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वेल्थ रिपोर्ट 2025 के अनुसार, अब भारत में 8.7 लाख मिलियनेयर घराने हैं जो कुछ साल पहले की तुलना में लगभग दोगुने हैं. Photograph: (Gemini)
हर साल जब एम3एम हुरुन इंडिया रिच लिस्ट जारी होती है, तो मैं उसे एक मिश्रित भावना के साथ देखती हूँ- हैरानी, उत्सुकता और कभी-कभी अविश्वास के साथ. हर बार कुछ नए नाम, कुछ पुराने चेहरे और उनकी तेजी से बढ़ती संपत्ति इसमें नज़र आती है. इस सूची को स्क्रॉल करते हुए, मेरे मन में हमेशा वही पुराना सवाल उठता है,आखिर इतना पैसा कैसा लगता होगा?
और फिर, मेरे अंदर की वो छोटी सी लड़की जिसे बचपन में सिखाया गया था कि “पैसा सब कुछ ठीक कर देता है”चुपचाप सोचती है, “क्या ही अच्छा होता अगर हमारे पास इतना पैसा होता जो कभी ख़त्म ही न हो.”
हममें से ज़्यादातर को तो यही सिखाया गया था: मेहनत से पढ़ो, उससे भी ज़्यादा मेहनत से काम करो और ज़िंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करो. सफलता का मतलब था- बड़ा बैंक बैलेंस, बड़ा घर, और बड़ी पहचान.लेकिन कहीं न कहीं, उस प्रशंसा और जिज्ञासा के बीच, मेरे मन में एक सवाल ने जगह बना ली- क्या अमीर लोग सच में खुश होते हैं?या फिर ख़ुशी भी एक निश्चित अंकों के बाद ठहर जाती है. जहाँ ज़ीरो की गिनती बढ़ती जाती है, क्या वहां सुकून वहीं का वहीं रह जाता है.
भारत के नए अमीर और उनका खर्च करने का स्टाइल
भारत अब पहले से कहीं ज़्यादा तेजी से अमीर हो रहा है. वेल्थ रिपोर्ट 2025 के मुताबिकदेश में अब 8.7 लाख से ज़्यादा मिलियनेयर घराने हैं यानी कुछ सालों में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई है.
लेकिन इस बार बात सिर्फ़ पैसों की नहीं है, बल्कि उन लोगों की है जो इस नई अमीरी की पहचान बन रहे हैं. अब करोड़पति सिर्फ़ पुराने बिज़नेस घरानों से नहीं आते- इनमें स्टार्टअप चलाने वाले, फिनटेक एक्सपर्ट्स, कंटेंट क्रिएटर्स और वो प्रोफेशनल्स भी हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और टैलेंट से डिजिटल दुनिया में नाम और पैसा दोनों कमाया है.
भारत के नए अमीरों के चेहरे अब पहले से बिल्कुल अलग हैं. ये युवा हैं. खुद की मेहनत से आगे बढ़े हैंऔर हमेशा कुछ नया करने की चाह रखते हैं.उदाहरण के लिए, अरविंद श्रीनिवास, 31 साल के एआई उद्यमी, जिनकी कुल संपत्ति अब ₹21,000 करोड़ से ज़्यादा है. Zepto के संस्थापक, आदित पालीचा और कैवल्य वोहरा जो अभी अपनी उम्र के 20 वें पायदान से बाहर ही निकले हैं, लेकिन दोनों की संपत्ति करीब ₹4,000 करोड़ के आसपास है.और फिर हैं हार्दिक कोठिया, जिन्होंने अपने सोलर स्टार्टअप से 35 की उम्र से पहले ही ग्रीन-एनर्जी मिलियनेयर बनने का खिताब हासिल कर लिया.
इन नई पीढ़ी के करोड़पतियों की लिस्ट में अब कुछ पुराने नाम जुड़ गए हैं.शाहरुख़ खान, जो अब आधिकारिक तौर पर अरबपति अभिनेता और उद्यमी बन चुके हैं. निखिल कामत जो सफलता को एक नई सोच से परिभाषित कर रहे हैं. उनके लिए सफलता अब किसी ऊँची इमारत के कॉर्नर ऑफिस जैसी नहीं, बल्कि जिम्मेदारी के साथ कमाने और फर्क लाने जैसी दिखती है.
तो अब सवाल उठता है- इतनी दौलत का ये लोग करते क्या हैं?
आज के भारत के अमीर लोग सिर्फ़ कमाने में नहीं, बल्कि अच्छे से जीने में भी यक़ीन रखते हैं. वे सिर्फ़ दिखावे के लिए नहीं बल्कि लक्ज़री घरों, शानदार विदेश यात्राओं, बेहतरीन शिक्षा, ग्लोबल इन्वेस्टमेंट्स, और ब्रांडेड एक्सेसरीज़ पर पैसे खर्च करते हैं. अपने अनुभवों को खास बनाने की वे पूरी कोशिश करते हैं क्योंकि आज के अमीर भारत के लिए पैसा सिर्फ़ ताकत नहीं, एक लाइफस्टाइल की कहानी है.
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जब पैसा ख़ुशी देना बंद कर देता है
मनोवैज्ञानिक इसे “सैशिएशन पॉइंट” (satiation point) कहते हैं यानी वो पॉइंट, जहाँ ज़्यादा पैसा (money) होने के बाद भी ख़ुशी बढ़ती नहीं.इस पड़ाव पर ज़िंदगी में आराम तो होता है लेकिन ज़िन्दगी का सुकून और मायने कहीं पीछे छूट जाते हैं.
आज भारत के कई अमीर लोग मानते हैं कि पैसा उन्हें आज़ादी तो देता है, लेकिन संतोष नहीं.निखिल कामत जैसे उद्यमी अब मकसद, सजगता, और दौलत को सही तरीके से इस्तेमाल करने की बात करते हैं.कई युवा फ़ाउंडर भी अब इसी सोच पर चल रहे हैं. उन्होंने नाम और शोहरत के पीछे भागना छोड़ दिया है और अब ज़िंदगी में सुकून और मतलब ढूँढने लगे हैं.
कई इंटरव्यू और सर्वे के बाद एक बात साफ़ होती है- भारत के अमीर लोगों की असली ख़ुशी चार चीज़ों से जुड़ी है:
1. आज़ादी, दौलत से ज़्यादा कीमती है.
सबसे खुश मिलियनेयर वे नहीं हैं जिनके पास सबसे ज़्यादा पैसा है, बल्कि वे हैं जो अपना समय अपने हिसाब से जी सकते हैं.
2. मकसद, चीज़ों से ज़्यादा मायने रखता है.
अब कई अमीर लोग सिर्फ़ पैसा खर्च करने के बजाय कुछ अच्छा करने में यक़ीन रखते हैं जैसे नए बिज़नेस में निवेश करना, ज़रूरतमंदों की मदद करना, या ऐसे कामों में पैसा लगाना जो समाज में बदलाव लाएँ.
3. रिश्ते ही असली पूँजी हैं.
कई अमीर लोग कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी कमी कोई मिस हुई डील नहीं, बल्कि परिवार के साथ बिताया न जा सका समय है.
4. सेहत है सबसे बड़ी लक्ज़री.
आज के अमीरों के लिए वेलनेस और हेल्थ अब महँगी घड़ियों या कारों से ज़्यादा स्टेटस सिंबल बन गए हैं.
क्योंकि सच यही है- चाहे आपके पास कितना भी पैसा हो, अगर आप थके हुए हैं तो प्राइवेट जेट भी किसी काम का नहीं.
छोटे शहर, बड़ी ख़ुशियाँ
दिलचस्प बात ये है कि अमीर लोगों की ख़ुशी हर जगह एक जैसी नहीं होती. टियर-2 और टियर-3 शहरों के करोड़पति, बड़े शहरों के लोगों के मुकाबले ज़्यादा खुश नज़र आते हैं. शायद इसकी वजह है - कम भागदौड़, ज़्यादा अपनापन, और ज़िंदगी की थोड़ी धीमी रफ़्तार. इन शहरों के लोग अपनी दौलत से दिखावा नहीं, बल्कि ज़िन्दगी जीने के तरीके पर ध्यान दे रहें हैं. यानी साफ़ है ख़ुशी का रिश्ता इस बात से ज़्यादा है कि आप कैसे जीते हैं, न कि कितना कमाते हैं.
बैंक बैलेंस से आगे की कहानी
शायद इसलिए मैं हर साल ये लिस्ट दोबारा देख लेती हूँ क्योंकि इन बड़े-बड़े नामों और नंबरों के पीछे वही लोग हैं जो सिर्फ़ पैसा कैसे कमाया जाए ये नहीं सोच रहे बल्कि अब भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि ज़िंदगी कैसे जी जाए.
भारत के अमीर लोग अब ये बात समझने लगे हैं कि ख़ुशी ज़्यादा में नहीं, बस “काफ़ी” में होती है. काफ़ी वक़्त ताकि थोड़ा चैन से साँस ले सकें, काफ़ी आज़ादी ताकि ज़रूरत पड़े तो “ना” कह सकें और काफ़ी बैलेंस ताकि अपनी बनाई ज़िंदगी को सच में जी सकें.
आख़िर में, भारत के अमीर लोग अब और चीज़ें जोड़ने में नहीं, बल्कि वही ढूँढ रहे हैं जो हम सब चाहते हैं- एक ऐसी ज़िंदगी, जो सच में अच्छी लगे और सुकून दे.
डिसक्लेमर
नोट : इस लेख में फंड रिपोर्ट्स, इंडेक्स इतिहास और सार्वजनिक सूचनाओं का उपयोग किया गया है. विश्लेषण और उदाहरणों के लिए हमने अपनी मान्यताओं का इस्तेमाल किया है.
इस लेख का उद्देश्य निवेश के बारे में जानकारी, डेटा पॉइंट्स और विचार साझा करना है. यह निवेश सलाह नहीं है. यदि आप किसी निवेश विचार पर कदम उठाना चाहते हैं, तो किसी योग्य सलाहकार से सलाह लेना अनिवार्य है. यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है. व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं और उनके वर्तमान या पूर्व नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
स्नेहा विरमानी एक कंटेंट स्ट्रैटेजिस्ट और राइटर हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में दस साल से ज़्यादा का अनुभव है. वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज की पूर्व छात्रा हैं, जहाँ उन्होंने इकोनॉमिक्स और साइकोलॉजी में पढ़ाई की. स्नेहा की विशेषज्ञता स्टोरीटेलिंग-आधारित कंटेंट स्ट्रैटेजी और कंज़्यूमर एजुकेशन कैंपेन बनाने में है. उनका काम जटिल बातों को सरल और असरदार ढंग से समझाने पर केंद्रित होता है ताकि हर पाठक बिना किसी भारी-भरकम शब्दों के, सहजता से जुड़ सके.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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