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How to invest in Gold : एसजीबी को सोने में निवेश करने के सबसे बेहतर तरीकों में माना जाता है. (Image : Pixabay)
Benefits of investing in Sovereign Gold Bonds Scheme: अगर आप सोने में निवेश करना चाहते हैं, तो इसका सबसे बेहतर और टैक्स-एफिशिएंट तरीका रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाने वाले सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) में इनवेस्ट करना हो सकता है. एसजीबी ऐसा इकलौता तरीका है, जो आपको न सिर्फ गोल्ड में पैसे लगाकर उसकी कीमत में होने वाली बढ़ोतरी से मुनाफा कमाने का मौका देता है, बल्कि आपको अपनी पूंजी पर सालाना 2.5 फीसदी की दर से ब्याज भी मिलता है. इतना ही नहीं, अगर आप एसजीबी को मैच्योरिटी तक रखते हैं, तो उस पर होने वाला कैपिटल गेन्स यानी पूंजीगत लाभ पूरी तरह से टैक्स-फ्री है. और जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पर सरकारी गारंटी होने की वजह से इसमें किया गया निवेश पूरी तरह से सुरक्षित भी है.
SGB में कैसे करें निवेश
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश करने के दो तरीके हैं:
1. प्राइमरी इश्यू : प्राइमरी इश्यू के दौरान सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड सीधे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से खरीदे जाते हैं. आरबीआई नियमित रूप से साल में कई बार अलग-अलग किश्तों (tranches) में नए गोल्ड बॉन्ड इश्यू करता है. यानी सीधे रिजर्व बैंक से एसजीबी खरीदने के लिए आपको अगले इश्यू का इंतजार करना पड़ता है.
2. सेकेंडरी मार्केट : अगर आप एक प्राइमरी इश्यू से दूसरे इश्यू के बीच की अवधि के दौरान सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीदना चाहते हैं, तो इसे सेकेंडरी मार्केट से भी खरीद सकते हैं. दरअसल जो लोग पहले SGB खरीद चुके हैं, लेकिन उसे मैच्योरिटी तक अपने पास नहीं रखना चाहते हैं, वे स्टॉक्स की तरह ही अपनी होल्डिंग्स को बेचने के लिए एक्सचेंजों पर जाते हैं. जहां से दूसरे निवेशक उन्हें खरीद सकते हैं.
SGB का मैच्योरिटी पीरियड और सेकेंडरी मार्केट का डिस्काउंट
एसजीबी का मैच्योरिटी पीरियड 8 साल का होता है. लेकिन जो निवेशक इसे पूरे 8 साल तक अपने पास नहीं रखना चाहते या किसी जरूरत के कारण बीच में ही पैसे निकालना चाहते हैं, वे अपनी होल्डिंग्स को सेकेंडरी मार्केट में बेचते हैं. सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी की डिमांड कम होने के कारण इन्हें वहां डिस्काउंटेड प्राइस पर खरीदा जा सकता है. लेकिन इस बारे में कोई भी फैसला करने से पहले कई और बातों को समझना भी जरूरी है.
SGB के सेकेंडरी मार्केट से जुड़ी जरूरी बातें
सेकेंडरी मार्केट से SGB खरीदना थोड़ा जटिल हो सकता है. वहां अलग-अलग समय पर जारी किए गए बॉन्ड उपलब्ध होते हैं, जिनकी कीमतें और डिमांड की स्थिति अलग-अलग होती हैं. हो सकता है इनमें से कुछ बॉन्ड एक साल में मैच्योर होने वाले हों और कुछ 7 साल बाद. सोने की मौजूदा कीमतों और फ्यूचर आउटलुक का असर भी SGB की कीमतों पर पड़ता है. लिहाजा सेकेंडरी मार्केट से एसजीबी खरीदने का फैसला सिर्फ उनकी कीमत देखकर नहीं करना चाहिए. यहां इनकी खरीद-फरोख्त से जुड़ी सबसे बड़ी दिक्कत कम वॉल्यूम और अनिश्चित डिमांड है. मिसाल के तौर पर कई बार कुछ खास किस्तों में जारी हुए SGB कई दिनों या हफ़्तों तक जीरो वॉल्यूम दिखा सकते हैं. यह भी हो सकता है कि जब जिस मैच्योरिटी वाले बॉन्ड की यूनिट खरीदना चाहते हैं, वह बाजार में पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हों. इसके अलावा सेकेंडरी मार्केट से एसडीबी खरीदते समय ब्रोकरेज फीस को ध्यान में रखना भी जरूरी है, जिसकी वजह से आपके इनवेस्टमेंट पर नेट रिटर्न कम हो सकता है.
सेकेंडरी मार्केट से खरीदे गए SGB पर रिटर्न
सेकेंडरी मार्केट से एसजीबी खरीदने पर भी आपको उस पर 2.5 फीसदी ब्याज मिलता है. लेकिन ब्याज का कैलकुलेशन ओरिजिनल इश्यू प्राइस के आधार पर किया जाता है, न कि आपके खरीद मूल्य पर. उदाहरण के लिए अगर आपने 5,000 रुपये के इश्यू प्राइस वाले पुराने एसजीबी को 6,000 रुपये में खरीदा है, तो 2.5 फीसदी ब्याज का कैलकुलेशन 5,000 रुपये पर किया जाएगा, जो 125 रुपये होगा, न कि 6,000 रुपये के हिसाब से 150 रुपये. यानी आपको अपने निवेश पर असली यील्ड (actual yield) या रिटर्न निकालने के लिए 125 रुपये को 6,000 रुपये से भाग देना होगा और यह रिटर्न करीब 2.08 फीसदी आएगा.
क्या सेकेंडरी मार्केट से SGB खरीदना चाहिए
एसजीबी को सेकेंडरी मार्केट से खरीदने के बारे में भी उन्हीं निवेशकों को सोचना चाहिए, जो उन्हें मैच्योरिटी की बाकी बची अवधि तक होल्ड करना चाहते हैं. अगर सेकेंडरी मार्केट से खरीदने के बाद आप उन्हें बेचने के लिए भी दोबारा एक्सचेंज पर ही गए, तो आपको न सिर्फ दो बार ब्रोकरेज देना पड़ेगा, बल्कि डिमांड कम होने की हालत में बेचने में दिक्कत आएगी और कीमत भी अच्छी नहीं मिलेगी. इसके अलावा आपको टैक्स-फ्री मैच्योरिटी अमाउंट का लाभ भी नहीं मिलेगा. यही वजह है कि जो निवेशक सेकेंडरी मार्केट में एसजीबी खरीदने से जुड़े हर नफा-नुकसान को अच्छी तरह नहीं समझते, उन्हें इससे दूर रह कर आरबीआई के अगले इश्यू का इंतजार करना चाहिए.