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Loan Against Mutual Fund vs Withdrawal : अचानक पैसों की जरूरत हो तो क्या है बेहतर ऑप्शन? (Image : Freepik)
Loan Against Mutual Fund vs Withdrawal : अगर आपको किसी इमरजेंसी में पैसों की जरूरत पड़ जाए और आपके पास म्यूचुअल फंड में किया गया निवेश मौजूद हो, तो क्या करना चाहिए? क्या आपको अपने फंड को रिडीम करके यानी फंड की यूनिट्स बेचकर पैसे निकाल लेने चाहिए? या फिर फंड के बदले लोन लेने (Loan Against Mutual Fund) का ऑप्शन बेहतर होगा? किसी निवेशक के लिए इस सवाल का जवाब क्या होना चाहिए, इसे समझने के लिए दोनों विकल्पों से जुड़े नफा-नुकसान पर गौर करना जरूरी है.
म्यूचुअल फंड से पैसे निकाल लें तो क्या होगा
म्यूचुअल फंड से पैसे निकालना सबसे सीधा तरीका है. आप अपने म्यूचुअल फंड हाउस या ऑनलाइन इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म के जरिये अपने यूनिट्स बेच सकते हैं. पैसा आमतौर पर 1 से 3 वर्किंग डेज में आपके बैंक खाते में आ जाता है.
इसमें फायदा ये है कि आपको तुरंत कैश मिल जाएगा. किसी तरह के लोन अप्रूवल की जरूरत नहीं होगी. साथ ही, न तो कोई कर्ज चुकाना होगा और न ही ब्याज देना पड़ेगा.
लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर अगर आपने हाल ही में निवेश किया है, तो कुछ फंड्स पर एग्जिट लोड लग सकता है, जो करीब 1% तक हो सकता है. इसके अलावा, आपने निवेश को जितने समय तक होल्ड किया है, उस हिसाब से कैपिटल गेन टैक्स भी देना पड़ सकता है. चाहे वो इक्विटी फंड हो या डेट फंड.
सबसे बड़ा नुकसान ये है कि आपने जो फंड रिडीम किया, उस पर अब आपको मार्केट की आगे की ग्रोथ का लाभ नहीं मिल पाएगा. यानी आपको भविष्य में होने वाली संभावित कमाई से हाथ धोना होगा.
लेकिन इन बातों के बावजूद अगर आप बहुत बड़ी इमरजेंसी में हैं, जिसमें आपको फौरन पैसे चाहिए और ये भरोसा नहीं है कि फंड पर लोन लेने के बाद आप उसे चुकाने का इंतजाम आसानी से कर पाएंगे या नहीं, तो यह तरीका बेहतर हो सकता है.
म्यूचुअल फंड पर लोन लेना कितना सही?
अब बहुत सारे बैंक और एनबीएफसी म्यूचुअल फंड यूनिट्स को गिरवी रखकर लोन देने की सुविधा देते हैं. इसमें आपकी यूनिट्स को बेचा नहीं जाता, बल्कि कुछ समय के लिए “प्लेज” कर दिया जाता है.
कैसे मिलता है म्यूचुअल फंड पर लोन
आपको किसी ऐसे लेंडर के पास जाना होगा जो म्यूचुअल फंड के बदले लोन देता हो. इसके लिए उसका फंड हाउस से टाई-अप होता है, जिसके तहत लेंडर आपकी फंड यूनिट्स को लॉक करके उनकी मौजूदा वैल्यू के 50% से 70% के बराबर रकम का लोन दे सकता है. लोन देते समय उसकी अवधि और ब्याज दर तय की जाती है. जब आप लोन चुका देते हैं, तो आपकी यूनिट्स फिर से फ्री हो जाती हैं.
ऐसा करने का फायदा ये है कि इसमें आपका निवेश बरकरार रहता है और उसमें आगे भी ग्रोथ की संभावना बनी रहती है. कई बैंक ऑनलाइन प्रोसेस के जरिये लोन फटाफट अप्रूव कर देते हैं. कुछ लेंडर्स केवल इस्तेमाल किए गए अमाउंट पर ही ब्याज लेते हैं, न कि पूरे सैंक्शन लिमिट पर.
लेकिन इसमें जोखिम भी हैं. यह लोन है, इसलिए चुकाना तो पड़ेगा ही. अगर लोन ज्यादा समय तक चला, तो ब्याज का खर्च और बड़ा हो सकता है. साथ ही, अगर आप लोन का भुगतान नहीं कर पाए, तो बैंक आपके यूनिट्स बेच देगा. हर लेंडर हर फंड को स्वीकार नहीं करता, और लोन अमाउंट भी सीमित होता है.
कब सही है ये तरीका?
अगर आपको थोड़े समय के लिए पैसों की जरूरत है और आपको भरोसा है कि आप लोन को जल्द ही चुका सकते हैं, तब लोन लेना बेहतर विकल्प हो सकता है.
फैसले से पहले इन बातों पर गौर करें
अगर आपको कुछ हफ्तों या महीनों के लिए ही पैसा चाहिए, और आप जल्दी चुकाने की स्थिति में हैं, तो लोन लेना बेहतर है क्योंकि आपका निवेश जारी रहता है.
अगर आप लोन के बोझ से बचना चाहते हैं या आपको नहीं लगता कि आप समय पर भुगतान कर पाएंगे, तो बेहतर होगा कि आप फंड रिडीम कर लें. इससे कोई कर्ज नहीं रहेगा और मन की शांति बनी रहेगी.
ध्यान रखें कि अगर फंड निकालने पर टैक्स या एग्जिट लोड ज्यादा लग रहा है, तो लोन लेना फायदे का सौदा हो सकता है. लेकिन अगर जरूरत बहुत इमरजेंसी वाली है, तो रिडेम्पशन का रास्ता तेज और आसान होता है.
हर फैसले से पहले लागत, टैक्स और अपनी लोन चुकाने की क्षमता को जरूर ध्यान में रखें.