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CBSE का बड़ा फैसला, प्री-प्राइमरी से कक्षा 5 तक मातृभाषा में होगी पढ़ाई, स्कूलों को जल्द लैंग्वेज मैप तैयार करने का आदेश

अभी देश भर के सीबीएसई स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में होती है. सीबीएसई देश का सबसे बड़ा स्कूल बोर्ड है, जिसके साथ 30,000 से ज्यादा स्कूल जुड़े हैं.

अभी देश भर के सीबीएसई स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में होती है. सीबीएसई देश का सबसे बड़ा स्कूल बोर्ड है, जिसके साथ 30,000 से ज्यादा स्कूल जुड़े हैं.

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Mithilesh Kumar
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CBSE

CBSE ने एक बड़ा फैसला लेते हुए संकेत दिया है कि भविष्य में प्राथमिक स्तर पर बच्चों की मातृभाषा में पढ़ाई अनिवार्य हो सकती है. (Image : IE File)

 CBSE Prioritizes Mother Tongue Teaching, Directs Schools to Map Languages: बचपन की शिक्षा जिस भाषा में दी जाए, उसका बच्चे के समझने और सीखने पर गहरा असर पड़ता है. यही सोच अब नीति का रूप ले रही है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए संकेत दिया है कि भविष्य में प्राथमिक स्तर पर बच्चों की मातृभाषा में पढ़ाई अनिवार्य हो सकती है. इसी दिशा में पहला कदम उठाते हुए CBSE ने देशभर के अपने सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे छात्रों की मातृभाषा का जल्द से जल्द पता लगाएं और गर्मियों की छुट्टियों के खत्म होने से पहले पढ़ाई की सामग्री को उसी भाषा के अनुरूप तैयार करें. यह कदम न सिर्फ शिक्षा को बच्चों के लिए सहज बनाएगा, बल्कि भारतीय भाषाओं और संस्कृति को भी मजबूती देगा.

वर्तमान में, देश भर के सीबीएसई स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं की पढ़ाई मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में होती है. सीबीएसई देश का सबसे बड़ा स्कूल बोर्ड है, जिसके करीब 30,000 से अधिक स्कूल जुड़े हुए हैं. इस बदलाव से न केवल भाषा की समझ बेहतर होगी, बल्कि बच्चों की सीखने की रुचि भी बढ़ेगी.

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CBSE के नए सर्कुलर के अनुसार, प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा 2 तक की पढ़ाई - जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ‘आधारभूत चरण’ कहा गया है - बच्चों की घरेलू भाषा, मातृभाषा या किसी जानी-पहचानी क्षेत्रीय भाषा में कराई जानी चाहिए. इस भाषा को ‘R1’ नाम दिया गया है. बोर्ड का मानना है कि सीखने की शुरुआत उसी भाषा में होनी चाहिए, जिसमें बच्चा सोचता और सहज महसूस करता है. आदर्श स्थिति में यह भाषा उसकी मातृभाषा होनी चाहिए, लेकिन अगर किसी वजह से यह संभव नहीं है, तो उस राज्य की भाषा भी चुनी जा सकती है. बस शर्त इतनी है कि वह बच्चे के लिए परिचित और समझने में आसान हो.

कक्षा 3 से 5 तक की भाषा विकल्प की सुविधा

CBSE के 22 मई को जारी सर्कुलर में यह साफ किया गया है कि कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों की पढ़ाई पहले की तरह R1 यानी मातृभाषा या किसी जानी-पहचानी क्षेत्रीय भाषा में जारी रखी जा सकती है. साथ ही, स्कूलों को यह विकल्प भी दिया गया है कि वे चाहें तो बच्चों को R1 के अलावा किसी दूसरी भाषा - जिसे R2 कहा गया है - में पढ़ाई का मौका दे सकते हैं.

सर्कुलर में यह भी बताया गया है कि मातृभाषा में पढ़ाई जुलाई से शुरू की जा सकती है. हालांकि, अगर किसी स्कूल को इस बदलाव को लागू करने के लिए थोड़ा और समय चाहिए, तो उसे यह सुविधा दी जा सकती है लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी होगा कि बदलाव में बेवजह देर न हो.

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मातृभाषा को अनिवार्य बनाने की पहली पहल

यह पहली बार है जब CBSE ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह अपने स्कूलों में मातृभाषा आधारित शिक्षा को अनिवार्य करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है. अब तक बोर्ड केवल परामर्श के स्तर पर ही मातृभाषा के उपयोग को बढ़ावा देता रहा है, खासकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (NCFSE) 2023 लागू होने के बाद.

इन दोनों नीतिगत दस्तावेज़ों में प्रारंभिक शिक्षा - जिसे आधारभूत चरण कहा गया है - में मातृभाषा की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है. इनके अनुसार, आठ साल की उम्र तक बच्चों की सीखने की क्षमता उनकी घरेलू या जानी-पहचानी भाषा में सबसे अधिक प्रभावशाली होती है. NCFSE 2023 में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "बच्चे अपनी घरेलू भाषा में सबसे तेजी से और गहराई से अवधारणाएं सीखते हैं, इसलिए पढ़ाई की मुख्य भाषा आदर्श रूप से उनकी मातृभाषा, घरेलू भाषा या परिचित भाषा ही होनी चाहिए."

मातृभाषा में पढ़ाई से सीखने की रुचि बढ़ेगी

इस सोच के पीछे मकसद यह है कि बच्चे जब अपनी भाषा में सीखते हैं, तो वे न केवल बेहतर समझ पाते हैं, बल्कि सीखने में अधिक रुचि भी दिखाते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए अब CBSE ने अपने दिशा-निर्देशों को और मजबूत रूप देते हुए मातृभाषा आधारित शिक्षा को गंभीरता से लागू करने का संकेत दिया है.

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मातृभाषा में हो सकेगी गणित की पढ़ाई

CBSE के एक अधिकारी ने बताया कि कक्षा 1 और 2 में बच्चे मुख्य रूप से दो भाषाएं और गणित पढ़ते हैं. अब नए सर्कुलर के अनुसार, इन कक्षाओं में गणित की पढ़ाई भी बच्चों की मातृभाषा या किसी जानी-पहचानी क्षेत्रीय भाषा में कराई जा सकती है.

दो भाषाओं का परिचय: R1 और R2

इस स्तर पर पढ़ाई का मकसद होता है बच्चों को दो भाषाओं से धीरे-धीरे परिचित कराना - R1 (मातृभाषा या परिचित भाषा) और R2 (R1 के अलावा दूसरी भाषा). शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कक्षा 1 और 2 की NCERT की किताबें पहले से ही 22 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं, और बाकी कक्षाओं की किताबों का अनुवाद भी चल रहा है.

सर्कुलर में सभी स्कूलों से कहा गया है कि वे मई के अंत तक ‘NCF कार्यान्वयन समिति’ बनाएं. यह समिति छात्रों की मातृभाषा की पहचान करेगी, भाषा से जुड़ी सामग्री को तैयार करेगी और पाठ्यक्रम में जरूरी बदलावों का मार्गदर्शन देगी. साथ ही स्कूलों को जल्द से जल्द यह भाषा-मैपिंग की प्रक्रिया पूरी करने को कहा गया है.

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गर्मियों के बाद पढ़ाई में बदलाव और शिक्षक प्रशिक्षण

सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि गर्मियों की छुट्टियों के खत्म होने तक स्कूलों को पाठ्यक्रम और पढ़ाई की सामग्री में बदलाव करके R1 यानी मातृभाषा को पढ़ाई की मुख्य भाषा के रूप में लागू कर देना चाहिए. साथ ही, R2 भाषा की पढ़ाई को भी एक सही समय पर शुरू करने के लिए योजना बनानी होगी. इसके अलावा, शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण और कार्यशालाएं भी छुट्टियों के दौरान पूरी कर लेनी चाहिए, ताकि वे बहुभाषी कक्षाओं को बेहतर तरीके से संभाल सकें और भाषा के अनुसार बच्चों का मूल्यांकन कर सकें.

हालांकि मातृभाषा में पढ़ाई की शुरुआत जुलाई से की जा सकती है, लेकिन सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि अगर किसी स्कूल को बदलाव के लिए थोड़ा और समय चाहिए तो वह ले सकता है - बशर्ते सभी ज़रूरी संसाधन जुटा लिए जाएं, शिक्षकों की व्यवस्था हो जाए और पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव पूरे हो जाएं. लेकिन यह भी साफ कहा गया है कि इस प्रक्रिया में "अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए".

CBSE ने स्कूलों से कहा है कि वे जुलाई से हर महीने अपनी प्रगति की रिपोर्ट बोर्ड को भेजें. इसके अलावा, सर्कुलर में यह भी बताया गया है कि जरूरत पड़ने पर स्कूलों में शैक्षणिक निरीक्षक दौरा कर सकते हैं, ताकि उन्हें मदद और सही दिशा मिल सके.

CBSE के एक अधिकारी ने बताया कि यह सर्कुलर इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि स्कूल मातृभाषा आधारित पढ़ाई को लेकर सक्रिय कदम उठाएं. इसके लिए स्कूलों को अब अपने संसाधनों को इकट्ठा करना शुरू करना होगा और अगर उन्हें बदलाव के लिए ज़्यादा समय चाहिए, तो उन्हें एक समय-सीमा भी तय करनी होगी. अधिकारी ने यह भी कहा कि जिन स्कूलों के पास अच्छे संसाधन हैं, उन्हें शायद कोई बड़ी परेशानी न हो, लेकिन छोटे स्कूलों को यह बदलाव लागू करने में थोड़ा अधिक समय और मदद की ज़रूरत पड़ सकती है.

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मातृभाषा शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में पहला कदम

वहीं, शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि NCFSE (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा) यह सुझाव देता है कि छात्रों को मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प दिया जाना चाहिए, और CBSE का यह सर्कुलर उसी दिशा में एक अहम शुरुआत है. स्कूलों में किस भाषा में पढ़ाई कराई जाएगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां बच्चों की मातृभाषा कौन-कौन सी है - यह काम भाषा-मैपिंग से तय होगा.

लागू करने में आने वाली चुनौतियां

इधर, डीएलएफ फाउंडेशन स्कूल्स की चेयरपर्सन और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अमिता मुल्ला वत्तल ने CBSE के निर्देशों को लागू करने में स्कूलों को आने वाली चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया.

उन्होंने कहा, “किसी एक R1 यानी पहली भाषा को चुनना मुश्किल हो सकता है. अगर किसी बच्चे की घरेलू भाषा को नहीं चुना गया तो उसे अलग-थलग महसूस हो सकता है. कई बार सुविधा के लिए माता-पिता कह सकते हैं कि चलिए हिंदी में ही पढ़ाई हो जाए, भले ही हमारी मातृभाषा कुछ और हो. कुछ परिवार अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई को तरजीह भी दे सकते हैं. ऐसे में घर की उम्मीदें और स्कूल की नीतियां आपस में टकरा सकती हैं. मातृभाषा में बदलाव धीरे-धीरे और सही समर्थन के साथ करना होगा. साथ ही अगर कक्षा में अलग-अलग भाषाओं वाले बच्चे हों तो पढ़ाई की व्यवस्था कैसे होगी, यह भी एक सवाल है.”

उन्होंने आगे कहा, “गुरुग्राम जैसे शहरों में आबादी बहुत गतिशील है - हर राज्य से लोग आ रहे हैं और यहां कई भाषाएं बोली जाती हैं. ऐसे में यह जानना भी चुनौती है कि छात्र किस भाषा में बात करते हैं. इसके लिए माता-पिता को बताना होगा कि वे घर में कौन-सी भाषा बोलते हैं. लेकिन कई बार घर पर मातृभाषा भी नहीं बोली जाती. शहरी इलाकों में क्लासरूम में भाषाओं का मिश्रण होता है और संसाधन भी सीमित होते हैं. हमें ऐसे शिक्षक रखने होंगे जो भाषा को जानते ही न हों, बल्कि उस भाषा में पढ़ा भी सकें. साथ ही, हमें माता-पिता से संवाद करना होगा और उन्हें समझाना होगा कि ऐसा क्यों किया जा रहा है.”

आईटीएल पब्लिक स्कूल, द्वारका की प्रिंसिपल सुधा आचार्य ने बताया, “हमने अप्रैल में भाषा-मैपिंग की थी. हमारे यहां सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषा हिंदी है. इसलिए हमारे लिए R1 हिंदी होगी और R2 अंग्रेजी. यहां शुरुआती यानी आधारभूत कक्षाओं में पढ़ाई हमेशा दो भाषाओं में होती है. जब बच्चे तीन साल की उम्र में स्कूल आते हैं, तो आमतौर पर वही भाषा बोलते हैं जो वे घर में सुनते हैं. कक्षा 3 से 5 तक पढ़ाई दो भाषाओं में हो सकती है, लेकिन हम अंग्रेजी माध्यम का स्कूल हैं, इसलिए इन कक्षाओं में हम अंग्रेजी में ही पढ़ाई जारी रखेंगे.”

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