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Sharpe Ratio Explained : शार्प रेशियो का इस्तेमाल सही म्यूचुअल फंड स्कीम चुनने में काफी मददगार साबित हो सकता है. (Image : Pixabay)
Mutual Fund Investment : Sharpe Ratio Explained : अपने लिए म्यूचुअल फंड सेलेक्ट करते समय निवेशक आम तौर पर उस स्कीम के पिछले रिटर्न के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. लेकिन सही स्कीम का चुनाव करने के लिए सिर्फ पिछले रिटर्न को आधार बनाना काफी नहीं है. स्कीम के पिछले रिटर्न के साथ ही साथ उसमें शामिल रिस्क को देखना भी जरूरी है. ताकि हम यह समझ सकें कि पिछला रिटर्न जेनरेट करने के लिए उस स्कीम ने कितना रिस्क उठाया है. एक अच्छी स्कीम में रिस्क और रिटर्न का सही बैलेंस होना जरूरी है.
रिस्क एडजस्टेड रिटर्न को समझना जरूरी
अगर दो स्कीम्स का रिटर्न एक बराबर है, लेकिन उनमें से एक में रिस्क कम है और दूसरे में अधिक, तो जाहिर है कि कम रिस्क वाली स्कीम निवेश के लिए बेहतर मानी जाएगी. इस बारे में सही फैसला लेने के लिए किसी स्कीम के सिर्फ रिटर्न को नहीं, बल्कि रिस्क एडजस्टेड रिटर्न को देखना बेहतर तरीका हो सकता है. इस रिस्क एडजस्टेड रिटर्न को देखने का ही एक तरीका है शार्प रेशियो (Sharpe Ratio). इससे निवेशकों को यह समझने में मदद मिलती है कि किसी फंड के रिटर्न में कितना रिस्क शामिल है.
शार्प रेशियो क्या है?
शार्प रेशियो गणित का एक फॉर्मूला है, जिसे नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री विलियम एफ शार्प (William F. Sharpe) ने विकसित किया है. इस फार्मूले से पता चलता है कि किसी फंड ने एक्स्ट्रा रिटर्न हासिल करने के लिए कितना रिस्क लिया है. इसे कैलकुलेट करने का फॉर्मूला है:
शार्प रेशियो (Sharpe Ratio) = (फंड का औसत रिटर्न - रिस्क-फ्री रिटर्न) / फंड रिटर्न का स्टैंडर्ड डेविएशन
यहां फंड के औसत रिटर्न का मतलब है किसी खास अवधि के दौरान फंड का कुल औसत रिटर्न, जबकि रिस्क-फ्री रिटर्न का मतलब है रिटर्न की वो दर या रेट, जो किसी सरकारी स्कीम या बॉन्ड जैसे बिना जोखिम वाले निवेश पर मिलती है. वहीं, स्टैंडर्ड डेविएशन से म्यूचुअल फंड के रिटर्न में होने वाले उतार-चढ़ाव का पता चलता है. अगर स्टैंडर्ड डेविएशन ज्यादा है, तो उसका मतलब यह है कि फंड के रिटर्न में उतार-चढ़ाव अधिक हो रहे हैं, जिससे ज्यादा रिस्क का संकेत मिलता है.
शार्प रेशियो कम-ज्यादा होने से क्या पता चलता है?
ऊपर बताए गए फॉर्मूले के आधार पर किसी फंड का शार्प रेशियो निकाला जाता है. अगर किसी फंड का शार्प रेशियो ज्यादा है, तो इसका मतलब है कि वह स्कीम रिस्क के हिसाब से बेहतर रिटर्न दे रही है. वहीं शार्प रेशियो कम होने का मतलब है, रिटर्न के हिसाब से फंड में रिस्क अधिक है. यानी शार्प रेशियो जितना ऊंचा होगा, रिस्क-रिटर्न बैलेंस के लिहाज से फंड को उतना बेहतर माना जाएगा.
शार्प रेशियो के बारे में जानना क्यों जरूरी है?
शार्प रेशियो निवेशकों को यह समझने में मदद करता है कि किसी म्यूचुअल फंड के रिस्क और रिटर्न का बैलेंस ठीक है या नहीं. इसकी मदद से इनवेस्टर अपनी रिस्क लेने की क्षमता के लिहाज से निवेश से जुड़े सही फैसले कर सकते हैं. अगर किसी फंड का शार्प रेशियो बेहद कम या निगेटिव है, तो निवेशकों को उसमें निवेश का फैसला करने से पहले दस बार सोचना चाहिए.
उदाहरण की मदद से समझें शार्प रेशियो की अहमियत
मान लीजिए हमारे पास दो म्यूचुअल फंड हैं:
फंड A का सालाना रिटर्न 12%, रिस्क फ्री रिटर्न 6% और स्टैंडर्ड डेविएशन 8% है.
फंड B का सालाना रिटर्न 14%, रिस्क फ्री रिटर्न 6% और स्टैंडर्ड डेविएशन 10% है.
अब ऊपर दिए फॉर्मूले के हिसाब से इन दोनों का शार्प रेशियो निकालते हैं.
फंड A का शार्प रेशियो = (12-6) / 8 = 0.75
फंड B का शार्प रेशियो = (14-6) / 10 = 0.80
ऊपर दिए उदाहरण में फंड B का रिटर्न ज्यादा है, लेकिन उसका स्टैंडर्ड डेविएशन यानी रिस्क भी अधिक है. यही वजह है कि दोनों फंड्स के शार्प रेशियो में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. फिर भी शार्प रेशियो के लिहाज से फंड B थोड़ा बेहतर ऑप्शन हो सकता है, क्योंकि वह रिस्क के बदले में ज्यादा रिटर्न भी दे रहा है.
लेकिन अगर दोनों फंड्स का रिटर्न बराबर होता, यानी फंड B का सालाना रिटर्न 12%, रिस्क फ्री रिटर्न 6% और स्टैंडर्ड डेविएशन 10% होता, तो उसका शार्प रेशियो 0.60 होता ((12-6) / 10 = 0.60). ऐसे में फंड A को कम रिस्क में उतना ही रिटर्न देने की वजह से बेहतर माना जाता.
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शार्प रेशियो की लिमिटेशन
शार्प रेशियो निवेशकों के लिए काफी उपयोगी फॉर्मूला है, लेकिन इसकी कुछ लिमिटेशन्स भी हैं. सबसे पहली बात तो यह कि शार्प रेशियो का कैलकुलेशन पिछले आंकड़ों के आधार पर किया जाता है, इसलिए इसे पक्के तौर पर किसी फंड के भविष्य के प्रदर्शन का संकेत देने वाला नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा इसमें हर तरह की अस्थिरता यानी डेविएशन को एक जैसा ही माना जाता है. जबकि बाजार में अस्थिरता की वजह और उसका असर अलग-अलग हो सकता है. इसके अलावा रेशियो कैलकुलेट करते समय अगर रिस्क-फ्री रिटर्न और स्टैंडर्ड डेविएशन की अवधि में थोड़ा-बहुत बदलाव हो जाए, तो नतीजे अलग-अलग आ सकते हैं. यानी इस रेशियो पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता. यह भी देखना जरूरी है कि इसे कैलकुलेट करते समय इस्तेमाल किया गए आंकड़े कितनी वैलिड हैं.
शार्प रेशियो का सही इस्तेमाल कैसे करें?
ऊपर बताई गई लिमिटेशन्स के बावजूद शार्प रेशियो का इस्तेमाल निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स की तुलना करने में मदद जरूर करता है. क्योंकि इसकी मदद से वे फंड में रिस्क-रिटर्न के बैलेंस को समझ पाते हैं. फिर भी सही फैसले तक पहुंचने के लिए सिर्फ शार्प रेशियो पर भरोसा करने की जगह इसे दूसरे पैरामीटर्स के साथ जोड़कर देखना जरूरी है. मिसाल के तौर पर फंड का ट्रैक रिकॉर्ड, एसेट एलोकेशन, एक्सपेंस रेशियो, मौजूदा मार्केट कंडीशन्स और भविष्य की संभावनाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए.