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भारतीय महिला वर्ल्ड कप जीत के बाद ट्रॉफी के साथ अमोल मजूमदार. Photograph: (BCCI Women)
साल था 1988. रमाकांत आचरेकर की कोचिंग अकादमी के तीन युवा खिलाड़ी क्रिकेट के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के लिए मैदान पर उतरे थे. उनमें से दो नाम आज भी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हैं — सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) और विनोद कांबली. हैरिस शील्ड के सेमीफाइनल मुकाबले में इन दोनों ने विरोधी गेंदबाजों की एक-एक गेंद को मानो सबक सिखाने का ठान लिया था. दोनों बल्लेबाजों ने पूरे मैदान को रन की बरसात से भर दिया. एक अविश्वसनीय साझेदारी बनी, जिसने रिकॉर्ड बुक्स में नया अध्याय जोड़ा.
जब सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली मैदान पर तूफ़ान मचा रहे थे, तब ड्रेसिंग रूम में एक 13 साल का लड़का पैड पहनकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था- उसका नाम था अमोल मजूमदार.
पहला विकेट गिरते ही अमोल ने पैड पहन लिए थे, उम्मीद थी कि जल्द ही उसे भी बल्लेबाजी का मौका मिलेगा. लेकिन सचिन और कांबली की धमाकेदार साझेदारी इतनी लंबी चली कि टीम ने 748 रन पर पारी घोषित कर दी — और अमोल की बारी आई ही नहीं.
वह इंतज़ार ताउम्र अमोल के साथ रहा. या यूं कहें, इंतज़ार अमोल मजूमदार की जिंदगी का हिस्सा बन गया.
रनों का बादशाह, किस्मत का नहीं
अमोल मजूमदार ने कई सालों तक भारतीय घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने बॉम्बे (अब मुंबई) की टीम से अपना पहला फर्स्ट-क्लास मैच खेला, और उसी मैच में 260 रन की जबरदस्त पारी खेल डाली. यह उस समय किसी भी खिलाड़ी के डेब्यू मैच में बनाए गए सबसे ज़्यादा रनों का रिकॉर्ड था.
वह साल दर साल, लगातार रन बनाते रहे मुंबई की बल्लेबाज़ी को एक खामोश स्तंभ की तरह संभालते हुए उन्होंने 11,000 से ज़्यादा फर्स्ट-क्लास रन और रणजी ट्रॉफी में 9,000 से भी अधिक रन बनाए जो वसीम जाफर के बाद दूसरे नंबर पर है.
लेकिन अफ़सोस, भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) के दरवाज़े उनके लिए कभी नहीं खुले.
यह कमी प्रतिभा की नहीं थी, समय की थी.
उस दौर में भारतीय टीम का मिडिल ऑर्डर पहले से ही उन नामों से भरा था, जो आगे चलकर एक पूरे युग को परिभाषित करने वाले थे . वो नाम थे- सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वी.वी.एस. लक्ष्मण.
जब उनके साथी खिलाड़ी अख़बारों की सुर्खियाँ बन रहे थे, अमोल मजूमदार खाली स्टेडियमों और छोटे मैदानों में रन बनाते रहे. उन्होंने एक बार कहा था, “मैंने कभी जन्मदिन नहीं मनाया, न ही परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताईं,
क्योंकि क्रिकेट ही मेरी पूरी दुनिया थी.” उन्होंने अपना सब कुछ उस सपने को दे दिया, जो कभी उन्हें वापस बुलाने नहीं आया.
खामोशी से नेतृत्व तक का सफ़र
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद अमोल मजूमदार ने नाराज़ होकर खेल से दूरी नहीं बनाई. इसके बजाय उन्होंने कोचिंग को अपना नया रास्ता चुना. जिस तरह वे कभी राष्ट्रीय टीम से बाहर होने के बाद नेट्स में जाकर खुद को और बेहतर बनाने में लग जाते थे, वैसे ही अब उन्होंने मैदान पर लौटकर दूसरों को निखारने का बीड़ा उठाया.
उन्होंने अपने क्रिकेट करियर के बाद युवा खिलाड़ियों के साथ काम करना शुरू किया, उन्हें वही बातें सिखाईं जो खेल ने उन्हें वर्षों में सिखाई थीं- धैर्य रखना, ज़मीन से जुड़े रहना और लगातार सीखते रहना. धीरे-धीरे वे भारत की अंडर-19 और अंडर-23 टीमों के कोच बने और बाद में नीदरलैंड्स टीम की बल्लेबाज़ी को निखारने में भी अहम भूमिका निभाई.
जो लोग उनके साथ काम कर चुके हैं, उनका कहना है कि अमोल मजूमदार की मौजूदगी में एक खास सुकून होता है ऐसा जो खिलाड़ियों को आत्मविश्वास देता है, खासकर तब जब हालात उनके खिलाफ हों.
अमोल के करियर का सबसे बड़ा मौका अक्टूबर 2023 में आया, जब उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया. ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी ने पूरा चक्कर काटकर फिर उन्हें वहीं ला खड़ा किया- बस उस तरह नहीं जैसी किसी ने उम्मीद की थी.
जब मैदान पर लौटा आत्मविश्वास, और बदल गई कहानी
महिला टीम उस समय आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही थी. वे ऐसे मैच हार रही थीं, जिन्हें उन्हें आसानी से जीतना चाहिए था. माहौल निराशा से भरा था.
अमोल मजूमदार ने बड़े भाषण नहीं दिए. उन्होंने हर खिलाड़ी के साथ अकेले बैठकर बात की, उन्हें इंसान की तरह समझा, खिलाड़ी की तरह नहीं. उन्होंने वही बात कही जो कभी खुद से कहा करते थे, “आप असफल होने से खेलना नहीं छोड़ते, आप तब असफल होते हैं जब कोशिश करना छोड़ देते हैं.”
उस पल से सब कुछ बदलने लगा. भारत ने जीतना शुरू कर दिया.
जहाँ हर फैसला बना जीत की कहानी
साल 2024 के बाद से भारतीय महिला टीम ने 23 वनडे मैच जीते, जो दुनिया की किसी भी टीम से ज़्यादा हैं. उन्होंने 9 में से 7 सीरीज़ टूर्नामेंट भी अपने नाम किए.
अमोल मजूमदार के फैसले हमेशा आसान नहीं थे. उन्होंने टूर्नामेंट के बीच में जेमिमा रॉड्रिग्स को बाहर कर दिया था लेकिन जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ी, तब दोबारा मौका दिया. जेमिमा ने उस भरोसे का शानदार जवाब दिया — ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में नाबाद 127 रन बनाए, वो भी रिकॉर्ड लक्ष्य का पीछा करते हुए.
उन्होंने हरलीन देओल को नॉकआउट मैचों के लिए आराम दिया, टीम में चोट लगने के बाद युवा शैफाली वर्मा पर भरोसा जताया, और हर बार नाम या शोहरत से ज़्यादा अपने अनुभव और इंस्टिंक्ट पर भरोसा किया.
उनके हर बड़े और साहसी फैसले की वजह वही साल थे, जब वो टीम में जगह न मिलने के बावजूदखेल से जुड़े रहे और हार नहीं मानी.
जिस जीत ने हर इंतज़ार का जवाब दिया
भारत ने वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराया... उस टीम को, जिसे दुनिया लगभग अजेय मानती थी. इसके बाद फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर खिताब अपने नाम कर लिया.
पूरा स्टेडियम जयकारों से गूंज उठा, लेकिन उस शोर के बीच एक पल ठहर गया.
हरमनप्रीत कौर धीरे-धीरे अमोल मजूमदार के पास गईं, झुकीं और उनके पैर छुए.
अमोल ने तुरंत उन्हें उठाया और गले से लगा लिया.
यह सिर्फ जश्न नहीं था. यह ऐसा पल था जबइतिहास खुद अपनी गलती सुधार रहा था. जिस इंसान ने पूरी ज़िंदगी भारत के लिए खेलने का इंतज़ार किया, वह आख़िरकार भारत को जीत दिला चुका था- बल्लेबाज़ बनकर नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, सोचने वाला और विश्वास जगाने वाला बनकर.
जिसकी खामोशी भी क्रिकेट की गूँज बन गई
अमोल मजूमदार की कहानी इस बात की नहीं है कि उन्हें क्या नहीं मिला, बल्कि इस बात की है कि उन्होंने खेल को क्या दिया. उन्होंने साबित किया कि महानता हमेशा शोहरत या चयन से नहीं आती. कभी-कभी वह उन सालों में छिपी होती है, जब आप लगातार मेहनत करते रहते हैं- फिर भले ही उसे कोई देख न रहा हो.
उन्होंने पूरी एक पीढ़ी को सिखाया कि अगर दिल खुला रखो, तो नाकामी भी ताकत बन सकती है. शायद इसी वजह से भारत की महिला टीम के साथ उनकी जीत इतनी सच्ची और दिल से जुड़ी लगी क्योंकि वो आदमी खुद अच्छी तरह जानता था कि हार का दर्द कैसा होता है.
यह जीत सिर्फ मैदान की नहीं थी यह उस इंसान के लिए थी, जिसने पूरे दिल से खेल को जिया, भले ही खेल ने उसे कभी मंच न दिया.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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