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Mutual Fund Portfolio Review: नए साल की शुरुआत में ही अपने म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो का रिव्यू कर लेना समझदारी भरा कदम है. (Image : Pixabay)
Review Your Mutual Fund Portfolio in New Year : नए साल की शुरुआत के साथ ही अपने म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो का रिव्यू कर लेना एक समझदारी भरा कदम है. अगर आप समय रहते अपने पोर्टफोलियो की सही ढंग से समीक्षा करके उसमें जरूरी कमियों को दूर कर लेते हैं यानी उसे पहले से ज्यादा फिट बना लेते हैं, तो आपकी लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए यह एक अच्छा कदम साबित हो सकता है. इससे न सिर्फ आपका निवेश सही दिशा में आगे बढ़ता है, बल्कि यह भी साफ हो जाता है कि आपका इनवेस्टमेंट आपके फाइनेंशियल गोल के हिसाब से सही प्रदर्शन कर रहा है या नहीं. यही वजह है कि अपने पोर्टफोलियो का आकलन करना और बेंचमार्क्स या दूसरी स्कीम्स से तुलना करके उसे ठीक करना जरूरी है.
1. केवल NAV देखना काफी नहीं
कई निवेशक केवल अपने फंड्स के नेट एसेट वैल्यू (NAV) या पिछली परफॉर्मेंस को देखकर संतुष्ट हो जाते हैं. हालांकि, यह तरीका काफी नहीं है. किसी भी फंड की सफलता का आकलन उसके बेंचमार्क और समान कैटेगरी के दूसरे फंड्स से तुलना के आधार पर करना चाहिए. अगर आपका फंड लगातार अपने बेंचमार्क और दूसरे फंड्स से पीछे रह रहा है, तो यह सोचने का समय है कि वह फंड आपके पोर्टफोलियो में क्यों होना चाहिए.
2. इक्विटी फंड्स में मीडियम से लॉन्ग टर्म नजरिया बेहतर है
इक्विटी-आधारित म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते समय, मीडियम से लॉन्ग टर्म प्रदर्शन पर ध्यान देना बेहतर रहता है. बाजार की अस्थिरता के कारण शॉर्ट टर्म गिरावट से ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए. लेकिन अगर कोई फंड 3 से 5 साल तक लगातार खराब प्रदर्शन करता है, तो यह फंड बदलने का संकेत हो सकता है.
3. डेट फंड्स में क्रेडिट क्वॉलिटी और रिस्क का विश्लेषण करें
डेट म्यूचुअल फंड्स के मामले में केवल हाई रिटर्न पर फोकस करना ठीक नहीं है. इसके बजाय, निवेशकों को फंड की क्रेडिट क्वालिटी, अवधि, और ब्याज दर के रिस्क मैनेजमेंट का भी आकलन करना चाहिए. एक अच्छे डेट फंड का सेलेक्शन करना आपको स्टेबल और रिस्क एडजस्टेड रिटर्न दिला सकता है.
4. NFO में सावधानी से करें निवेश
कई निवेशक नए फंड ऑफर (NFO) में केवल 10 रुपये के कम शुरुआती मूल्य के कारण निवेश कर देते हैं. लेकिन यह सही एप्रोच नहीं है. एनएफओ में निवेश करने से पहले फंड की थीम, मैनेजमेंट स्टाइल और लॉन्ग टर्म संभावनाओं का मूल्यांकन करना चाहिए. अगर एनएफओ का प्रदर्शन एक साल के बाद भी खराब रहता है, तो इसे छोड़ना बेहतर हो सकता है.
5. इक्विटी और डेट फंड्स का अनुपात बनाए रखें
जो निवेशक अपने निवेश को खुद से मैनेज करते हैं, उन्हें अपने पोर्टफोलियो की हर साल समीक्षा करनी चाहिए. रिव्यू करते समय यह जरूर देख लें कि पोर्टफोलियो आपके निवेश के लक्ष्यों और रिस्क बर्दाश्त करने की क्षमता के हिसाब से सही बना हुआ है या नहीं. अगर आपने अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी और डेट फंड्स का अनुपात 80:20 का रखा है, तो बीच-बीच में देख लेना चाहिए कि कहीं यह बैलेंस बिगड़ तो नहीं रहा है. साथ ही, पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन बनाए रखना और टैक्स से जुड़े नियमों में होने वाले बदलावों का ध्यान रखना भी जरूरी है.
6. पुरानी टैक्स रिजीम के तहत निवेश का आकलन
अगर आप पुरानी टैक्स रिजीम के तहत आते हैं, तो वित्त वर्ष के अंत से पहले सेक्शन 80सी के तहत अपने निवेश के टारगेट को पूरा जरूर कर लें. ELSS जैसे टैक्स सेविंग फंड्स न सिर्फ टैक्स बेनिफिट देते हैं, बल्कि लॉन्ग टर्म में कैपिटल ग्रोथ में भी मददगार साबित होते हैं.
7. निवेश के लक्ष्य से भटकें नहीं
निवेशकों के लिए यह समझना जरूरी है कि मार्केट में उतार-चढ़ाव का दौर चलता रहता है. इसलिए शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव की वजह से परेशान होकर अपने निवेश के लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए. निवेश के अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए रेगुलर इनवेस्टमेंट जारी रखना चाहिए. तभी लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन का मकसद पूरा हो सकता है.