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NFO और IPO के बीच कनफ्यूजन जितनी जल्दी दूर कर लिया जाए, उतना अच्छा है. (Image : Pixabay)
NFO vs IPO : म्यूचुअल फंड में निवेश की बात होने पर "एनएफओ" यानी न्यू फंड ऑफर का जिक्र भी होता है. लेकिन NFO का सही मतलब क्या है? किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए क्या एनएफओ का इंतजार करना चाहिए? या एनएफओ का सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने का मतलब निवेश की ट्रेन छूट जाना है? कई बार निवेशकों को ये कनफ्यूजन भी होता है कि एनएफओ भी कंपनियों के इनीशियल पब्लिक ऑफर यानी IPO जैसे ही होते हैं. यह तमाम सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब जितनी जल्दी समझ लिए जाएं, उतना बेहतर है.
क्या है NFO का मतलब?
NFO का मतलब है न्यू फंड ऑफर. म्यूचुअल फंड कंपनियां जब कोई नया फंड लॉन्च करती हैं, तो उसमें निवेश का पहला मौका एनएफओ के जरिये ही मिलता है. इसमें आमतौर पर निवेशकों को फंड की यूनिट्स 10 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से दी जाती हैं. बाद में इन यूनिट्स की कीमतों का निर्धारण बाजार में उसके नेट एसेट वैल्यू (NAV) के हिसाब से होता है. NFO का सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने के बाद भी निवेशक उस फंड में निवेश कर सकते हैं, लेकिन तब उन्हें फंड की यूनिट्स उस वक्त की NAV पर खरीदनी होती हैं. दरअसल म्यूचुअल फंड हाउस NFO के जरिये निवेशकों से फंड जुटाते हैं और फिर उसे स्कीम की निवेश रणनीति के हिसाब से बाजार में लगाते हैं.
IPO और NFO में अंतर
NFO और IPO के बीच पहली नजर में भले ही एक जैसे लगते हों, लेकिन दोनों में कई महत्वपूर्ण अंतर होते हैं. IPO में आप कंपनी के शेयर खरीदते हैं और उसके शेयरहोल्डर बनते हैं, जबकि NFO में आप म्यूचुअल फंड यूनिट्स खरीदते हैं, जो किसी एसेट क्लास जैसे इक्विटी, डेट या अन्य इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करती है. IPO में कंपनी के फंडामेंटल्स और संभावनाओं का आकलन करना जरूरी होता है, जबकि NFO में फंड की थीम और निवेश रणनीति को समझना आवश्यक है. दोनों के अंतर को नीचे दिए गए प्वाइंट्स की मदद से भी समझ सकते हैं.
पहले जानते हैं आईपीओ क्या होता है
IPO यानी इनीशियल पब्लिक ऑफर (Initial Public Offer) किसी कंपनी के शेयर बाजार में लिस्ट होने का पहला मौका होता है.
आईपीओ के जरिये कंपनी के शेयर की पब्लिक लिस्टिंग होती है. शेयर खरीदने वाले निवेशक, उस कंपनी के शेयरहोल्डर बन जाते हैं.
इसमें शेयर की इश्यू प्राइस कंपनी के फंडामेंटल्स, मुनाफे और मार्केट वैल्यूएशन के आधार पर तय होती है.
शेयर के इश्यू प्राइस को कंपनी के कारोबार के कुल मौजूदा वैल्यूएशन से भी जोड़ा जाता है.
आईपीओ में जारी किए जाने वाले एक शेयर की फेस वैल्यू भले ही 10 रुपये हो, उसकी इश्यू प्राइस आमतौर पर इससे काफी अधिक होती है.
जारी किए जाने के बाद शेयर की कीमत उस कंपनी के प्रदर्शन, डिमांड-सप्लाई और मार्केट सेंटिमेंट के आधार पर तय होती है.
अब बात करते हैं म्यूचुअल फंड NFO की
NFO यानी न्यू फंड ऑफर में म्यूचुअल फंड की यूनिट्स 10 रुपये के फिक्स प्राइस पर इश्यू की जाती हैं.
NFO में म्यूचुअल फंड यूनिट की कीमत का उस म्यूचुअल फंड हाउस या स्कीम लाने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के पिछले कारोबार के वैल्यूएशन से कोई लेना-देना नहीं होता.
यह कीमत फंड हाउस के पोर्टफोलियो की मौजूदा वैल्यू या AMC के पिछले प्रदर्शन से भी प्रभावित नहीं होती.
NFO के बाद यूनिट्स की कीमत उसकी NAV के आधार पर तय होती है, जो उस फंड के जरिये किए गए निवेश की लेटेस्ट वैल्यू के आधार पर तय होती हैं.
NFO का मकसद नया फंड लॉन्च करना होता है, जिसके जरिये जुटाई गई रकम को स्कीम की थीम और निवेश रणनीति के हिसाब अलग-अलग कंपनियों के शेयरों, डेट इंस्ट्रूमेंट्स या किसी और एसेट क्लास में निवेश किया जाता है.
NFO के बाद भी मिलता है निवेश का मौका
यह ध्यान रखना जरूरी है कि NFO का मतलब उस म्यूचुअल फंड में निवेश करने का आखिरी या सबसे महत्वपूर्ण मौका नहीं है. अगर आप किसी नए फंड की थीम या कंसेप्ट से प्रभावित हैं, तो NFO का सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने के कुछ दिन बाद भी उसमें निवेश कर सकते हैं. ओपन-एंडेड फंड्स में आप किसी भी समय NAV के आधार पर यूनिट्स खरीद सकते हैं. बल्कि किसी पुराने फंड की यूनिट्स खरीदने से पहले आपके पास उसके पिछले प्रदर्शन को देखने-परखने का मौका रहता है. इस आधार पर आप फंड मैनेजर के एप्रोच और विशेषज्ञता का अंदाजा भी लगा सकते हैं.
क्या NFO में निवेश करना चाहिए?
NFO में निवेश करना सही हो सकता है, लेकिन यह आपकी निवेश की प्राथमिकताओं और फंड की थीम पर निर्भर करता है. अगर फंड की थीम आकर्षक लगती है और यह आपकी लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल प्लानिंग से मेल खाती है, तो इसमें निवेश किया जा सकता है. NFO में निवेश करने से पहले उसे लॉन्च करने वाले फंड हाउस, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) और फंड मैनेजर के पिछले प्रदर्शन पर भी गौर करना चाहिए. एनएफओ में निवेश के लिए जल्दबाजी से काम न लें. अच्छी तरह रिसर्च करने और अपने निवेश सलाहकार से राय-मशविरा करने के बाद ही फैसला करें.
(डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सलाह देना नहीं. म्यूचुअल फंड का पिछला रिटर्न भविष्य में भी जारी रहने की गारंटी नहीं होती. निवेश से जुड़े फैसले सेबी से मान्यता प्राप्त इनवेस्टमेंट एडवाइजर की सलाह लेकर ही करें.)