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mutual funds new rules : म्यूचुअल फंड पहले से ही मैनेजमेंट फीस लेते हैं, जिसका एक हिस्सा AMC (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) की अपनी रिसर्च के लिए होता है. (Pixabay)
mutual fund investments become cheaper : मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने म्यूचुअल फंड की फ्री स्ट्रक्चर में एक बड़ा बदलाव किए जाने का प्रपोजल रखा है. जिसका उद्देश्य निवेशकों के हित में फंड हाउस (AMC) द्वारा वसूली जाने वाली फीस को कम करना है. टोटल एक्सपेंस रेश्यो में बदलाव लाना है. साथ ही म्यूचुअल फंड के नियमें में पारदर्शिता लाना है. सेबी का मानना है कि इससे निवेशकों के लिए लेन देन की लागत कम होगी और उनका रिटर्न बेहतर होगा. फिहाल सेबी ने इस प्रपोजल पर 17 नवंबर 2025 तक लोगों से सलाह मांगी है.
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ब्रोकरेज और एक्सपेंस रेश्यो के नियम
जब म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) किसी भी शेयर या सिक्योरिटी को खरीदते या बेचते हैं, तो वे ब्रोकर को एक कमीशन या फीस देते हैं, जिसे ब्रोकरेज कहते हैं. यह ब्रोकरेज काफी ज्यादा हो सकती है. यह इक्विटी शेयरों के हर ट्रेड पर 0.12% तक, डेरिवेटिव्स के हर ट्रेड पर 0.05% तकहोता है. सबसे जरूरी बात यह है कि यह ब्रोकरेज फंड के कुल खर्च अनुपात (टोटल एक्सपेंस रेश्यो) का हिस्सा नहीं होती है. यानी यह TER की सीमा के ऊपर निवेशकों से वसूली जाती है.
सेबी को क्या चिंता है? : सेबी ने देखा कि आर्बिट्रेज फंड्स (जिनमें रिसर्च का काम कम होता है) अन्य इक्विटी फंड्स की तुलना में बहुत कम ब्रोकरेज देते हैं. सेबी को लगता है कि अन्य इक्विटी फंड्स जानबूझकर ज्यादा ब्रोकरेज दे रहे हैं. सेबी को लगता है कि यह ज्यादा ब्रोकरेज दरअसल रिसर्च की फीस के रूप में दी जा रही है, जो निवेशकों के हित में नहीं है.
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सेबी नया प्रस्ताव
म्यूचुअल फंड पहले से ही मैनेजमेंट फीस लेते हैं, जिसका एक हिस्सा AMC (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) की अपनी रिसर्च के लिए होता है. सेब का मानना है कि जब रिसर्च की फीस पहले ही ली जा रही है, तो म्यूचुअल फंड को ज्यादा ब्रोकरेज देने और उसे TER (Expense Ratio) की सीमा से बाहर निवेशकों से वसूलने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए?
कैपिटल माइंड एएमसी के सीईओ, दीपक शेनाय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (एक्स) पर कहा कि सेबी की सोच है कि अगर ज्यादा ब्रोकरेज केवल रिसर्च के लिए दी जा रही है, तो वह निवेशकों पर अलग से न थोपी जाए, बल्कि उसे फंड के बेस TER के अंदर ही शामिल किया जाए. सेबी ने यह भी कहा है कि इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देने के लिए आप स्वतंत्र हैं.
सेबी ने ब्रोकरेज की अधिकतम सीमा को कम करने का प्रस्ताव दिया है. इक्विटी शेयरों के लिए इसे 12 बेसिस प्वॉइंट से घटाकर 2 बेसिस प्वॉइंट करने का प्रस्ताव है. डेरिवेटिव्स के लिए इसे 5 बेसिस प्वॉइंट से घटाकर 1 बेसिस प्वॉइंट करने का प्रस्ताव है.
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क्या होगा फायदा?
दीपक शेनाय का कहना है कि अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है, तो इससे इंस्टीट्यूशनल ब्रोकर्स की कमाई में कमी आने की संभावना है. यह निवेशकों के लिए एक बहुत अच्छा कदम है. इसे लागे होने पर लेन-देन की लागत (ट्रांजेक्शन कास्ट) कम होगी, जिससे निवेशकों को सीधा फायदा होगा.
टोटल एक्सपेंस रेश्यो से हटेंगे ये चार्ज
सेबी का प्रपोजल है कि म्यूचुअल फंड के खर्च (एक्सपेंस रेश्यो) की लिमिट में से सरकारी टैक्स जैसे STT, GST, CTT और स्टाम्प ड्यूटी को बाहर रखा जाए.। अभी ब्रोकरेज, एक्सचेंज और रेगुलेटरी फीस जैसे खर्चे भी इसमें शामिल होते हैं.
फिलहाल, मैनेजमेंट फीस पर लगने वाला GST, टोटल एक्सपेंस रेश्यो से बाहर रखा जाता है. लेकिन बाकी सभी सरकारी टैक्स TER में शामिल होते हैं. इसका मतलब है कि अगर भविष्य में सरकारी टैक्स बढ़ते हैं, तो उसका बोझ सीधे निवेशकों पर पड़ता है.
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के अनुसार SEBI ने साफ किया है कि टोटल एक्सपेंस रेश्यो में स्कीम का खर्च, ब्रोकरेज, एक्सचेंज और रेगुलेटरी फीस शामिल होंगे. इसका मतलब है कि अब फंड कंपनियों को TER के हर खर्च का पूरा विवरण साफ-साफ बताना होगा, ताकि निवेशकों को पूरी पारदर्शिता मिले.
(नोट : इस आर्टिकल का उद्देश्य जानकारी देना है, ना कि यह निवेश की सलाह है. बाजार में जोखिम होता है, इसलिए निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह लें.)
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