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दुनिया के सबसे सफल निवेशक वॉरेन बफेट का निवेश का तरीका इतना खास है कि इसे हमेशा याद रखा जाएगा. हालांकि, बहुत कम निवेशक इससे सीखते हैं और इसे अपनाते हैं. (AI Generated Image)
by Suhel Khan
हाल ही में "ओरेकल ऑफ ओमाहा" वॉरेन बफेट ने ऐलान किया कि वह इस साल रिटायर होंगे. यह खबर आते ही दुनियाभर के निवेशकों में हलचल मच गई. कई निवेशक मायूस हुए, लेकिन सभी जानते थे कि बफेट ने पहले से ही मज़बूत उत्तराधिकारी योजना और वसीयत तैयार कर रखी है.
बफेट की असली विरासत उनकी संपत्ति नहीं बल्कि उनकी निवेश सोच है. वही सोच जिसने एक अख़बार बेचने वाले लड़के को दुनिया का सबसे सम्मानित और सफल निवेशक बना दिया. अगर कोई इस विरासत को समझकर अपनाए, तो सफलता लगभग तय है.
भारत में भी कुछ सुपर निवेशक हैं जिन्होंने बफेट की इसी निवेश शैली को अपनाया और साबित किया कि यह तरीका कारगर है. वैल्यू इन्वेस्टिंग के उनके फिल्टर, जैसे धैर्य, बेहतर बिजनेस मॉडल (Moat) और सही कीमत पर सही वैल्यू, भारतीय निवेशकों ने भी बखूबी अपनाए हैं. इन्हीं में से तीन भारतीय निवेशक ऐसे हैं जिन्हें हर बफेट फैन्स को जानना और फॉलो करना चाहिए.
The King of Retail & Resilience: राधाकिशन दमानी
मुंबई से साधारण पृष्ठभूमि से उठकर भारत के सबसे बड़े रिटेल साम्राज्य के मालिक बनने वाले राधाकिशन दमानी को अक्सर “रिटेल किंग” और “किंग ऑफ रेज़िलिएंस” कहा जाता है. उनका सफर वॉरेन बफेट की सोच से काफ़ी मिलता-जुलता है, जहाँ धैर्य, वैल्यू और लंबी अवधि के निवेश पर सबसे ज़्यादा ज़ोर है. शेयर ट्रेडिंग से शुरुआत करने वाले दमानी ने एवेन्यू सुपरमार्ट्स की नींव रखी, जो आज DMart ब्रांड के ज़रिए पूरे देश में 300 से ज़्यादा स्टोर चला रहा है. उनकी रणनीति हमेशा से सरल रही है—कम लागत पर काम करना, संपत्तियों का मालिकाना हक़ रखना ताकि खर्च कम हो, और बचत का फ़ायदा ग्राहकों को देना. यही उनकी सबसे बड़ी मज़बूती या “मोअट” है.
दमानी का निवेश पोर्टफोलियो आज करीब 13 कंपनियों में फैला हुआ है, जिसकी कुल वैल्यू 2.12 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा है. इसमें रिटेल, सीमेंट और कंज्यूमर गुड्स जैसे सेक्टर शामिल हैं. सबसे बड़ी हिस्सेदारी तो डीमार्ट में ही है, जहाँ वे कंट्रोलिंग स्टेक रखते हैं. खास बात यह है कि उन्होंने अपने ज़्यादातर निवेश लंबे समय तक पकड़े रखे हैं—जैसे 3M, अदवाणी होटल्स, अपटेक, ब्लू डार्ट और ट्रेंट, जिन्हें वे करीब एक दशक से थामे हुए हैं.
दमानी का फिलॉसफी भी बफेट की सोच से मेल खाता है. उनका मशहूर कथन है—“लॉन्ग टर्म पर नज़र रखो. छोटा ही बड़ा है. अपने लोगों की क़दर करो. कम में खरीदो, सस्ता बेचो. कर्ज़ से बचो. लोकल बनो. धीरे चलो.” यह लाइनें बफेट की निवेश और जीवनशैली की झलक देती हैं.
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True-Blue Value Investor: नेमिश शाह
मुंबई यूनिवर्सिटी से कॉमर्स की पढ़ाई करने वाले नेमिश शाह को सही मायनों में “भारत का वॉरेन बफेट” कहा जा सकता है. वे 1984 से ईएनएएम होल्डिंग्स के सह-संस्थापक हैं और शांत स्वभाव, अनुशासित निवेश शैली और वैल्यू इन्वेस्टिंग के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं. शाह हमेशा उन कंपनियों की तलाश में रहते हैं जिनकी बुनियाद मज़बूत हो, कर्ज़ कम हो और जिनके बिज़नेस मॉडल लंबे समय तक टिक सकें. ठीक वैसे ही जैसे वॉरेन बफेट “बेहतरीन कंपनियों को सही दाम पर” खोजते हैं.
स्पॉटलाइट से दूर रहने वाले शाह का मानना है कि पोर्टफोलियो और उसके रिटर्न ही असली पहचान हैं. यही कारण है कि वे अल्पकालिक शोर और ट्रेंड्स को नज़रअंदाज़ कर पारंपरिक सेक्टरों में लंबे समय तक निवेश बनाए रखते हैं. उनके मौजूदा पोर्टफोलियो में सिर्फ 6 स्टॉक्स हैं, जिनकी कुल वैल्यू 3,173 करोड़ रुपये है. इनमें से अधिकांश कंपनियां करीब एक दशक से उनके पास हैं. इंडस्ट्रियल मशीनरी, ऑटो, टेक्सटाइल, कंप्रेसर और शुगर जैसे सेक्टरों में उनकी पकड़ दिखाती है कि वे टिकाऊ और लगातार बढ़ने वाले बिज़नेस में यकीन रखते हैं.
नेमिश शाह का सबसे बड़ा गुण है धैर्य. उनकी कई होल्डिंग्स अभी अपने ऑल-टाइम हाई से 30% नीचे ट्रेड कर रही हैं, लेकिन वे विचलित नहीं होते. उनका मानना है कि सही कंपनी चुनो और लंबे समय तक साथ बने रहो. कंपनी चुनते समय वे पाँच फ़िल्टर पर ध्यान देते हैं—ईमानदारी, बुद्धिमानी, नीयत, नवाचार और क्रियान्वयन. यही चीज़ उन्हें बाकी निवेशकों से अलग बनाती है.
नेमिश शाह ने एक बार कहा था, “भारत में निवेश चुनते समय सबसे अहम बात होती है मैनेजमेंट की क्वालिटी.” यह विचार वॉरेन बफेट की “Four M’s” फिलॉसफी से मेल खाता है—मीनिंग, मोअट, मैनेजमेंट और मार्जिन ऑफ सेफ्टी. उनकी रिसर्च शैली और कॉन्ट्रेरियन सोच ने उन्हें भारत के सबसे सम्मानित वैल्यू इन्वेस्टर्स में शामिल कर दिया है.
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The Unicorn of Undervalued Picks: सुनील सिंघानिया
भारत के सुपर इन्वेस्टर्स की इस लिस्ट में आख़िरी नाम है अबक्कस एसेट मैनेजर के संस्थापक सुनील सिंघानिया का. वे उन चुनिंदा निवेशकों में गिने जाते हैं जिन्हें ऐसी कंपनियों को चुनने का हुनर है जो आम तौर पर निवेशकों की नज़र से दूर रहती हैं. बफेट की तर्ज़ पर उनका मानना है कि डर के माहौल में ही सही मौके छिपे होते हैं.
सुनील सिंघानिया सीएफए चार्टरहोल्डर हैं और सीएफए ग्लोबल बोर्ड में शामिल होने वाले पहले भारतीय हैं. उन्होंने रिलायंस म्यूचुअल फंड छोड़कर 2018 में अबक्कस की शुरुआत की थी, जो आज 1 अरब डॉलर से ज्यादा की इक्विटी मैनेज कर रहा है. उनका खास फोकस मिडकैप और स्मॉलकैप मल्टीबैगर स्टॉक्स पर रहता है. यही उनकी रणनीति बफेट की शुरुआती निवेश शैली से मिलती-जुलती है, जिसमें अनदेखे मौकों पर दांव लगाने, विविधता लाने और मज़बूत मैनेजमेंट पर भरोसा करने पर ज़ोर होता है.
फिलहाल सिंघानिया के पर्सनल और फंड पोर्टफोलियो में करीब 20 कंपनियों में निवेश है, जिनकी कुल वैल्यू 2,465 करोड़ रुपये है. इनमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी सरडा एनर्जी एंड मिनरल्स की है, जिसमें उन्होंने मार्च 2021 से निवेश किया हुआ है. उनका पोर्टफोलियो मैन्युफैक्चरिंग, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टरों में फैला हुआ है, जबकि टेक्सटाइल, यूटिलिटीज और फाइनेंस सेक्टर में भी उनका बड़ा दांव है.
सिंघानिया की सबसे बड़ी ताक़त है रिस्क को बैलेंस करना. उनके मिडकैप दांव जहां तेज़ी की संभावना दिखाते हैं, वहीं ब्लू-चिप स्टॉक्स उनके पोर्टफोलियो को स्थिरता देते हैं. यही संतुलन उन्हें भारत के खास निवेशकों की कतार में खड़ा करता है.
भारत के बफेट राकेश झुनझुनवाला
जब भारत के वॉरेन बफेट्स की बात होती है तो राकेश झुनझुनवाला का नाम लिए बिना यह चर्चा अधूरी मानी जाती है. उन्होंने न सिर्फ करोड़ों निवेशकों की सोच बदली बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी उन्हें “भारत का वॉरेन बफेट” कहा.
झुनझुनवाला और उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला की कुल होल्डिंग करीब 50 कंपनियों में फैली है, जिनकी वैल्यू एक लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा है. पिछले हफ़्ते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनकी तीसरी पुण्यतिथि मनाई गई. उस अवसर पर उन्हें याद करते हुए यह फिर साबित हुआ कि उन्हें भारत का वॉरेन बफेट क्यों कहा जाता है.
बफेट की विरासत, भारत के सुपर इन्वेस्टर्स के जरिए जिंदा
वॉरेन बफेट की सोच और रणनीतियों को भारत के सुपर निवेशकों राधाकिशन दमानी, नेमिश शाह, सुनील सिंघानिया और दिग्गज राकेश झुनझुनवाला ने बार-बार साबित किया है. इन सभी ने दिखाया है कि बफेट की समझ और सिद्धांत किसी सीमा में बंधे नहीं हैं. धैर्य, वैल्यू और मज़बूत बिज़नेस मॉडल पर ध्यान देकर इन्होंने न सिर्फ अपनी दौलत बनाई बल्कि उन निवेशकों के लिए भी मुनाफा खड़ा किया जो इनका अनुसरण करते हैं. भारत जैसे उतार-चढ़ाव वाले बाज़ार में, जहां नए-नए ट्रेंड्स आते-जाते रहते हैं और कई बार निवेशकों की पूंजी गंवा देते हैं, इन निवेशकों ने स्थिरता और मजबूती से अपनी पहचान बनाई है. यही वजह है कि इनके पास जो फॉलोअर्स हैं, वे पूरी तरह हक़दार हैं और शायद और भी ज्यादा होने चाहिए. अगर किसी को वॉरेन बफेट की लंबी यात्रा समझना मुश्किल लगे, तो वह इन भारत के वॉरेन बफेट्स से सीख ले सकता है.
डिसक्लेमर: इस लेख का मक़सद सिर्फ दिलचस्प चार्ट, आंकड़े और सोचने पर मजबूर करने वाली राय साझा करना है. यह किसी तरह की निवेश सलाह नहीं है. अगर आप निवेश पर विचार कर रहे हैं, तो अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श करना ज़रूरी है. यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्य से लिखा गया है.
सुहेल खान पिछले दस साल से शेयर बाजार के प्रति जुनूनी रहे हैं. इस दौरान वह मुंबई की एक बड़ी इक्विटी रिसर्च कंपनी में सेल्स और मार्केटिंग हेड के पद पर काम कर चुके हैं. फिलहाल वह अपना ज़्यादातर समय भारत के सुपर निवेशकों की रणनीतियों और उनके निवेश के तरीकों को समझने में लगा रहे हैं.
डिसक्लोजर: इस लेख में जिन स्टॉक्स का जिक्र है, लेखक और उनके करीबी लोगों ने उन स्टॉक्स में कोई निवेश नहीं किया है.
लेकिन वेबसाइट के मैनेजर, कर्मचारी और लेख लिखने वाले लोग जिन कंपनियों या स्टॉक्स के बारे में बात कर रहे हैं, उनमें कभी-कभी उनका खुद का निवेश या शेयर हो सकता है. इस लेख में दी गई राय सिर्फ लेखकों की व्यक्तिगत सोच है. निवेश करने से पहले आपको अपने लक्ष्य, संसाधन और जरूरत के मुताबिक सही सलाह लेने के बाद ही फैसला करना चाहिए.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy.
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