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New Income Tax Regime : नई टैक्स रिजीम में 12 लाख रुपये तक की सालाना आय टैक्स-फ्री है. इसके अलावा कुछ टैक्स बेनिफिट्स भी लिए जा सकते हैं. (Image : Freepik)
Income Tax Benefits Under New Tax Regime :नई टैक्स रिजीम अपनाने वाले लोगों को लगता है कि इससे टैक्स बचाने के सभी रास्ते बंद हो गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. हालांकि नई टैक्स रिजीम में ज्यादातर पुराने टैक्स डिडक्शन्स और एग्जम्प्शन्स लागू नहीं होते, फिर भी कुछ टैक्स बेनिफिट अब भी मौजूद हैं. सही जानकारी होने से आप इनका फायदा लेकर अपनी टैक्सेबल इनकम और टैक्स देनदारी कम कर सकते हैं. आइए जानते हैं ऐसे कौन-कौन से टैक्स-बेनिफिट हैं, जो नई टैक्स रिजीम में भी मौजूद हैं.
1. NPS और EPF में एम्प्लॉयर कंट्रीब्यूशन टैक्स-फ्री
अगर आपके एम्प्लॉयर आपके नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) या एंप्लॉइज प्रॉविडेंट फंड (EPF) में कंट्रीब्यूशन करते हैं, तो आपको इस पर टैक्स छूट मिलती है. इसके लिए सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के लिए अलग-अलग लिमिट तय की गई है. प्राइवेट सेक्टर के एंप्लॉयर द्वारा कर्मचारी की सैलरी (बेसिक + डीए) के 10% तक कंट्रीब्यूशन पर टैक्स डिडक्शन का लाभ मिलता है. वहीं, सरकारी कर्मचारियों को यह लाभ सैलरी (बेसिक + डीए) के 14% तक कंट्रीब्यूशन पर मिलता है. मिसाल के तौर पर अगर मंथली बेसिक सैलरी + डीए मिलाकर 1 लाख रुपये होते हैं, तो प्राइवेट सेक्टर एम्प्लॉयर की तरफ से NPS में हर महीने अधिकतम 10,000 रुपये का कंट्रीब्यूशन टैक्स-फ्री होगा. सरकारी कर्मचारियों के लिए यह मंथली कंट्रीब्यूशन अधिकतम 14 हजार रुपये हो सकता है. इसके अलावा एंप्लाईज प्रॉविडेंट फंड (EPF) में एम्प्लॉयर की तरफ से किया जाने वाला कंट्रीब्यूशन भी टैक्स फ्री होता है. यह योगदान सैलरी के 12% के बराबर होता है.
2. किराए पर दिए गए घर के होम लोन का ब्याज
अगर आपने कोई घर होम लोन लेकर खरीद है और फिर उसे किराए पर दिया है, तो आपको होम लोन पर भरे जाने वाले ब्याज पर टैक्स छूट मिल सकती है. इसके लिए आप सेक्शन 24(b) के तहत, आप रेंटल इनकम से होम लोन के पूरे ब्याज को घटा सकते हैं. लेकिन अगर होम लोन पर भरे जा रहे ब्याज की रकम किराए से होने वाली आमदनी से अधिक है, तो इस घाटे को आप दूसरी आय, मसलन सैलरी या बिजनेस इनकम के साथ घटा या सेट-ऑफ नहीं कर सकते. साथ ही, इस नुकसान को आगे के वर्षों में कैरी फॉरवर्ड करने की भी छूट नहीं है. मिसाल के तौर पर अगर आप होम लोन पर हर साल 4 लाख रुपये ब्याज भर रहे हैं और उस घर से 5 लाख रुपये किराया कमा रहे हैं, तो आप इस इनकम से 4 लाख रुपये घटा सकते हैं. इस तरह सिर्फ 1 लाख की रेंटल इनकम टैक्सेबल होगी. वहीं, अगर आप 4 लाख रुपये ब्याज भरते हैं और किराया 2 लाख रुपये है, तो आपको 2 लाख रुपये की रेंटल इनकम पर टैक्स नहीं भरना होगा. लेकिन बाकी 2 लाख के घाटे को आप अपनी दूसरी इनकम से नहीं घटा पाएंगे. यानी डिडक्शन सिर्फ 2 लाख रुपये पर ही मिलेगा.
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3. लीव एनकैशमेंट और ग्रेच्युटी पर टैक्स छूट
नौकरी छोड़ने या रिटायरमेंट के समय अगर आपके पास छुट्टियां बची हैं और आपके एंप्लॉयर लीव एनकैशमेंट के तौर पर कोई भुगतान करते हैं, तो यह तय लिमिट के भीतर टैक्स-फ्री होता है. प्राइवेट सेक्यर के कर्मचारियों के लिए यह लिमिट अधिकतम 25 लाख रुपये है, जबकि सरकारी कर्मचारियों के लिए लीव एनकैशमेंट पूरी तरह टैक्स-फ्री है. इसी तरह, रिटायरमेंट या नौकरी छोड़ने पर मिलने वाली 20 लाख रुपये तक की ग्रेच्युटी भी टैक्स-फ्री होती है.
4. नई टैक्स रिजीम में ज्यादा है स्टैंडर्ड डिडक्शन
नई टैक्स रिजीम में सभी सैलरीड एम्प्लॉयी और पेंशनर्स को 75,000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा मिलता है. इस डिडक्शन को क्लेम करने के लिए आपको कोई इनवेस्टमेंट करने या किसी तरह का सर्टिफिकेट देने की जरूरत नहीं होती. यह डिडक्शन अपने आप ही आपकी टैक्सेबल इनकम से घटा दिया जाता है. यानी अगर आपकी सैलरी 16 लाख रुपये है, तो उसमें से 75,000 रुपये स्टैंडर्ड डिडक्शन के तौर पर घट जाएंगे और फाइनल टैक्सेबल सैलरी 15.25 लाख रुपये ही रह जाएगी. इससे आपकी कुल टैक्स देनदारी कम हो जाएगी.
5. इन गिफ्ट्स पर भी नहीं लगता टैक्स
नई टैक्स रिजीम में भी कुछ खास तरह के गिफ्ट्स टैक्स-फ्री होते हैं, जिससे आपको एडिशनल टैक्स बेनिफिट मिल सकते है. मिसाल के तौर पर माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन या बच्चों जैसे परिवार के नजदीकी सदस्यों से मिलने वाले गिफ्ट्स पूरी तरह टैक्स-फ्री होते हैं, चाहे उनकी रकम कितनी भी हो. दूसरे लोगों से मिलने वाले 50,000 रुपये तक के गिफ्ट्स भी टैक्स-फ्री होते हैं. इससे अधिक रकम को 'अन्य आय' मानकर उस पर टैक्स लगता है. लेकिन शादी के मौके पर मिले सभी गिफ्ट्स पूरी तरह टैक्स-फ्री होते हैं.
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नई टैक्स रिजीम में अब 12 लाख रुपये तक की सालाना आय टैक्स-फ्री हो चुकी है. अगर उसके साथ इन टैक्स बेनिफिट्स को भी जोड़ दिया जाए, तो नई रिजीम और भी ज्यादा आकर्षक हो जाएगी. टैक्सपेयर्स को अपने लिए सही टैक्स रिजीम का चुनाव करते समय इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए और दोनों रिजीम में टैक्स-देनदारी की तुलना करने के बाद फैसला करना चाहिए.
(डिस्क्लेमर : इस लेख का मकसद सिर्फ बेसिक जानकारी देना है. टैक्सपेयर्स को तमाम प्रावधानों और अपनी टैक्स देनदारी पर उनके असर को सही ढंग से समझने के लिए टैक्स एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए.)