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NPS में उम्र के हिसाब से क्यों तय होती है निवेश की रणनीति, क्या है इसका फॉर्मूला, आपके लिए कौन सा विकल्प होगा सही

नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) एक सरकारी निगरानी वाली पेंशन स्कीम है, जिसका मकसद रिटायरमेंट के बाद रेगुलर इनकम इंश्योर करना है. इस स्कीम में निवेशकों के पैसों को इनवेस्ट करते समय पोर्टफोलियो का एसेट एलोकेशन उम्र को ध्यान में रखते हुए किया जाता है.

नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) एक सरकारी निगरानी वाली पेंशन स्कीम है, जिसका मकसद रिटायरमेंट के बाद रेगुलर इनकम इंश्योर करना है. इस स्कीम में निवेशकों के पैसों को इनवेस्ट करते समय पोर्टफोलियो का एसेट एलोकेशन उम्र को ध्यान में रखते हुए किया जाता है.

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Viplav Rahi
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NPS एक लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट प्लान है, जो रिटायरमेंट के बाद आर्थिक रूप से बेहतर जिंदगी जीने में आपकी मदद कर सकता है. (Financial Express)

NPS Formula of Investment by Age : नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) एक सरकारी निगरानी वाली पेंशन स्कीम है, जिसका मकसद रिटायरमेंट के बाद रेगुलर इनकम इंश्योर करना है. इस स्कीम की खास बात यह है कि इसमें निवेशकों के पैसों को इनवेस्ट करते समय उनके पोर्टफोलियो का एसेट एलोकेशन उम्र को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. कम उम्र निवेशकों के ज्यादा पैसे इक्विटी यानी शेयर बाजार में डाले जाते हैं, जबकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इक्विटी एलोकेशन कम करके डेट (Debt) में आवंटन बढ़ाया जाता है. इस लेख में हम समझेंगे कि NPS में उम्र के हिसाब से निवेश कैसे काम करता है, इसका फॉर्मूला क्या है और आपके लिए कौन सा विकल्प सबसे सही रहेगा.

NPS में उम्र से क्यों जुड़ी है निवेश रणनीति?

ऐसा माना जाता है कि कम उम्र में निवेशको की रिस्क बर्दाश्त करने की क्षमता अधिक होती है. यही वजह है कि NPS में 35 साल की उम्र तक निवेशकों के पैसों का बड़ा हिस्सा इक्विटी (Equity) में लगाया जाता है. इक्विटी में रिस्क अधिक होता है, लेकिन लंबे समय में ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना भी रहती है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, लोगों की जोखिम बर्दाश्त   करने की क्षमता कम होती है. इसलिए उनके निवेश को धीरे-धीरे डेट की तरफ, मसलन कॉर्पोरेट बॉन्ड (Corporate Debt) और सरकारी सिक्योरिटीज (Government Securities) में शिफ्ट कर दिया जाता है. इस निवेश रणनीति का मकसद इनवेस्टमेंट से जुड़े रिस्क को उम्र के साथ बैलेंस करना होता है.

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NPS में निवेश के दो विकल्प: Active और Auto Choice

1. एक्टिव च्वायस (Active Choice)

इस विकल्प में निवेशक खुद तय करते हैं कि उनके पैसों का कितना हिस्सा किस एसेट क्लास (E, C, G, A) में लगाया जाएगा. हालांकि इसमें भी कुछ लिमिट तय है.

  • 50 साल की उम्र तक अधिकतम 75% रकम इक्विटी में लगाई जा सकती है.

  • 60 साल की उम्र के बाद इक्विटी में निवेश की लिमिट घटकर 50% रह जाती है.

  • बाकी रकम कॉर्पोरेट डेट, सरकारी बॉन्ड और अल्टरनेटिव फंड्स में लगाई जाती है.

2. ऑटो च्वायस (Auto Choice - Life Cycle Fund)

यह उन लोगों के लिए है जो निवेश से जुड़े फैसले लेने में दिक्कत या कनफ्यूजन महसूस करते हैं या इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते. इसमें तीन तरह की Life Cycle स्कीम्स हैं:

  • LC75 (Aggressive): इसमें 35 साल की उम्र तक 75% निवेश इक्विटी में किया जा सकता है. फिर हर साल यह लिमिट घटती जाती है.

  • LC50 (Moderate): शुरुआत में 50% तक निवेश इक्विटी में होता है, फिर धीरे-धीरे घटता है.

  • LC25 (Conservative): केवल 25% निवेश इक्विटी में रहता है, बाकी तुलनात्मक रूप से सुरक्षित एसेट्स में जाता है.

ऑटो च्वायस (Life Cycle Fund) का मकसद निवेशकों की उम्र के हिसाब से रिस्क को घटाते हुए सुरक्षित और स्टेबल रिटर्न देना है.

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 ऑटो च्वायस में उम्र के हिसाब से कैसे बदलता है एलोकेशन?

निवेशकों की उम्र के हिसाब से ऑटो च्वायस एलोकेशन (Auto Choice Allocation) में कैसे बदलाव होता है, इसे आप नीचे दिए टेबल से समझ सकते हैं. मिसाल के तौर पर LC75 फंड में, 35 साल तक 75% रकम इक्विटी में जाती है. फिर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह अनुपात घटने लगता है:

उम्र (वर्ष)

इक्विटी (E)

कॉर्पोरेट डेट (C)

सरकारी बॉन्ड (G)

35 तक

75%

10%

15%

45

35%

20%

45%

55+

15%

10%

75%

इसी प्रकार LC50 और LC25 में भी अनुपात तय किया गया है, जिससे रिटायरमेंट के करीब पहुंचते ही निवेश ज्यादा सुरक्षित हो जाता है.

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आपके लिए कौन सा विकल्प है सही?

अगर आप युवा हैं और निवेश का अनुभव रखते हैं, तो Active Choice आपके लिए बेहतर हो सकता है. इससे आप अपने रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से एसेट एलोकेशन तय कर सकते हैं. वहीं, अगर आप निवेश से जुड़े फैसले लेने में कंफर्टेबल नहीं हैं या अपने पोर्टफोलियो को रेगुलर तौर पर रिव्यू कर पाना आपके लिए मुश्किल है, तो Auto Choice के विकल्प को चुनना आपके लिए बेहतर होगा.

  • रिटायरमेंट से 15-20 साल दूर: LC75 या Active (ज्यादा इक्विटी, ज्यादा रिस्क)

  • रिटायरमेंट के करीब: LC50 या LC25 (कम इक्विटी, कम रिस्क)

NPS में निवेश के और क्या हैं फायदे 

  • टैक्स छूट: इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये के सालाना निवेश पर मिलने वाली छूट के अलावा NPS में सेक्शन 80CCD(1B) के तहत 50,000 रुपये के अतिरिक्त निवेश पर भी छूट मिलती है. यानी कुल 2 लाख रुपये के निवेश पर छूट हासिल की जा सकती है.

  • कम लागत: NPS में फंड मैनेजमेंट चार्ज बहुत ही कम होता है.

  • फ्लेक्सिबिलिटी: ऑनलाइन मैनेजमेंट, फंड में चेंज और कंट्रीब्यूशन में बदलाव आसानी से किया जा सकता है.

  • पेंशन का इंतजाम: मेच्योरिटी पर 60% रकम एक साथ निकाल सकते हैं, जबकि 40% रकम को एन्युइटी में निवेश करके आजीवन पेंशन ले सकते हैं.

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कुल मिलाकर, NPS एक लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट प्लान है, जिसमें उम्र के हिसाब से सही एसेट अलोकेशन करके रिस्क और रिटर्न को बैलैंस करने की कोशिश की जाती है. यह आपकी उम्र, निवेश के बारे में जानकारी और सुविधा पर निर्भर है कि आप अपने लिए Active विकल्प चुनते हैं या Auto का ऑप्शन. NPS में सोच-समझकर और समय पर किया गया निवेश, रिटायरमेंट के बाद आर्थिक रूप से बेहतर जिंदगी जीने में आपकी मदद कर सकता है. 

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