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रिटायरमेंट प्लानिंग अब किसी तय रकम तक पहुंचने का नाम नहीं है, बल्कि ये अपने आने वाले जीवन को महंगाई, सपनों, बदलती जरूरतों और अनिश्चितताओं से सुरक्षित बनाने की तैयारी है. Photograph: (AI Image)
Retirement Planning: जरा अपने पेरेंट्स के जमाने को याद कीजिए. उस दौर में छुट्टियों पर घूमने जाना बहुत दुर्लभ था, महीने में एक बार बाहर खाना भी बड़ी बात मानी जाती थी और अगर किसी के पास कार होती तो उसे सफल समझा जाता था. लेकिन आज शहरों के ज्यादातर परिवारों के लिए ये सब चीजें आम हो चुकी हैं. यानी जिंदगी का तरीका बदल गया है और उसके साथ-साथ उस जिंदगी को बनाए रखने का खर्चा भी बदल गया है.
इसी वजह से रिटायरमेंट के लिए पहले जिसे 1 करोड़ रुपये का बड़ा तोहफा माना जाता था, आज वो रकम बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं रह गई है. जो पैसा 10 या 20 साल पहले बहुत लगता था, आज वही सिर्फ अस्पताल का खर्च, बच्चों की पढ़ाई या सामान्य जीवनशैली के खर्च पूरे करने में ही निकल जाता है.
अब रिटायरमेंट प्लानिंग का मतलब सिर्फ किसी मनमाने आंकड़े तक पहुंचना नहीं है, बल्कि अपनी जिंदगी को महंगाई, बदलते सपनों, आने वाले बदलावों और अनिश्चितताओं से सुरक्षित बनाना है. खेल के नियम बदल गए हैं, इसलिए हमारी सोच भी बदलनी होगी.
20 साल पहले जो रकम ‘काफी’ थी, आज क्यों नहीं टिक पा रही?
महंगाई एक ऐसा चुपचाप चोर है, जो आपकी बचत को साल-दर-साल खा जाता है. करीब 20 साल पहले जो रकम रिटायरमेंट के लिए “काफी” लगती थी, उससे घर का खर्च, दवाई-दरअसल और थोड़ा घूमना-फिरना आराम से हो जाता था. लेकिन आज वही रकम ज्यादा दिन तक टिक ही नहीं पाती.
इसकी वजह है महंगाई का असर. रोजमर्रा की चीजों से लेकर पेट्रोल-डीजल तक हर चीज की कीमत लगातार बढ़ रही है. खासकर इलाज के खर्चे बहुत तेजी से बढ़े हैं. भारत में हेल्थकेयर महंगाई सालाना करीब 12–14% की रफ्तार से बढ़ रही है. जो ऑपरेशन या इलाज पहले कुछ लाख रुपये में हो जाता था, आज उसकी लागत तीन से चार गुना ज्यादा है. यानी जो रकम पहले राहत देती थी, आज वो बस एक छोटे बिल को चुकाने भर के काम आती है.
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अब रिटायरमेंट सिर्फ 10 साल का नहीं, पूरी जिंदगी का सवाल है
भारत में जीवन प्रत्याशा यानी लाइफ एक्स्पेक्टेन्सी (Life Expectancy) पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है. 1990 में जहां औसतन उम्र सिर्फ 62 साल के आसपास थी, वहीं आज यह 70 साल से भी ऊपर हो गई है. बहुत से लोग तो 80 साल से भी ज्यादा जी रहे हैं. लेकिन सच यह है कि रिटायरमेंट पेंशन कभी इतनी लंबी उम्र तक चलने के लिए बनाई ही नहीं गई थी.
पहले लोग नौकरी छोड़ने के बाद सिर्फ 8–10 साल का ही समय रिटायरमेंट में बिताते थे. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. आज लोगों को अपनी जिंदगी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बिना किसी सक्रिय आय (Active Income) के बिताना पड़ता है. ऐसे में पुरानी सोच के मुताबिक जो पैसा रिटायरमेंट के लिए “काफी” लगता था, वह अब लंबे समय तक चलने वाले खर्चे, इलाज और जीवनशैली की जरूरतों को पूरा करने के लिए बिलकुल भी पर्याप्त नहीं है.
रिटायरमेंट की नई हकीकत: अब सिर्फ सादगी नहीं, चाहिए बड़ी तैयारी
रिटायरमेंट की तस्वीर अब बदल चुकी है. पहले की पीढ़ियाँ सादगी से गुजारा करती थीं—घर-परिवार से मुलाक़ातें, छोटी यात्राएँ और साधारण सुविधाएँ ही उनके लिए पर्याप्त थीं. लेकिन आज के रिटायर लोगों की उम्मीदें कहीं ज्यादा हैं. वे घूमना-फिरना चाहते हैं, शौक पूरे करना चाहते हैं, डिजिटल दुनिया की सुविधाओं का इस्तेमाल करना चाहते हैं, बेहतर मेडिकल केयर और वेलनेस पर भी खर्च करना चाहते हैं.
यानी आज की रिटायरमेंट लाइफस्टाइल पहले जैसी बिल्कुल नहीं रही. यही वजह है कि पुरानी गणनाएँ या "बेंचमार्क" अब काम नहीं आते. आज रिटायरमेंट की असली जरूरतें कहीं आगे निकल चुकी हैं, और उनके लिए नई सोच और नई तैयारी चाहिए.
क्यों अब पुरानी बचत की सुरक्षा काम नहीं आती
कुछ दशक पहले रिटायरमेंट की तस्वीर बिल्कुल अलग थी. तब जीवनयापन का खर्च कम था, इलाज सस्ता था और औसत उम्र भी कम होती थी. ऐसे में थोड़ी-सी बचत भी कई सालों तक आराम से चल जाती थी. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. खासकर बड़े शहरों में जहाँ इलाज, मकान और रोजमर्रा का खर्च तेजी से बढ़ रहा है, वहाँ रिटायरमेंट फंड उम्मीद से कहीं जल्दी खत्म हो जाता है.
मानसिक संतोष बनाम असली सुरक्षा
ज्यादातर लोगों के लिए 1 करोड़ रुपये रिटायरमेंट की "सेफ" रकम मानी जाती है. यह आंकड़ा सुनकर मन को संतोष मिलता है कि सब सुरक्षित है. लेकिन असलियत यह है कि ये रकम दिमाग को तो सुकून देती है, लेकिन पर्स को उतनी सुरक्षा नहीं. असली सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि भविष्य में खर्चे कितने होंगे और क्या आपकी बचत उनका सामना कर पाएगी.
जीवन-यापन का खर्च
आज कई परिवारों का मासिक खर्च ही 50 हजार रुपये से ज्यादा है. अगर 1 करोड़ रुपये सही तरीके से निवेश भी किए जाएं, तो वे कुछ समय तक मासिक खर्च तो पूरे कर सकते हैं, लेकिन महंगाई के सामने ये ताकत धीरे-धीरे कम हो जाती है. 20–25 साल की रिटायरमेंट अवधि में महंगाई आपकी खरीद क्षमता को इतना घटा देगी कि 1 करोड़ रुपये सपना लगेंगे, हक़ीक़त नहीं.
कहां रहते हैं, यह भी मायने रखता है
छोटे शहरों में 1 करोड़ रुपये कई साल तक एक साधारण लेकिन आरामदायक जीवन चला सकते हैं. लेकिन महानगरों में यही रकम किराए, इलाज और लाइफस्टाइल के खर्चों में बहुत जल्दी खत्म हो जाती है.
कड़वी सच्चाई
जो रकम कभी जीवनभर की गारंटी मानी जाती थी, आज वह सिर्फ "शुरुआत" है. बढ़ती महंगाई, लंबी रिटायरमेंट अवधि और इलाज के लगातार बढ़ते खर्च बताते हैं कि अब सिर्फ बचत ही नहीं, बल्कि समझदारी से निवेश करना भी जरूरी है ताकि आपकी संपत्ति महंगाई से तेज बढ़ सके.
1 करोड़ रुपये की सोच से आगे बढ़ना क्यों जरूरी है
ज्यादातर लोग रिटायरमेंट की तैयारी करते समय 1 करोड़ रुपये को एक तरह की "मंजिल" मान लेते हैं. उन्हें लगता है कि यह रकम मिल जाए तो सब सुरक्षित है. लेकिन असलियत में यह तो सिर्फ "शुरुआत" है. असली सुरक्षा तब मिलेगी जब आप पैसों को सही तरह से योजना बनाकर इस्तेमाल करेंगे. आइए समझते हैं कैसे—
1. आज नहीं, भविष्य की क़ीमत सोचें
जो खर्च आज 50,000 रुपये महीने में संभल रहा है, वही 20 साल बाद ₹1.5 लाख या उससे ज्यादा भी हो सकता है. वजह है महंगाई. इसलिए रिटायरमेंट प्लानिंग हमेशा भविष्य की क़ीमत को ध्यान में रखकर करनी चाहिए. इसके लिए रिटायरमेंट कैलकुलेटर जैसी चीजों का सहारा ले सकते हैं.
2. सिर्फ बचत नहीं, बढ़ोतरी वाली निवेश योजना अपनाएँ
अगर आपकी रिटायरमेंट बचत सिर्फ फिक्स्ड डिपॉजिट जैसी कम रिटर्न वाली जगहों पर है, तो समय के साथ आपकी "खरीदने की ताक़त" घट जाएगी. जरूरी है कि आप निवेश में ग्रोथ और सुरक्षा का संतुलन बनाएँ. इक्विटी म्यूचुअल फंड्स, NPS, डेट सिक्योरिटीज और ऐन्युइटी जैसे विकल्प इसमें मदद कर सकते हैं. इक्विटी लंबी अवधि में पैसा बढ़ाते हैं और डेट सुरक्षा देते हैं. जैसे-जैसे उम्र बढ़े, बैलेंस बदल सकता है लेकिन ग्रोथ को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
3. सेहत के खर्चों की अलग तैयारी करें
इलाज का खर्च रिटायरमेंट बचत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. एक सर्जरी या लंबे इलाज में लाखों रुपये लग सकते हैं. इसलिए व्यापक हेल्थ इंश्योरेंस जरूरी है. साथ ही, मेडिकल खर्चों के लिए अलग कैश रिजर्व रखना भी समझदारी है, ताकि अचानक का खर्च आपकी पूरी पूंजी न हिला दे.
4. पैसे निकालने में सावधानी बरतें
अक्सर लोग रिटायरमेंट के बाद बहुत जल्दी और ज्यादा रकम निकाल लेते हैं, जिससे पूंजी जल्दी खत्म हो जाती है. सही तरीका है धीरे-धीरे और योजना के साथ निकालना. इसके लिए आप म्यूचुअल फंड्स में SWP (Systematic Withdrawal Plan) जैसे विकल्प अपना सकते हैं. इसमें हर महीने एक निश्चित रकम मिलती रहेगी और बाकी पैसा निवेश में बढ़ता रहेगा.
रिटायरमेंट प्लानिंग का सबसे बड़ा सबक यह है कि सिर्फ ₹1 करोड़ की रकम जुटा लेना काफी नहीं है, बल्कि उसे सही तरह से मैनेज करना जरूरी है. महंगाई के असर को समझते हुए भविष्य की जरूरतों के हिसाब से निवेश करना होगा, जहाँ सिर्फ सुरक्षित बचत ही नहीं बल्कि बढ़ोतरी देने वाले विकल्प भी शामिल हों. सेहत के बढ़ते खर्चों के लिए अलग तैयारी करनी होगी और रिटायरमेंट फंड से पैसे निकालने में अनुशासन रखना होगा. असली सुरक्षा रकम में नहीं, बल्कि सोच, सही रणनीति और स्मार्ट निवेश में छिपी है. अगर निवेश की समझदारी से योजना बनाई जाए, तो आप रिटायरमेंट के बाद भी कई दशकों तक आर्थिक सुरक्षा बनाए रख सकते हैं, न कि सिर्फ कुछ सालों तक.
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