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NPS New Rules : एनपीएस के नए फ्रेमवर्क का क्या है मतलब, कहां होगा फायदा, कहां बढ़ी चुनौती, निवेश से पहले समझें हर जरूरी बात

NPS New Framework : नेशनल पेंशन सिस्टम में हाल ही में बड़ा बदलाव किया गया है, जिससे निवेशकों को पहले से ज्यादा ऑप्शन मिलेंगे, लेकिन सही विकल्प चुनना पहले से ज्यादा मुश्किल भी हो सकता है.

NPS New Framework : नेशनल पेंशन सिस्टम में हाल ही में बड़ा बदलाव किया गया है, जिससे निवेशकों को पहले से ज्यादा ऑप्शन मिलेंगे, लेकिन सही विकल्प चुनना पहले से ज्यादा मुश्किल भी हो सकता है.

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Viplav Rahi
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NPS New Framework : एनपीएस में बड़ा अपडेट, 15 साल में एग्जिट समेत कई अहम बदलाव. (AI Image)

NPS Big Update : Multiple Schemes Framework : एनपीएस यानी नेशनल पेंशन सिस्टम (National Pension System) में हाल ही में एक बड़ा बदलाव किया गया है, जिससे निवेशकों को अब पहले से ज्यादा विकल्प मिलेंगे, लेकिन साथ ही समझदारी से फैसला लेना भी जरूरी हो गया है. एनपीएस के इस नए फ्रेमवर्क का नाम है "मल्टीपल स्कीम फ्रेमवर्क (MSF)". इस बदलाव का मकसद निवेशकों को ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी मुहैया कराना है ताकि वे अपने रिस्क प्रोफाइल और निवेश के लक्ष्य को ध्यान में रखकर स्कीम का चुनाव कर सकें. 

नये फ्रेमवर्क से कैसे बदलेगा निवेश का तरीका

अब तक हर पेंशन फंड मैनेजर को हर एसेट क्लास, मसलन इक्विटी और डेट, में केवल एक ही कॉमन स्कीम चलाने की अनुमति थी. लेकिन NPS के नए MSF फ्रेमवर्क में अब एक फंड मैनेजर कई स्कीम लॉन्च कर सकता है. हर स्कीम अपनी रणनीति, रिस्क लेवल और एसेट मिक्स के साथ अलग होगी. इसका फायदा यह है कि निवेशक अब यह तय कर सकते हैं कि वे ज्यादा रिटर्न की संभावना वाली इक्विटी स्कीम (Equity Scheme) में रहना चाहते हैं या ज्यादा सुरक्षित समझी जाने वाली डेब्ट स्कीम (Debt Schemes) में. यानी निवेश का कंट्रोल अब और ज्यादा निवेशक के हाथ में है. लेकिन ज्यादा ऑप्शन का मतलब कई बार ज्यादा कनफ्यूजन और जटिलता (Complexity) भी हो जाता है. कई जानकारों का मानना है कि एनपीएस को जितना सिंपल रखा जाए, उतना बेहतर है, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य लंबे समय की रिटायरमेंट प्लानिंग करना है.

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पुराने और नए सिस्टम में क्या है अंतर

पहले जो कॉमन स्कीम्स (Common Schemes) चल रही थीं, वे जारी रहेंगी. लेकिन निवेशक चाहें तो अपने भविष्य के योगदान (future contributions) को अब नई MSF स्कीम्स में डाल सकते हैं. पुरानी कॉमन स्कीम में जो पैसा पहले से लगा है, उसे MSF में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता, लेकिन उल्टा ट्रांसफर यानी MSF से कॉमन स्कीम में पैसे डालना संभव है और उस पर कोई टैक्स इंप्लिकेशन नहीं होगा. सरकारी कर्मचारियों के लिए फिलहाल उनकी सैलरी से जुड़े आधिकारिक एनपीएस खाते को MSF में ट्रांसफर करने की छूट नहीं है, लेकिन वे चाहें तो एक अलग खाता खोल सकते हैं.

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जल्दी एग्जिट का नया ऑप्शन

एनपीएस में अब एक बड़ा बदलाव यह भी है कि निवेशक 15 साल की वेस्टिंग अवधि के बाद अपने निवेश को बाहर निकाल सकते हैं. पहले यह सुविधा केवल 60 वर्ष की उम्र के बाद ही थी. यानी अगर कोई 30 साल की उम्र में निवेश शुरू करता है तो 45 की उम्र में एग्जिट कर सकता है. हालांकि एग्जिट की शर्तें पहले जैसी ही हैं. यानी 60 प्रतिशत रकम टैक्स-फ्री एकमुश्त निकाली जा सकती है और बाकी 40 प्रतिशत से एन्युइटी खरीदना जरूरी है. खबर ये भी है कि एकमुश्त पैसे निकालने की लिमिट को बढ़ाकर 80 फीसदी तक करने पर भी विचार चल रहा है. अगर ऐसा हुआ तो निवेशकों को और फ्लेक्सिबिलिटी मिल जाएगी.

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कई फंड हाउस ने पेश कीं नई स्कीमें

कई फंड हाउस इस नए सेटअप के तहत नई स्कीमें लेकर आ भी गए हैं. यूटीआई पेंशन फंड (UTI Pension Fund) ने वेल्थ बिल्डर प्लान (Wealth Builder Plan) शुरू किया है, जिसमें टॉप 200 कंपनियों में 100 फीसदी तक इक्विटी एक्सपोजर की छूट है. वहीं एचडीएफसी पेंशन फंड (HDFC Pension Fund) ने सुरक्षित इनकम फंड (Surakshit Income Fund - Tier-2) लॉन्च किया है, जिसमें इक्विटी की लिमिट 25 प्रतिशत रखी गई है और फोकस बांड्स पर है. इसके अलावा आईसीआईसीआई पेंशन फंड (ICICI Pension Fund) ने माई फेमिली, माई फ्यूचर प्लान (My Family My Future Plan) पेश किया है, जो सभी के लिए ओपन है, लेकिन खास तौर पर महिलाओं और पेरेंट्स को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है.

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इन बातों पर ध्यान देना जरूरी

इस फ्रेमवर्क से निवेशकों को पहले से ज्यादा आजादी तो मिल रही है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं. अब फंड मैनेजर्स 0.30 प्रतिशत तक फीस चार्ज कर सकते हैं, जो पहले 0.03-0.09 प्रतिशत के बीच थी. यानी निवेश का खर्च बढ़ सकता है. इसके अलावा ये नई स्कीमें बिल्कुल नई हैं, जिनका कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है. इसलिए इनके प्रदर्शन को आंकना अभी मुश्किल होगा. 

अगर आप नई MSF स्कीम में निवेश करने की सोच रहे हैं, तो पहले यह जरूर आकलन करें कि क्या यह बढ़ी हुई फ्लेक्सिबिलिटी वाकई आपकी जरूरत के मुताबिक है? और क्या नई स्कीम आपको इतना बेहतर रिटर्न दे सकती है, जिसके लिए ज्यादा फीस और जटिलता (Complexity) को नजरअंदाज किया जाए? 

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