने सोना खरीदना शुरू किया, वैसे-वैसे इसकी डिमांड बढ़ी और दाम भी तेजी से उछले. जुलाई 2022 में जहां गोल्ड की कीमत 1,730 यूएस डॉलर प्रति औंस थी, वहीं जुलाई 2025 में यह बढ़कर 3,330 यूएस डॉलर हो गई. यानी सिर्फ तीन साल में 90% से ज्यादा का जबरदस्त रिटर्न मिला. इतना ही नहीं, गोल्ड की मांग में तेजी का असर सेंट्रल बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी पड़ा है. अब उनके रिजर्व में गोल्ड की हिस्सेदारी 20% हो गई है, जो डॉलर की 46% हिस्सेदारी के बाद दूसरा सबसे बड़ा एसेट बन चुका है, जबकि यूरो की हिस्सेदारी गिरकर 16% पर आ गई है.
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क्या सेंट्रल बैंक अभी भी खरीद रहे हैं सोना?
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के आंकड़ों के मुताबिक, कैलेंडर ईयर 2025 की पहली 2 तिमाहियों में सेंट्रल बैंकों की सोना खरीदने की रफ्तार कुछ धीमी हुई है. पहली तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2025 में 244 टन और अप्रैल-जून 2025 में 166 टन सोना खरीदा गया. कैलेंडर ईयर 2025 की दूसरी तिमाही यानी अप्रैल-जून 2025 में नेशनल बैंक ऑफ पोलैंड ने एक बार फिर सबसे ज्यादा खरीदारी की, साथ ही अजरबैजान, तुर्की, कजाखिस्तान और चीन जैसे देशों ने भी अच्छी-खासी खरीदारी की.
मेटल्स फोकस, जो कि एक जानी-मानी स्वतंत्र प्रेशियस मेटल्स रिसर्च फर्म है, उसका अनुमान है कि 2025 के अंत तक सेंट्रल बैंक कुल खरीदारी में करीब 8% की गिरावट दिखा सकते हैं, लेकिन फिर भी साल के अंत तक लगभग 1,000 टन सोना खरीदने का अनुमान है. हालांकि कुछ अन्य अनुमानों के मुताबिक, सेंट्रल बैंक 2025 का साल 1,000 टन से भी कम सोने की कुल खरीदारी के साथ खत्म कर सकते हैं.
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2025 की तीसरी तिमाही में खरीदारी
2025 की तीसरी तिमाही में खरीदारी की बात करें तो 1 जुलाई से अब तक गोल्ड की कीमतें एक सीमित दायरे में ही घूम रही हैं. ऐसे में सेंट्रल बैंकों के पास यह एक मौका हो सकता है कि वे और सोना खरीद सकें.
लेकिन क्या उनकी दिलचस्पी अब भी बनी हुई है? वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के Central Bank Gold Reserves Survey 2025 के मुताबिक, 43% सेंट्रल बैंकर अगले 12 महीनों में अपनी गोल्ड रिज़र्व बढ़ाने की योजना बना रहे हैं.
अब यहां एक ट्विस्ट है – कई सरकारें अपनी कुल गोल्ड खरीद का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही सार्वजनिक करती हैं. बाकी की ज़्यादातर खरीदारी गोपनीय तरीके से की जाती है और उसकी रिपोर्टिंग नहीं होती.
आज भारत में सोने की कीमत 98,350 रुपये प्रति 10 ग्राम है, जो दो महीने पहले के स्तर के करीब ही बनी हुई है.
सहारा या रुकावट?
लेकिन अब लगता है कि गोल्ड की रफ्तार थम सी गई है. अप्रैल के बाद से वो सारे पॉजिटिव फैक्टर (tailwinds), जो सोने की मांग को बढ़ा रहे थे, अब धीरे-धीरे कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. ट्रंप की टैरिफ डील्स (शुल्क समझौते) अब धीरे-धीरे साफ तौर पर सामने आ रही हैं, जिससे अनिश्चितता का माहौल कुछ हट रहा है. साथ ही, डॉलर ने भी मज़बूती दिखानी शुरू कर दी है – जो पहले 10% गिर गया था, उसने अब एक महीने में 3% की बढ़त बना ली है.
अमेरिका के फिस्कल नंबर (राजकोषीय आंकड़े) और भारी कर्ज का बोझ अभी भी बड़ी चिंता बने हुए हैं, जो डॉलर की दुनिया की रिज़र्व करेंसी के तौर पर स्थिति को खतरे में डालते हैं.
आर्थिक चिंताएं और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ द्वारा अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को Aaa से घटाकर Aa1 करना, अभी भी सोने की कीमतों को ऊपर बनाए रखने वाले सबसे बड़े सहारा (tailwind) हैं. लेकिन अगर ये फैक्टर धीरे-धीरे खत्म होने लगे और भू-राजनीतिक माहौल (geopolitical scenario) बेहतर हो जाए, तो गोल्ड की कीमतों में तेज़ गिरावट आ सकती है. ऐसे में 10% से 15% तक का करेक्शन भी हो सकता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
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Gold Outlook: आगे कैसा रहेगा रुख
अप्रैल 2025 तक सेंट्रल बैंकों के पास अब आधिकारिक तौर पर कुल 36,305 टन सोना मौजूद है. सोशल मीडिया पर एक आम निवेशक सोच देखने को मिलती है – "सेंट्रल बैंकों को अर्थव्यवस्था और डॉलर को लेकर कुछ ऐसा पता है, जो आम लोगों को नहीं पता."
अगर ये बात सही है, तो फिर 2025 की पहली और दूसरी तिमाही में उनकी धीमी खरीदारी इस ओर भी इशारा करती है कि आने वाले समय में शायद अर्थव्यवस्था बेहतर हो और सोने के लिए माहौल थोड़ा कमजोर.
लेकिन जब तक ज़मीन पर हालात नहीं बदलते और दुनिया शांति व विकास आधारित रिकवरी की ओर नहीं बढ़ती, तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी और यही असमंजस गोल्ड की मांग को ऊंचा बनाए रखेगा.
(Credit : Sunil Dhawan)