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रॉड्रिग्स ने अपनी शानदार शतकीय पारी खेल कर भारत को ऑस्ट्रेलिया पर ऐतिहासिक जीत दिलाई. Photograph: (PTI)
अप्रैल 2011....भारत ने वर्ल्ड कप जीता और मुंबई जैसे जाग उठा. सड़कों पर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा — कोई नाच रहा था, कोई झंडा लहरा रहा था, कोई गाड़ियों के हॉर्न बजाकर खुशी जता रहा था. रात के बारह बज चुके थे, लेकिन शहर का दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था. ऐसा लग रहा था मानो पूरी मुंबई एक ही सांस में जश्न मना रही हो.हर नज़र जिस घर की ओर उठी थी, वह था सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) का घर. वह घर...वह बालकनी जहाँ से एक इतिहास लिखा जा चुका था.
उसी भीड़ के बीच, पास की एक सँकरी बालकनी में एक 11 साल की लड़की खड़ी थी. उसने देखा जैसे ही सचिन अपनी कार से उतरे, चारों तरफ़ जयकारों की गूंज उठी. उसके छोटे से दिल में उस पल कुछ बदल गया. वह सिर्फ़ एक जश्न नहीं था, वह एक सपने का जन्म था.
वह लड़की थी जेमिमा रॉड्रिग्स. चौदह साल बाद, वह किसी बालकनी से जीत देख नहीं रही थी- वह खुद मैदान के बीचोंबीच खड़ी थी, हाथ में बल्ला थामे...आज वो अपनी खुद की कहानी लिख रही थी.
वो सफर जो आसान नहीं था
जेमिमा का सफर कभी आसान नहीं था. हां, उसके पास प्रतिभा थी लेकिन खेल सिर्फ़ प्रतिभा पर नहीं चलता. यह तुम्हारी सहनशक्ति की परीक्षा लेता है, तुम्हारे आत्मविश्वास को तोड़ता है ताकि तुम्हारे चरित्र को गढ़ सके.
उसने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए वनडे डेब्यू किया. लेकिन अगले कुछ सालों में वह लगातार अपना बल्लेबाजी का क्रम बदलती रही. वह कभी भी अपनी जगह पूरी तरह पक्की नहीं कर सकी. अंकों की कहानी भी साधारण थी- 22 पारियों में 404 रन, औसत 20 से भी कम.
फिर आया2022. टीम की वर्ल्ड कप सूची में उसका नाम नहीं था. जिसने बचपन से नीले रंग में सपने देखे थे, उसके लिए वो पल जैसे दुनिया थम जाने जैसा था. बाद में उसने खुद कबूल किया- वह हर रात तकिए में मुँह छिपाकर रोती थी. वह पहली बार था जब क्रिकेट ने सच में उसे चोट पहुँचाई थी.
लेकिन टूटा दिल एक अनोखा शिक्षक होता है. टूटे दिल ने उसे जिद सिखाई. उसने उसे सिखाया कि फिर से खुद को प्रैक्टिस नेट्स में, जिम के पसीने में और सबसे ज़्यादा, खामोशी के भीतर कैसे गढ़ना है.
फिर जल उठी वो लौ
2025 तक, वह पहले वाली जेमिमा नहीं रही. अब उसके आँकड़े खुद बोलते थे- पिछले 33 वनडे में 1321 रन, औसत 47 और स्ट्राइक रेट 100 से ऊपर. उसके तीनों शतक इसी साल आए. अब वह सिर्फ़ खेल नहीं रही थी, वह अपने सफर का जवाब मैदान पर दे रही थी.
अब उसकी बल्लेबाज़ी में सिर्फ़ टिके रहने की बात नहीं थी, अब वो खेल पर हुकूमत कर रही थी. वर्षों बाद, वही पुरानी जगह- नंबर तीन दोबारा उसकी हो चुकी थी. न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ उसने 55 गेंदों में नाबाद 76 रन की शालीन लेकिन दमदार पारी खेली, जिसने भारत की उम्मीदों में फिर जान डाल दी.
और फिर आया सेमीफाइनल का बड़ा मौका. सामने थीं ऑस्ट्रेलियाई टीम...एक ऐसी टीम जिसके ख़िलाफ़ खेलना ही परीक्षा जैसा होता है.
एक रात जिसने खेल बदल दिया
ऑस्ट्रेलिया- महिला क्रिकेट की सबसे हावी और दमदार टीम थी. वो टीम जिसने जीत को एक आदत बना दिया था,
कुछ वैसे ही जैसे जापान की युई सुसाकी ने कुश्ती में कर दिखाया था, जब तक कि विनेश फोगाट ने 2024 ओलंपिक में उस मिथक को तोड़ नहीं दिया. सालों तक सुसाकी अजेय, अछूती और हमेशा विजेता बनकर अपने वज़न वर्ग पर राज करती रही. लेकिन, उस रात विनेश ने साबित कर दिया कि कोई भी अजेय नहीं होता. भारत की ये जीत भी कुछ वैसी ही थी. वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराना सिर्फ़ एक मैच जीतना नहीं था ये तो मानो पहाड़ को हिलते देखना और उसमें दरार पड़ते देखना था.
ऑस्ट्रेलिया ने ऐसा स्कोर खड़ा किया था, जो ज़्यादातर टीमों को दबाव में तोड़ देता है. लेकिन जब जेमिमा रॉड्रिग्स मैदान में उतरी, तो माहौल बदल गया. वो ऐसे आईं, जैसे तूफ़ान के बीच एक सुकून की लहर- शांत, संयमित, और पूरी तरह नियंत्रण में. न कोई जल्दबाज़ी, न कोई घबराहट. हर शॉट में इरादा तो था, लेकिन आक्रामकता नहीं. हर रन में एक सटीक योजना छिपी थी.
वो रन चेज़ नहीं खेल रही थी, वो उसे गढ़ रही थी, एक-एक गेंद पर, जैसे कोई कलाकार अपनी पेंटिंग को अंतिम रूप देता है. और जब स्कोरबोर्ड ने उसका शतक पूरा होते देखा, तो उसने कोई तमाशा नहीं किया. बस हल्की-सी मुस्कान, ऋचा घोष के साथ एक फिस्ट बंप, और आंखों में वो खामोश वादा- “अब ये कहानी मैं पूरी करूँगी.”
भारत ने जब जीत का लक्ष्य पार किया,वो घुटनों पर गिर पड़ी- थकान से नहीं, भावनाओं में भर कर. डी.वाई. पाटिल स्टेडियम की गर्जना मीलों दूर तक गूंज रही थी. वो सिर्फ़ एक सेमीफाइनल की जीत नहीं थी, वो एक क्रांति थी. सालों से ऑस्ट्रेलिया एक पहाड़ कि तरह जीत कर अटल खड़ा था, और उस रात जेमिमा ने उस पहाड़ को हिला दिया.
ज़िंदगी का सबसे बड़ा चुनाव
इन सब से पहले जेमिमा सिर्फ़ क्रिकेटर नहीं थी. लेकिन ज़िंदगी हमेशा दो रास्ते नहीं देती, कभी-कभी एक ही चुनना पड़ता है. उन्हें भी वही करना पड़ा.
उसे हॉकी और क्रिकेट दोनों से ही प्यार था. लेकिन जब वक्त आया चुनने का, तो उसने कुछ पल की खामोशी, कुछ आँसुओं और एक गहरी सांस के बाद “क्रिकेट” कहा. उसे उस वक्त अंदाज़ा नहीं था कि ये फैसला उसकी ज़िंदगी की दिशा बदल देगा. उसने बस अपने दिल की सुनी. बाद में समझ आया, वो एक चुनाव नहीं था वो उसकी हिम्मत की पहली मिसाल थी.
सचिन से जुड़ी वो डोर
जब सचिन तेंदुलकर सिर्फ़ दस साल के थे, उन्होंने 1983 में भारत को पहला वर्ल्ड कप जीतते देखा था. वही पल उनकी ज़िंदगी का रास्ता तय करने वाला साबित हुआ. सालों बाद जेमिमा ग्यारह साल की थी, जब उसने 2011 में सचिन को ट्रॉफी उठाते देखा. उसके लिए भी वो एक जादुई पल था, जिसने उसके भीतर क्रिकेट के लिए वही जुनून जगा दिया.
दिलचस्प बात यह है कि दोनों ने मुंबई के एमआईजी क्लब में ट्रेनिंग की, दोनों ने यॉर्कशायर के लिए खेला, और दोनों ने भारत की उम्मीदों को एक जैसी शांत लेकिन जलती हुई आग के साथ थामा. The Cricket Monthly को दिए इंटरव्यू में जेमिमा ने हँसते हुए कहा, “मुझे तो पता ही नहीं था कि सचिन सर की भी ऐसी कहानी है. अब सोचती हूँ, हमारी कहानियाँ वाकई ज़्यादा अलग नहीं हैं.”
दो बच्चे, दो अलग-अलग दौर, लेकिन एक जैसी चमक. दोनों के सपने वर्ल्ड कप की रातों में जन्मे थे. एक ने 1983 में देखा, दूसरे ने 2011 में. और फिर शुरू हुआ एक सफर, जो पीढ़ियों से आगे बढ़ता गया. यह विरासत शब्दों से नहीं, बल्कि जज़्बे, मेहनत और उस आग से आगे बढ़ी, जो मैदान पर हर बार भारत के लिए जलती रही.
जहाँ रन नहीं, हिम्मत गिनी जाती है
स्कोरबुक में बस इतना लिखा रहेगा कि जेमिमा रॉड्रिग्स ने 127 रन नाबाद बनाए. लेकिन वहाँ यह नहीं लिखा होगा कि कितनी बार उसने खुद को शक से बाहर निकाला, या कैसे उसने अपने आस-पास के शोर को अनसुना करना सीखा.
यह कहानी सिर्फ़ अंकों की नहीं थी...यह पुनर्जन्म की कहानी थी, विश्वास की कहानी थी, उस हिम्मत की कहानी थी जो तब भी डटी रहती है जब बाकी सब उसे छोड़ देने को कहते हैं.
प्रेज़ेंटेशन के दौरान उसके शब्द बेहद सादे थे , “मुझे कुछ साबित नहीं करना था. बस अपनी टीम को जीत दिलाने में मदद करनी थी.”
कभी-कभी सबसे शांत खिलाड़ी के दिल में सबसे ज़्यादा शोर होता है.
वापस उसी बालकनी तक
बांद्रा में वही पुरानी बालकनी अब भी उसी सड़क की ओर देखती है. वही सड़क जहाँ कभी लोग सचिन के लिए इंतज़ार किया करते थे, अब वहाँ एक नई कहानी जुड़ गई है.
चौदह साल पहले जेमिमा ने उसी जगह से रोहित शर्मा (Rohit Sharma) और सचिन को ट्रॉफी घर लाते देखा था और पिछली रात, उसने भारत को फिर से यकीन करने की एक वजह दी कि ये सपना एक बार फिर सच हो सकता है.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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