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पैसा नहीं, अनुभव हैं नई अमीरी की पहचान. Photograph: (Gemini)
आज की पीढ़ी के लिए सफलता का अर्थ तेजी से बदल रहा है. कभी सफलता का पैमाना होता था कि कितना पैसा बचाया, कितनी संपत्ति जुटाई या कौन सी कार खरीदी. लेकिन अब युवा इन पारंपरिक मापदंडों से आगे बढ़ चुके हैं. उनके लिए असली सफलता का मतलब है आज़ादी से जीना, खुश रहना और खुद को बेहतर बनाना. युवा अब अपने पैसे को सिर्फ चीज़ें खरीदने में नहीं, बल्कि अनुभव जुटाने में खर्च करना पसंद करते हैं. किसी कॉन्सर्ट में जाना, नए देशों की यात्रा (travel) करना, पहाड़ों में मेडिटेशन रिट्रीट पर जाना या किसी नए शौक को सीखना –यही उनकी नई “लक्ज़री” है.
इस “एक्सपीरिएंशल स्पेंडिंग” को कई लोग लापरवाही समझ सकते हैं, लेकिन असल में यह सोच का एक नया आयाम है. यह एक ऐसा नज़रिया है जहाँ पैसा अब ज़िंदगी का केंद्र नहीं, बल्कि एक माध्यम बन गया है –एक ऐसा साधन जो जीवन को और ज़्यादा अर्थपूर्ण बना सके. आज की पीढ़ी जानती है कि असली दौलत बैंक खाते में नहीं, बल्कि उन यादों में है जो हमेशा साथ रहती हैं. उनके लिए सफलता का मतलब है –हर दिन को पूरी तरह जीना, सीखना, महसूस करना और खुद को नए अनुभवों के ज़रिए विकसित करना. यही है उनकी नई “रिच लाइफ” –कम चीज़ें, ज़्यादा एहसास.
अमीरी की परिभाषा बदल रही है
कभी अमीरी का मतलब होता था- बड़ा घर, नई कार या महंगे गैजेट्स. लेकिन आज की पीढ़ी के लिए “धन” का अर्थ इन चीज़ों से कहीं आगे निकल चुका है. अब किसी की संपन्नता का पैमाना इस बात से तय होता है कि वह अपनी ज़िंदगी कितनी पूरी तरह, कितनी आज़ादी से और कितने जुनून के साथ जी रहा है.
आज के युवा अपने पैसे को सिर्फ चीज़ें खरीदने पर नहीं, बल्कि अनुभवों को संजोने पर खर्च करना पसंद करते हैं. दोस्तों के साथ की गई एक यादगार यात्रा, किसी म्यूज़िक फेस्टिवल का जोश, या वेलनेस वीकेंड की सुकून भरी सांस- इन अनुभवों से मिलने वाली खुशी और संतोष किसी नए स्मार्टफोन या कार अपग्रेड से कहीं ज़्यादा गहरी होती है. वजह साफ़ है- चीज़ें समय के साथ पुरानी हो जाती हैं, लेकिन अनुभवों की यादें ज़िंदगीभर साथ रहती हैं. यही वजह है कि आज की पीढ़ी के लिए “अमीर” होना अब चीज़ों का मालिक बनना नहीं, बल्कि हर उस पल का हिस्सा बनना है जो जीवन को अर्थपूर्ण और जीवंत बना दे.
उदाहरण के तौर पर, 27 साल की एक मार्केटिंग एग्ज़ीक्यूटिव हर साल लगभग ₹40,000 यात्रा पर खर्च करना पसंद करती है. यह रकम वह आसानी से कार की ईएमआई में भी लगा सकती थी, लेकिन इसके बजाय उसने नई जगहें देखने, अलग संस्कृतियों को महसूस करने और नई कहानियाँ बनाने का रास्ता चुना. उसके लिए असली मज़ा किसी चीज़ का मालिक बनने में नहीं, बल्कि किसी अनुभव का हिस्सा बनने में है. यात्रा उसे वो नज़रिया देती है जो कोई कार नहीं दे सकती. नए लोग, नए विचार और नए एहसास ये सब यात्रा से ही मिल सकता है .
असल में, किसी अनुभव की असली कीमत तभी समझ में आती है जब आप उसमें शामिल होते हैं, उसे जीते हैं. यही आज की पीढ़ी की सोच है — “चीज़ें रखो कम, लेकिन यादें बनाओ ज़्यादा.”
अब निवेश का मतलब है खुद में निवेश करना
आज की युवा पीढ़ी के लिए पैसे का “रिटर्न” अब सिर्फ रुपये में नहीं, बल्कि खुशी में मापा जाता है. उनके लिए असली कमाई वो एहसास हैं जो उन्हें ज़िंदगी का मज़ा महसूस कराते हैं. किसी कॉन्सर्ट, वीकेंड ट्रिप या ऑनलाइन क्रिएटिव वर्कशॉप पर ₹10,000 खर्च करना पहली नज़र में महंगा लग सकता है, लेकिन युवाओं के लिए यह अपने खुद के विकास और खुशी में निवेश करने जैसा है. यह ऐसा रिटर्न है जो बैंक खाते में नहीं, बल्कि दिल में बढ़ता है- समय के साथ और भी गहराई से महसूस होता है. आज की पीढ़ी के लिए असली वैल्यू वही है जो उन्हें भावनात्मक संतुलन, सुकून और आत्मसंतोष दे.
आज के दौर में कई युवा मेहनत से कमाते हैं, लेकिन उनका खर्च करने का तरीका पहले जैसा नहीं रहा. वे अपनी कमाई का इस्तेमाल सिर्फ ज़रूरत की चीज़ें खरीदने या करियर बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि उन चीज़ों में करते हैं जो उन्हें संतोष और खुशी देती हैं. कोई नया कोर्स जॉइन करना, किसी आर्ट या डांस क्लास में हिस्सा लेना, या कोई नया शौक अपनाना ये सब उनके लिए सिर्फ शौक नहीं, बल्कि अपने पैशन में निवेश करने का तरीका है. इस तरह का निवेश बैंक बैलेंस नहीं बढ़ाता, लेकिन आत्मविश्वास, जिज्ञासा और लंबे समय की भावनात्मक समृद्धि ज़रूर देता है. आज की पीढ़ी के लिए यही असली संपत्ति है —वो जो दिल को सुकून और दिमाग को नया नज़रिया दे.
कम चीज़ें, ज़्यादा आज़ादी- यही है नई सोच
पहले के ज़माने में आर्थिक सुरक्षा का मतलब था अपनी कोई चीज़ होना, जैसे घर या कार. लेकिन आज की अर्थव्यवस्था में युवा पीढ़ी के लिए “फाइनेंशियल फ़्रीडम” का मतलब कुछ और है- लंबी अवधि की ज़िम्मेदारियों से आज़ादी, ताकि वे ज़्यादा अनुभव जुटा सकें और ज़िंदगी को अपने तरीके से जी सकें.
आज के युवा अब 20 साल की होम लोन की ईएमआई में नहीं उलझना चाहते. उदाहरण के तौर पर, बेंगलुरु में काम करने वाला एक प्रोफेशनल अपना घर खरीदने के बजाय किराए पर रहना चुन सकता है ताकि वह बचाए हुए पैसों से हर साल नई जगहों की यात्रा कर सके या किसी स्टार्टअप आइडिया में निवेश कर सके. उनके लिए असली अमीरी है चुनने की आज़ादी —अपनी मर्ज़ी से जीना, नई चीज़ें आज़माना और ज़िंदगी के हर अनुभव को पूरी तरह महसूस करना.
सामाजिक संपन्नता का नया दौर —अनुभव, चीज़ों से कहीं आगे
आज के समय में “एक्सपीरियंस” यानी अनुभव, नई सामाजिक संपत्ति (Social Wealth) बन चुके हैं. अब लोग अपनी पहचान और रिश्ते उन चीज़ों से नहीं, बल्कि उन अनुभवों से जोड़ रहे हैं जो उन्हें दूसरों से जोड़ते हैं. किसी म्यूज़िक फेस्टिवल में शामिल होना, दोस्तों के साथ ट्रेकिंग पर जाना या किसी वीकेंड वर्कशॉप का हिस्सा बनना, ये सब सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि एक तरीका है नए लोगों से जुड़ने का, अपने जैसे सोचने वालों के साथ रिश्ते बनाने का. ये अनुभव ऐसी दोस्तियाँ और जुड़ाव पैदा करते हैं जो किसी भी पेशेवर रिश्ते से कहीं ज़्यादा गहरे और लंबे समय तक टिकने वाले होते हैं.
शहरों में बढ़ते लोकल इवेंट्स, सांस्कृतिक समारोह और क्रिएटिव रिट्रीट्स इस बात का सबूत हैं कि लोग अब कनेक्शन और कम्युनिटी की तलाश में हैं. किसी अनुभव की असली कीमत सिर्फ उसमें शामिल होने में नहीं, बल्कि उस अपनत्व की भावना में है जो उससे पैदा होती है —एक ऐसी भावना जो किसी भी खरीदी हुई चीज़ से कहीं ज़्यादा देर तक दिल में बसती है.
स्मार्ट खर्च —नई पीढ़ी का समझदारी भरा संतुलन
अक्सर कहा जाता है कि आज के युवा “पहले खर्च, बाद में सोच” वाली सोच रखते हैं, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. आज की युवा पीढ़ी अपने पैसों को लेकर पहले से कहीं ज़्यादा सचेत और समझदार हो गई है. वे जानते हैं कि कब, कहाँ और कितना खर्च करना है.
कई युवा अब अपने खर्च को पहले से प्लान करते हैं. वे यह तय करते हैं कि साल या महीने में वे “फन एक्सपीरियंस” जैसे ट्रैवल, फेस्टिवल या रिट्रीट्स पर कितना खर्च करेंगे, और उस रकम को अलग सेविंग अकाउंट में रखते हैं. उनके लिए मज़े करना अब लक्ष्य (goal) है, न कि बिना सोचे समझे किया गया खर्च.
उदाहरण के तौर पर, कोई युवा हर महीने अपनी कमाई का थोड़ा हिस्सा बचाता है ताकि साल के अंत में वह ट्रिप पर जा सके या किसी म्यूज़िक फेस्टिवल का हिस्सा बन सके. इस तरह का “प्लान किया हुआ आनंद” उन्हें यह भरोसा देता है कि वे आज को भी जी सकते हैं और भविष्य को भी सुरक्षित रख सकते हैं.
नई पीढ़ी ने यह साबित कर दिया है कि ज़िंदगी का आनंद लेना और आर्थिक रूप से समझदार रहना —दोनों साथ-साथ चल सकते हैं. यही है उनकी असली समझदारी: स्मार्ट खर्च, संतुलित ज़िंदगी.
सफलता की नई परिभाषा —संतुलन, संतोष और आज़ादी
आज के दौर में सफलता का मतलब सिर्फ घर खरीदना, कार लेना या रिटायरमेंट के लिए बचत करनाजैसी उपलब्धियों की सूची तक सीमित नहीं रहा. अब सफलता की नई परिभाषा है संतोष, मानसिक संतुलन और जीने की आज़ादी.
आज के युवाओं के लिए सफलता का असली अर्थ है खुद को समझना और जीवन को पूरी तरह महसूस करना. उनके लिए यात्रा करना, कुछ नया सीखना, या समाजसेवा के ज़रिए दूसरों की मदद करना —ये सब किसी भी भौतिक उपलब्धि से कहीं ज़्यादा मूल्यवान हैं. अब सफलता को ट्रॉफियों या संपत्ति से नहीं, बल्कि खुद के भीतर की शांति और खुशी से मापा जाता है. यही है आधुनिक दौर की असली “विजय” जहाँ मंज़िल नहीं, सफ़र मायने रखता है.
जितने ज़्यादा अनुभव उतने ज्यादा अमीर यही है सोच आज के युवाओं की
29 साल का एक आईटी प्रोफेशनल अगर छह महीने का ब्रेक लेकर घूमने या विदेश में वॉलंटियर करने जाता है, तो शायद उसके बड़े-बुजुर्ग सवाल करें — “करियर का क्या होगा?” लेकिन उसके लिए ये वक्त किसी नुकसान का नहीं, बल्कि स्पष्टता (clarity) और रचनात्मकता (creativity) में किया गया निवेश (investment) है. अब “अमीर” होने का मतलब बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि मन की शांति से मापा जाने लगा है.
आज की पीढ़ी के लिए “एक्सपीरियंस स्पेंडिंग” यानी अनुभवों पर खर्च करना, एक नई जीवनशैली की पहचान है. अब लक्ष्य सिर्फ अच्छी कमाई करना नहीं, बल्कि अच्छा जीवन जीना है. लोग अब चीज़ें खरीदने से ज़्यादा, ऐसे अनुभवों में निवेश कर रहे हैं जो उन्हें अर्थ, यादें और व्यक्तिगत विकास के मौके देते हैं.
यह किसी भी तरह से आर्थिक ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि पैसा सिर्फ कमाने या बचाने के लिए नहीं, बल्कि जीने और सीखने के लिए भी होता है. यही है संपन्नता की नई परिभाषा, जहाँ “वेल्थ” का मतलब सिर्फ आंकड़े नहीं बल्कि एहसास हैं.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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