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Mutual Fund Expense Ratio: म्यूचुअल फंड्स में क्या है एक्सपेंस रेशियो? रेगुलर निवेश करने वालों के लिए जानना जरूरी

Mutual Fund Expense Ratio: किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी को अपनी स्कीम चलाने के लिए कई तरह के खर्च करने पड़ते हैं. इन सभी खर्चों को मिलाकर जो लागत निकलती है, उसे ही एक्सपेंस रेेशियो कहा जाता है.

Mutual Fund Expense Ratio: किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी को अपनी स्कीम चलाने के लिए कई तरह के खर्च करने पड़ते हैं. इन सभी खर्चों को मिलाकर जो लागत निकलती है, उसे ही एक्सपेंस रेेशियो कहा जाता है.

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Equitymaster
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Mutual Fund Expense Ratio : यह छोटी-सी फीस आपके रिटर्न पर बड़ा असर क्यों डालती है. (AI Image)

Mutual Fund Expense Ratio:आज निवेशकों के बीच यह बात स्थापित हो चुकी है कि म्यूचुअल फंड्स सही हैं. इसका असर हम म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में साफ देख सकते हैं, जहां एसेट अंडर मैनेजमेंट में व्यक्तिगत निवेशकों की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है. इक्विटी फंड्स में पैसा लगातार आ रहा है और नए फोलियो की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.

लेकिन जैसे हर निवेश की एक कीमत होती है, वैसे ही म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश की एक लागत जुड़ी होती है. यहां कोई चीज मुफ्त में नहीं मिलती. यह लागत दरअसल एक्सपेंस रेशियो के रूप में सामने आती है.

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एक्सपेंस रेशियो है क्या?

जब कोई म्यूचुअल फंड कंपनी कोई स्कीम चलाती है तो उसे कई तरह के खर्च उठाने पड़ते हैं. इसमें निवेश प्रबंधन फीस, ब्रोकरेज या ट्रांजैक्शन चार्ज, प्रशासनिक खर्च, बिक्री और मार्केटिंग पर होने वाला खर्च, रजिस्ट्रार और कस्टोडियन फीस, ऑडिट फीस जैसे कई खर्च शामिल होते हैं.

इन तमाम खर्चों को मिलाकर जो कुल लागत निकलती है, उसे ही टोटल एक्सपेंस रेशियो या TER कहा जाता है. यह लागत फंड के डेली नेट एसेट्स का एक निश्चित प्रतिशत होती है और हर म्यूचुअल फंड स्कीम पर यह चार्ज किया जाता है.

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TER कैसे निकाला जाता है?

किसी भी म्यूचुअल फंड स्कीम का टोटल एक्सपेंस रेशियो निकालने का तरीका काफी सीधा है. इसे स्कीम के तय समयावधि में हुए कुल खर्च को उस स्कीम की कुल एसेट वैल्यू से भाग देकर निकाला जाता है और फिर उसे 100 से गुणा कर प्रतिशत के रूप में बताया जाता है.

सरल शब्दों में कहें तो TER दरअसल स्कीम के औसत नेट एसेट वैल्यू यानी NAV का एक निश्चित प्रतिशत होता है.

किसी फंड पर अधिकतम TER कितना हो सकता है?

सेबी (SEBI) के नियमों के अनुसार म्यूचुअल फंड हाउस अपनी स्कीम्स पर एक तय सीमा तक ही टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) वसूल सकते हैं. यह सीमा फंड के एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) यानी स्कीम के आकार पर निर्भर करती है.

SEBI नियमों के अनुसार सक्रिय रूप से प्रबंधित इक्विटी और डेट फंड्स पर लगने वाला अधिकतम TER इस प्रकार है:

एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM)इक्विटी फंडस् के लिए TER

डेट फंड के लिए TER

पहले 500 करोड़ रुपये तक2.25%2%
अगले 250 करोड़ रुपये पर2%1.75%
अगले 1,250 करोड़ रुपये पर1.75%1.5%
अगले 3,000 करोड़ रुपये पर1.6%1.35%
अगले 5,000 करोड़ रुपये पर1.5%1.25%
अगले 40,000 करोड़ रुपये परहर 5,000 करोड़ रुपये या उसके हिस्से पर TER में 0.05% की कमीहर 5,000 करोड़ रुपये या उसके हिस्से पर TER में 0.05% की कमी
50,000 करोड़ रुपये से ऊपर1.05%0.8%

इस तरह, जैसे-जैसे किसी फंड का आकार बड़ा होता है, निवेशकों के लिए खर्च का बोझ यानी TER कम होता जाता है.

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पैसिव फंड्स में TER की सीमा कितनी है?

पैसिव यानी इंडेक्स फंड्स, ईटीएफ या क्लोज-एंडेड स्कीम्स में भी खर्च की एक तय सीमा होती है जिसे टोटल एक्सपेंस रेशियो कहा जाता है. फिलहाल नियम यह है कि इक्विटी फंड ऑफ फंड स्कीम्स पर अधिकतम 2.25 प्रतिशत तक का TER लगाया जा सकता है. नॉन-इक्विटी फंड ऑफ फंड स्कीम्स के लिए यह सीमा 2 प्रतिशत है. क्लोज-एंडेड इक्विटी या इंटरवल स्कीम के लिए 1.25 प्रतिशत और नॉन-इक्विटी ओरिएंटेड क्लोज-एंडेड या इंटरवल स्कीम, इंडेक्स फंड्स और ईटीएफ के लिए 1 प्रतिशत तक की सीमा तय की गई है.

इक्विटी फंड ऑफ फंड स्कीम्स के लिए 2.25%

नॉन-इक्विटी फंड ऑफ फंड स्कीम्स के लिए 2%

क्लोज-एंडेड इक्विटी स्कीम या इंटरवल स्कीम के लिए 1.25%

नॉन-इक्विटी ओरिएंटेड क्लोज-एंडेड या इंटरवल स्कीम, इंडेक्स फंड्स/ETF और ऐसे फंड ऑफ फंड्स जो लिक्विड इंडेक्स फंड्स या ETF में निवेश करते हैं, उनके लिए 1%

आप चाहे एकमुश्त निवेश करें या एसआईपी के जरिए धीरे-धीरे पैसा लगाएं, यह खर्च हर हाल में लागू होता है. जब तक TER सेबी की तय सीमा के भीतर रहता है, तब तक फंड हाउस अपने संचालन से जुड़े अलग-अलग खर्चों को उसी सीमा के भीतर समायोजित कर सकता है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि म्यूचुअल फंड्स जो रोजाना एनएवी घोषित करते हैं, वह खर्च घटाने के बाद की नेट वैल्यू होती है. यानी निवेशक को अलग से एक्सपेंस रेशियो चुकाना नहीं पड़ता. लेकिन इसका सीधा असर स्कीम की नेट वैल्यू पर पड़ता है. जितना कम एक्सपेंस रेशियो होगा, स्कीम का एनएवी उतना ही अधिक होगा और लंबे समय में निवेशकों को उतना ही बेहतर रिटर्न मिलेगा.

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अगर आप चाहते हैं कि निवेश की लागत कम रहे तो म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट प्लान एक बेहतर विकल्प हो सकता है.

म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने के दो रास्ते होते हैं जिन्हें डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान कहा जाता है. डायरेक्ट प्लान में निवेशक सीधे फंड हाउस से निवेश करता है. इसमें किसी डिस्ट्रीब्यूटर, रिलेशनशिप मैनेजर या एजेंट की जरूरत नहीं पड़ती. चूंकि इसमें कोई बिचौलिया शामिल नहीं होता और कमीशन भी नहीं देना पड़ता, इसलिए डायरेक्ट प्लान का एक्सपेंस रेशियो रेगुलर प्लान की तुलना में कम होता है.

इस समय सक्रिय रूप से प्रबंधित इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट और रेगुलर प्लान के बीच खर्च का अंतर 0.3 प्रतिशत से 2.6 प्रतिशत तक हो सकता है और औसतन यह अंतर करीब 1.2 प्रतिशत होता है. पहली नजर में 0.5 से 1 प्रतिशत का फर्क मामूली लग सकता है लेकिन लंबे समय में यही छोटा सा फर्क आपके निवेश पर मिलने वाले रिटर्न और बनने वाली कुल पूंजी पर बड़ा असर डाल देता है.

 डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान में बनने वाले कॉर्पस के बीच फर्क

डायरेक्ट प्लानरेगुलर प्लान (0.5% ज्यादा एक्सपेंस रेशियो)रेगुलर प्लान (1% ज्यादा एक्सपेंस रेशियो)
निवेश रकम ( रुपये में)10,00,00010,00,00010,00,000
30 साल बाद वैल्यू (रुपये में)2,99,59,9222,61,96,6662,28,92,297
फर्क (रुपये में )37,63,25670,67,626

इस कैलकुलेशन में 12% की कम्पाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) मानी गई है. यह सिर्फ उदाहरण के तौर पर समझाने के लिए है.

मान लीजिए आपने 10 लाख रुपये का निवेश किया होता. ऊपर दिए गए उदाहरण के मुताबिक डायरेक्ट प्लान में यह राशि 30 साल बाद बढ़कर करीब 2.99 करोड़ रुपये हो जाती, अगर 12 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर यानी CAGR मान ली जाए.

लेकिन अगर यही निवेश रेगुलर प्लान में किया जाता और एक्सपेंस रेशियो महज 0.5 प्रतिशत ज्यादा होता, तो वही रकम 30 साल में घटकर करीब 2.62 करोड़ रुपये रह जाती, यानी लगभग 37.6 लाख रुपये का सीधा नुकसान.

स्पष्ट है कि एक्सपेंस रेशियो आपके लंबे समय के कॉर्पस को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है.

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कुल मिलाकर, म्यूचुअल फंड स्कीम चुनते समय टोटल एक्सपेंस रेशियो यानी TER एक अहम पैरामीटर होता है. लेकिन सिर्फ कम TER देखकर ही यह मान लेना सही नहीं है कि वह फंड आपके लिए बेहतर साबित होगा. निवेश का फैसला केवल TER के आधार पर नहीं किया जा सकता.

आपको इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि TER कम हो ताकि निवेश की लागत पर ज्यादा बोझ न पड़े, लेकिन इसके साथ ही कई अन्य पहलुओं का भी आकलन करना जरूरी है. इनमें स्कीम के रिटर्न्स का अलग-अलग समयावधियों और बाजार की परिस्थितियों में प्रदर्शन, जोखिम अनुपात, पोर्टफोलियो की बनावट जैसे शीर्ष दस शेयर और शीर्ष पांच सेक्टर, पोर्टफोलियो टर्नओवर, फंड मैनेजमेंट टीम की साख, फंड किस दक्षता से अपने एसेट अंडर मैनेजमेंट का प्रबंधन करता है और उसकी निवेश प्रक्रिया व सिस्टम शामिल हैं.

एक अच्छी म्यूचुअल फंड स्कीम को अपने खर्च अनुपात को सही ठहराने के लिए आकर्षक प्रदर्शन का ट्रैक रिकॉर्ड दिखाना चाहिए.

और सबसे अहम बात यह है कि म्यूचुअल फंड में निवेश हमेशा सोच-समझकर करें. इसमें अपनी जोखिम लेने की क्षमता, अपने कुल निवेश पोर्टफोलियो, जिन वित्तीय लक्ष्यों को आप हासिल करना चाहते हैं और उन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उपलब्ध समय को ध्यान में रखना चाहिए.

बिना सोचे-समझे या एड-हॉक तरीके से निवेश करने से बचें.

सोच-समझकर निवेश कीजिए और निवेश का सफर खुशहाल बनाइए.

डिसक्लेमर: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है. इसे किसी भी तरह से शेयर खरीदने या बेचने की सिफारिश नहीं माना जाना चाहिए. हमारी सिफारिश सेवाओं के बारे में अधिक जानने के लिए आप यहां देख सकते हैं.

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Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy. 

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