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No Cost EMI : क्या आपको चुनना चाहिए नो कास्ट ईएमआई, पहले समझें कि कैसे काम करता है ये ऑफर

Low Cost EMI Trend Popular : फेस्टिव सीजन को देखते हुए एक बार फिर कई कंपनियों ने नो-कॉस्ट EMI की पेशकश ग्राहकों के बीच बढ़ा दी है. वैसे आज के डेट में बहुत से ग्राहक यह विकल्प खोजते भी हैं.

Low Cost EMI Trend Popular : फेस्टिव सीजन को देखते हुए एक बार फिर कई कंपनियों ने नो-कॉस्ट EMI की पेशकश ग्राहकों के बीच बढ़ा दी है. वैसे आज के डेट में बहुत से ग्राहक यह विकल्प खोजते भी हैं.

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Sushil Tripathi
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No Cost EMI : इसमें ब्याज को तीन तरीकों से समायोजित किया जाता है, सामान की कीमत में जोड़कर, प्रोसेसिंग फीस लगाकर, या फिर कैश/डिस्काउंट हटाकर. Photograph: (AI Image)

How No Cost EMI Loan Works : फेस्टिव सीजन को देखते हुए एक बार फिर कई कंपनियों ने नो-कॉस्ट EMI की पेशकश ग्राहकों के बीच बढ़ा दी है. वैसे आज के डेट में बहुत से ग्राहक यह विकल्प खोजते भी हैं. इसकी मदद से लोग महंगे सामान जैसे फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन, मोबाइल फोन और अन्य चीजें खरीद सकते हैं, बिना एक साथ पूरा पैसा चुकाए. इसमें आप किस्तों (EMI) में भुगतान करते हैं और यह मानकर कि आपके ईएमआई पर ब्याज नहीं लगेगा. यह स्कीम देखने में फायदेमंद लगती है, लेकिन इसे सही तरह से समझना जरूरी है. 

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1. नो-कॉस्ट EMI कैसे काम करता है?

पहला तरीका 

एक तरीका यह है कि अगर आप सीधे खरीदते हैं, तो आपको डिस्काउंट (छूट) मिलता है. 

लेकिन अगर आप नो-कॉस्ट EMI चुनते हैं, तो वह डिस्काउंट हटा दिया जाता है और आपको सामान की असली कीमत चुकानी पड़ती है.

उदाहरण के लिए : मान लीजिए किसी प्रोडक्ट की असली कीमत 10,000 रुपये है. सीधी खरीद पर 10% डिस्काउंट मिलता है, तो आपको यह 9,000 रुपये में मिलेगा. 

लेकिन अगर आप नो-कॉस्ट EMI चुनते हैं, तो आपको यह प्रोडक्ट किस्तों में 10,000 रुपये की कीमत पर ही खरीदना होगा. यानी आपको डिस्काउंट छोड़ना पड़ेगा.

दूसरा तरीका

नो-कॉस्ट EMI कैसे वसूली जाती है? मान लीजिए किसी सामान की कीमत 10,000 रुपये है. EMI पर ब्याज भी जोड़ दिया जाता है. जैसे, अगर 12 महीने के लिए ब्याज 2,000 (20%) है, तो यह रकम प्रोडक्ट की कीमत में जोड़ दी जाएगी.

इस स्थिति में आपको कुल 12,000 रुपये (1,000 × 12 किस्त या 2,000 × 6 किस्त) चुकाने होंगे.

तीसरा तरीका

तीसरा तरीका प्रोसेसिंग फीस से ब्याज कवर करना है. कभी-कभी लेंडर EMI पर जीरो इंटरेस्ट दिखाता है. लेकिन असली ब्याज को वह पहले ही प्रोसेसिंग फीस के रूप में वसूल लेता है.

कुल मिलाकर नो-कॉस्ट EMI के चक्कर में कई बार कंपनियां प्रोडक्ट पर मिलने वाले कैशबैक, कूपन और अन्य ऑफर्स छुपा देती है. इसके अलावा कई बाक प्रोडक्ट की कीमत बढ़ा भी देते हैं.

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2. नो-कॉस्ट EMI कब लेना चाहिए?

अगर आप कोई महंगा सामान खरीद रहे हैं और एक बार में पूरी रकम नहीं देना चाहते या नहीं दे सकते, तब यह विकल्प काम आता है. कई बार ऑनलाइन शॉपिंग पर क्रेडिट कार्ड से नो-कॉस्ट EMI लेने पर दुकानदार कैशबैक या डिस्काउंट भी देते हैं.

नो-कॉस्ट EMI से आप क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करके इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य सामान खरीद सकते हैं, बिना नया लोन लिए. इसमें कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं लगता और ग्राहक अपनी पसंद की महंगी चीजें आसानी से ले सकते हैं.

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3. नो-कॉस्ट EMI चुनने के पहले ध्यान रखें

अगर आप नो-कॉस्ट EMI पर प्रोडक्ट ले रहे हैं, तो पहले प्रोडक्ट का MRP और सेलिंग प्राइस चेक कर लें यानी चेक करें कि कहीं प्रोडक्ट की ज्यादा कीमत तो आपको नहीं बताई जा रही है. इसके अलावा अलग अलग कंपनी द्वारा दिए गए ऑफर्स की तुलना करें और देखें कि सीधा डिस्काउंट या फिर नो-कॉस्ट EMI क्या आपको सस्ता पड़ रहा है.

4. क्रेडिट स्कोर पर असर?

अगर आप नो-कॉस्ट EMI की किस्तें समय पर नहीं चुकाते, तो यह आपके क्रेडिट स्कोर पर बुरा असर डाल सकता है. 

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5. नो-कॉस्ट EMI बनाम रेगुलर EMI

नो-कॉस्ट EMI : इसमें ब्याज को तीन तरीकों से समायोजित किया जाता है, सामान की कीमत में जोड़कर, प्रोसेसिंग फीस लगाकर, या फिर कैश/डिस्काउंट हटाकर.

रेगुलर EMI : इसमें ब्याज की राशि हर EMI की किस्त में अलग से दिखाई जाती है.

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