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एक बराबर निवेश, एक बराबर मंथली विद्ड्रॉल, फिर क्‍यों रिटर्न में आ जाता है लाखों का अंतर?

Investment : रिटायर हो चुके लोग, विशेष रूप से 60 साल की उम्र के लोग, आमतौर पर 15-20 साल का निवेश का समय रखते हैं. इसलिए, सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क को ध्यान में रखते हुए लंबी अवधि की योजना बनाना महत्वपूर्ण है.

Investment : रिटायर हो चुके लोग, विशेष रूप से 60 साल की उम्र के लोग, आमतौर पर 15-20 साल का निवेश का समय रखते हैं. इसलिए, सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क को ध्यान में रखते हुए लंबी अवधि की योजना बनाना महत्वपूर्ण है.

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Sushil Tripathi
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Investment Tips : जब आप एकमुश्त राशि निवेश करते हैं या अपने पोर्टफोलियो से पैसे निकालते हैं, तब सीक्वेंस ऑफ रिटर्न एक अहम भूमिका निभाता है. Photograph: (Pixabay)

Negative Market Return Risk : आपने क्रिकेट में यह कई बार देखा होगा कि कोई टीम एक बड़ा लक्ष्य चेज कर रही है और शुरुआती ओवरों में 5 विकेट खो देती है. अब, भले ही मिडिल ऑर्डर अच्छा प्रदर्शन करे, लेकिन टीम दबाव में रहेगी. इसके विपरीत, अगर आपके ओपनिंग बैट्समैन शुरुआत में ही अच्छा स्कोर बना लेते हैं, तो टीम बिना दबाव के बाकी का टारगेट आसानी से चेज कर सकती है और जीतने की संभावना ज्यादा हो जाती है.

अब इसे निवेश (इन्वेस्टिंग) के संदर्भ में समझें. मान लीजिए, 2 रिटायर लोग हैं, दोनों के पास 1 करोड़ रुपये का कॉर्पस है. इस 1 करोड़ के कॉर्पस को निवेश करने के बाद दोनों हर साल इसमें से 5 लाख रुपये निकालते (SWP) हैं यानी 10 साल में 50 लाख रुपये निकाल लेंगे.

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लेकिन 10 साल के अंत में, इन्वेस्टर A के पास 37.32 लाख रुपये बचते हैं, जबकि इन्वेस्टर B का पोर्टफोलियो 58.52 लाख रुपये तक बढ़ जाता है. यह 21.2 लाख का अंतर है, यानी इन्वेस्टर A को 36% कम रिटर्न मिला. ऐसा कैसे हो सकता है? पीजीआईएम इंडिया म्‍यूचुअल फंड के सीईओ, अजीत मेनन का कहना है कि यही सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क होता है. इससे बचने और बेहतर रिटर्न हासिल किरने के लिए कुछ बातों पर ध्‍यान रखना जरूरी है. 

इन्वेस्टर A को ये रिटर्न मिले : -5%, -6%, -15%, -8%, -4%, 5%, 7%, 9%, 11%, 9%

इन्वेस्टर B को वही रिटर्न मिले, लेकिन उल्टे क्रम में : 9%, 11%, 9%, 7%, 5%, -4%, -8%, -15%, -6%, -5%

इन्वेस्टर A ने अपने निवेश की शुरुआत बियर फेज (बाजार की गिरावट) में की, जबकि इन्वेस्टर B ने बुल फेज (बाजार की तेजी) में शुरुआत की. दोनों को समान रिटर्न मिले, लेकिन अलग क्रम के कारण परिणाम अलग हो गया. यही सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क है.

(यह रिटर्न केवल उदाहरण के लिए हैं। XIRR: इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न)

इन्वेस्टर A ने इस अवधि में कुल 87.32 लाख रुपये कमाए (50 लाख रुपये निकासी + 37.32 लाख रुपये बैलेंस), जबकि इन्वेस्टर B ने कुल 1.08 करोड़ रुपये कमाए (50 लाख रुपये निकासी + 58.52 लाख रुपये बैलेंस). इसका मतलब है कि इन्वेस्टर B ने 50 लाख रुपये निकासी और 2015-2019 के 5 सालों के नेगेटिव रिटर्न के बावजूद 8.52 लाख का नेट प्रॉफिट कमाया.

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ऐसा क्यों हुआ? 

निवेश की शुरुआत का समय पोर्टफोलियो पर गहरा प्रभाव डालता है. इसका कारण यह है कि दोनों इन्वेस्टर्स अपनी बचत से पैसा निकाल रहे हैं, और रिटर्न जिस रकम पर मिलता है, वह समान नहीं है. 

उदाहरण के लिए, पहले साल में 5% की गिरावट और 5 लाख रुपये की निकासी के बाद निवेशक A का कॉर्पस 90 लाख रुपये तक गिर जाता है, जबकि निवेशक B का बैलेंस 1.04 करोड़ रुपये हो जाता है, भले ही उसने भी 5 लाख रुपये निकाले हों. यह इसलिए होता है क्योंकि निवेशक B ने पहले साल में 9% का रिटर्न कमाया.

इसके बाद, निवेशक B को छठे से 10वें साल तक नेगेटिव रिटर्न मिलता है, लेकिन इसका उसके अंतिम पोर्टफोलियो पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता. यानी निवेश की शुरुआत के समय का रिटर्न आपके पोर्टफोलियो के परिणाम को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है. 

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बाजार के किस फेज में शुरू किया निवेश  

निवेशक A को पहले 5 साल तक नेगेटिव रिटर्न मिलता है, और इस दौरान वह हर साल 5 लाख रुपये निकालता रहता है. नेगेटिव रिटर्न और निकासी का यह मिश्रण उसके पोर्टफोलियो की अंतिम वैल्यू पर बड़ा असर डालता है. इसे "स्नोबॉल इफेक्ट" कहा जाता है, जहां शुरुआती नुकसान का असर समय के साथ बढ़ता जाता है.

यह दिखाता है कि रिटर्न के क्रम का पोर्टफोलियो पर कितना प्रभाव हो सकता है, खासकर उन रिटायर लोगों के लिए जो एक ही इनकम सोर्स पर निर्भर होते हैं. हालांकि यह सिद्धांत सही है, लेकिन बाजार को समय देना (टाइमिंग) और सही रिटर्न पाना किसी के लिए भी मुश्किल है.

सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क का ध्‍यान रखें 

रिटायर हो चुके लोग, विशेष रूप से 60 साल की उम्र के लोग, आमतौर पर 15-20 साल का निवेश का समय रखते हैं. इसलिए, सीक्वेंस ऑफ रिटर्न रिस्क को ध्यान में रखते हुए लंबी अवधि की योजना बनाना महत्वपूर्ण है.

हिस्‍टोरिकली सेंसेक्स ने लगातार 2 साल की गिरावट 1986-87, 1995-96 और 2000-01 में देखी है. लेकिन अगर आप अधिक बारीकी से (मंथली या डेली रिटर्न) देखें, तो नेगेटिव रिटर्न के लगातार आने के उदाहरण अधिक बार मिलते हैं. (सोर्स: BSE)

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रिस्‍क कम करने के लिए क्‍या करें

इस जोखिम को कम करने के लिए निवेशक बकेटिंग अप्रोच अपना सकते हैं. इसका मतलब है कि अपने निवेश को तीन हिस्सों (Financial Planning) में बांटना:

शॉर्ट टर्म : फिक्स्ड इनकम पोर्टफोलियो

मिड टर्म : हाइब्रिड फंड

लॉन्ग टर्म : इक्विटी

सहायक इनकम सोर्स

इसके अलावा, एक सहायक इनकम सोर्स बनाना, जो बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान बफर का काम कर सके, मददगार हो सकता है. इसके अलावा, निवेशक अपनी निकासी दर को कम कर सकते हैं, एक फिक्स्ड एन्युटी खरीद सकते हैं या अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने और संभावित रूप से निगेटिव अस्थिरता को कम करने के लिए डेट, सोना, REITs और इंटरनेशनल एसेट्स शामिल कर सकते हैं.

जब आप एकमुश्त राशि निवेश करते हैं या अपने पोर्टफोलियो से पैसे निकालते हैं, तब सीक्वेंस ऑफ रिटर्न एक अहम भूमिका निभाता है. जैसे क्रिकेट में बड़े लक्ष्य का पीछा करते समय शुरुआती सफलता जीतने की संभावना बढ़ा देती है, वैसे ही शुरुआती सकारात्मक रिटर्न आपके निवेश के फाइनल वैल्यू को प्रभावित कर सकते हैं.  इक्विटी बाजार में अस्थिरता स्वाभाविक है, लेकिन एक भरोसेमंद सलाहकार की मदद से निवेशक इसे बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं.

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