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FD और ELSS टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट के दो पॉपुलर ऑप्शन हैं. सवाल ये है कि इनमें से बेहतर ऑप्शन क्या है? (Image : Pixabay)
Investment for Tax Saving : ELSS vs FD : नया वित्त वर्ष शुरू हुए डेढ़ महीने बीत चुके हैं. अगर आपने टैक्स सेविंग के लिए अपने सालाना निवेश की शुरुआत अब तक नहीं की है या इस बारे में फैसला नहीं कर पा रहे हैं, तो जल्द से जल्द ऐसा कर लें. बहुत से लोग टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट की फिक्र वित्त वर्ष के आखिरी महीनों में करते हैं, लेकिन ऐसा करना निवेश की सही रणनीति (Investment Strategy) नहीं है. एक तो लास्ट मिनट की हड़बड़ी में किए गए निवेश के फैसले कई बार सही नहीं होते और दूसरे आपके निवेश को ग्रोथ के लिए पूरा वक्त भी नहीं मिल पाता. इसलिए बेहतर यही होगा कि आप इस बारे में जल्द से जल्द फैसला लेकर नियमित निवेश करना शुरू कर दें.
एफडी और ELSS में किसे चुनें
टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट (Tax Saving Fix Deposit) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) देश के बहुत सारे रिटेल निवेशकों के बीच टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट के दो पॉपुलर ऑप्शन हैं. हालांकि ये दोनों बिलकुल अलग-अलग कैटेगरी के एसेट हैं, फिर भी इन दोनों में निवेश करके टैक्स पर छूट हासिल की जा सकती है. लेकिन सवाल ये है कि इनमें से बेहतर ऑप्शन (Tax Saving Scheme) क्या है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले दोनों की खूबियों को समझ लेते हैं.
ELSS और टैक्स सेविंग एफडी में एक जैसा क्या है?
आयकर कानून के सेक्शन 80C के तहत ओल्ड टैक्स रिजीम चुनने वाले टैक्स पेयर्स को एक वित्त वर्ष के दौरान मैक्सिमम 1.5 लाख रुपये तक के इनवेस्टमेंट पर आयकर में छूट मिलती है. यह छूट ELSS और टैक्स सेविंग एफडी, दोनों में इनवेस्ट करने पर मिल सकती है. इस मामले में दोनों ऑप्शन एक बराबर हैं. लेकिन इसके अलावा कई और बातें ऐसी भी हैं, जो इन दोनों को काफी अलग करती हैं.
दोनों विकल्पोें में अलग क्या है?
ELSS डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड हैं, जिन पर शेयर बाजार पर आधारित रिटर्न मिलता है. यही वजह है कि इनमें निवेश के साथ मार्केट रिस्क जुड़ा हुआ है. वहीं, टैक्स सेविंग एफडी पर फिक्स्ड रिटर्न मिलता है और इसमें रिस्क काफी कम होता है. भले ही दोनों में निवेश करते समय 80सी के तहत एक जैसी टैक्स छूट मिलती है, लेकिन ELSS की कुछ बातें इसे टैक्स सेविंग एफडी से बेहतर बनाती हैं. पहली बात तो यह कि टैक्स सेविंग के लिए ELSS को 3 साल तक होल्ड करना काफी है, जबकि टैक्स बचाने वाले एफडी का लॉक-इन पीरियड 5 साल होता है. सच ये है कि ELSS का 3 साल का लॉक-इन पीरियड दूसरे किसी भी टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट की तुलना में सबसे कम है.
1 लाख तक के मुनाफे पर टैक्स नहीं
ELSS को 3 साल तक होल्ड करने के बाद अगर आपको उस पर एक वित्त वर्ष के दौरान 1 लाख रुपये तक का सालाना कैपिटल गेन होता है, तो उस पर कोई इनकम टैक्स नहीं देना पड़ेगा. 1 लाख रुपये से ज्यादा के कैपिटल गेन पर 10 फीसदी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स देना होगा. जबकि टैक्स सेविंग एफडी से होने वाली इंटरेस्ट इनकम पूरी तरह टैक्सेबल है, जिस पर करदाता के स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. यानी अगर आपका टैक्स स्लैब 20 या 30 फीसदी है, तो आपको एफडी के इंटरेस्ट पर इसी हिसाब से टैक्स भरना पड़ सकता है.
इक्विटी में मिल सकता है ज्यादा रिटर्न
ELSS में मार्केट लिंक्ड रिटर्न मिलता है, जो टैक्स सेविंग एफडी जैसे फिक्स्ड रिटर्न वाले एसेट्स की तुलना में अक्सर अधिक होता है. हालांकि मार्केट से लिंक होने की वजह से ELSS में जोखिम भी ज्यादा रहता है. वहीं, एफडी को काफी सेफ इनवेस्टमेंट माना जाता है. हालांकि ELSS में SIP के जरिये इनवेस्ट करने पर एवरेजिंग का लाभ मिलता है और रिस्क कम हो जाता है.
रिटर्न के अलावा रिस्क पर भी दें ध्यान
ऊंचे रिटर्न की उम्मीद और बेहतर टैक्स सेविंग की वजह से ELSS को टैक्स सेविंग एफडी की तुलना में बेहतर इनवेस्टमेंट ऑप्शन कहा जा सकता है. लेकिन निवेश के बारे में कोई भी फैसला करते समय सिर्फ रिटर्न की उम्मीद पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए. जोखिम उठाने की अपनी क्षमता पर गौर करना भी जरूरी है. अगर आपको सुरक्षित और फिक्स्ड रिटर्न चाहिए तो टैक्स सेविंग एफडी आपके लिए बेहतर हैं. लेकिन अगर आप मार्केट से जुड़ा रिस्क उठाने की क्षमता रखते हैं तो ELSS में नियमित निवेश आपको लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न दे सकता है.