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NPS vs UPS : एनपीएस या यूपीएस में किसी एक स्कीम को चुनने का फैसला करने से पहले सभी बातों पर अच्छी तरह विचार कर लें. (AI Generated Image / ChatGPT)
NPS vs UPS: केंद्रीय कर्मचारियों को इसी महीने यानी 30 जून 2025 तक फैसला करना है कि उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट के लिए एनपीएस और यूपीएस में से कौन का ऑप्शन चुनना है. क्या उन्हें नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) में रहना चाहिए या हाल में पेश यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) का ऑप्शन बेहतर रहेगा? दोनों स्कीम्स का उद्देश्य कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद सुरक्षित और रेगुलर इनकम मुहैया कराना है. लेकिन इनके स्ट्रक्चर, रिटर्न, और रिस्क लेवल में काफी फर्क है. ऐसे में अपने लिए सही स्कीम का चुनाव करने से पहले कर्मचारियों को दोनों के बारे में जानना जरूरी है. यहां हम ऐसी 4 बातों के बारे में जानेंगे, जिनसे यह तय करने में मदद मिलेगी कि एनपीएस या यूपीएस में से कौन सी योजना आपके लिए बेहतर हो सकती है.
1. गारंटीड vs मार्केट लिंक्ड पेंशन
UPS की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें गारंटीड पेंशन मिलने का इंतजाम किया गया है. अगर कर्मचारी ने 25 साल की सर्विस पूरी की है तो उन्हें आखिरी बेसिक सैलरी + डीए के 50% के बराबर रकम पेंशन के रूप में जरूर मिलेगी. वहीं, 10 साल की सर्विस पूरी करने वाले को कम से कम 10,000 रुपये मंथली पेंशन की गारंटी भी इस स्कीम में मिलती है. इसके अलावा फैमिली पेंशन और महंगाई के हिसाब से पेंशन में बढ़ोतरी (Dearness Relief of DR) भी मिलती रहेगी.
इसके उलट, NPS एक मार्केट-लिंक्ड स्कीम है. इसमें पेंशन की रकम कर्मचारी और उनके लिए एंप्लॉयर यानी सरकार द्वारा किए गए निवेश के प्रदर्शन पर निर्भर करती है. इसमें कर्मचारी के फंड को इक्विटी, सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश किया जाता है. अगर बाजार अच्छा चला तो रिटर्न भी अच्छा मिल सकता है, लेकिन मार्केट परफॉर्मेंस अच्छा न रहने पर कमजोर रिटर्न या गिरावट होने पर नुकसान की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
2. कर्मचारी और सरकार का कंट्रीब्यूशन
UPS में कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी और डीए का 10% योगदान करते हैं और सरकार भी उतना ही योगदान देती है. इसके अलावा सरकार एक कॉमन फंड में 8.5% एक्सट्रा कंट्रीब्यूशन भी देती है. यानी कुल मिलाकर सरकार की ओर से 18.5% योगदान किया जाता है.
NPS में भी कर्मचारी 10% योगदान करते हैं, लेकिन सरकार का योगदान 14% तक सीमित है. यानी UPS में सरकार का योगदान ज्यादा है जिससे भविष्य में बेहतर पेंशन मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
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3. रिस्क और स्टेबिलिटी
अगर आप रिस्क से दूर रहने वाले निवेशक हैं या आपके रिटायरमेंट में कम समय बचा है, तो UPS आपके लिए ज्यादा सुरक्षित विकल्प हो सकता है. यह योजना बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होती और गारंटीड पेंशन भी देती है.
NPS उन कर्मचारियों के लिए बेहतर हो सकता है जिनकी सर्विस में अभी काफी समय बाकी है और जो थोड़ा ज्यादा रिस्क लेने की क्षमता रखते हैं. ऐसे कर्मचारियों को एनपीएस के जरिये बाजार में लंबी अवधि के नियमित निवेश से अच्छा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन इसमें गारंटी जैसी कोई बात नहीं होती.
4. फ्लेक्सिबिलिटी और एग्जिट का ऑप्शन
NPS में निवेश के मामले में फ्लेक्सिबिलिटी ज्यादा है. कर्मचारी अपने निवेश के लिए अलग-अलग रणनीति चुन सकते हैं. मिसाल के तौर पर ऑटो मोड या एक्टिव मोड. इसके अलावा मेडिकल ट्रीटमेंट, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या शादी जैसे खास कारणों से आंशिक निकासी (Partial Withdrawal) की सुविधा भी मिलती है. रिटायरमेंट पर आप अपने कॉर्पस में जमा 60% रकम टैक्स फ्री निकाल सकते हैं और बाकी 40% से एन्युइटी खरीदनी होती है. UPS में निवेश और निकासी यानी पैसे निकालने को लेकर ये लचीलापन नहीं है. इसका एक फिक्स स्ट्रक्चर है, जिसमें मुख्य फोकस स्थायी और गारंटीड पेंशन देने पर रहता है.
कुल मिलाकर UPS में रिटायरमेंट के बाद गारंटीड पेंशन मिलती है, जो उन लोगों के लिए बेहतर है, जो बिना रिस्क के फिक्स इनकम हासिल करना चाहते हैं. वहीं, NPS में ज्यादा रिटर्न हासिल करने का मौका और फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है. लेकिन ऊंचा रिटर्न बाजार की चाल पर निर्भर होता है. इसलिए, कर्मचारियों को अपनी रिस्क लेने की क्षमता, सर्विस की बची हुई अवधि और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना चाहिए कि कौन सी योजना उनके लिए ज्यादा सही है. इस महीने NPS या UPS में किसी एक स्कीम को चुनने का फैसला करने से पहले इन सभी बातों पर अच्छी तरह गौर कर लें, क्योंकि यह फैसला आपकी रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को बेहतर बनाने से जुड़ा है.