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SBI के फैसले पर मद्रास हाईकोर्ट की मुहर, CIBIL रिपोर्ट खराब होने पर बैंक की नौकरी नहीं देने को बताया सही

SBI Job Denial Due to Poor CIBIL Report : मद्रास हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें खराब CIBIL रिपोर्ट के आधार पर SBI में नौकरी नहीं दिए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी.

SBI Job Denial Due to Poor CIBIL Report : मद्रास हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें खराब CIBIL रिपोर्ट के आधार पर SBI में नौकरी नहीं दिए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी.

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FE Hindi Desk
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मद्रास हाईकोर्ट ने एक ताजा फैसले में खराब CIBIL रिपोर्ट की वजह से SBI में नौकरी नहीं दिए जाने को सही ठहराया है. (File Photo : PTI)

SBI Job Denial Due to Poor CIBIL Report Valid Says Madras HC : अगर किसी व्यक्ति की CIBIL रिपोर्ट खराब है, तो उसे बैंक में नौकरी देने से इनकार करना बिलकुल सही फैसला है. यह महत्वपूर्ण बात मद्रास हाईकोर्ट के एक ताजा फैसले में सामने आई है. अदालत ने यह फैसला स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है. CIBIL रिपोर्ट से किसी शख्स की क्रेडिट हिस्ट्री का पता चलता है.  

क्या है पूरा मामला

दरअसल SBI ने सर्कल बेस्ड ऑफिसर (CBO) के पद के लिए अप्लाई करने वाले एक कैंडिटेट को नौकरी देने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उसकी CIBIL रिपोर्ट खराब थी. लेकिन उस कैंडिटेट ने SBI के फैसले को गलत, मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए उसके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में अपील कर दी. लेकिन कोर्ट ने बैंक के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा कि बैंकों का काम जनता के पैसों को मैनेज करना है, लिहाजा वहां काम करने वालों में मजबूत वित्तीय अनुशासन (financial discipline) होना बेहद जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि अगर किसी कैंडिडेट का अपना ही क्रेडिट रिकॉर्ड खराब है, तो उस पर इतना भरोसा नहीं किया जा सकता कि उसे बैंकिंग जैसे संवेदनशील सेक्टर में काम करने लायक माना जाए.

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बैंक कर्मचारियों में वित्तीय अनुशासन जरूरी

जस्टिस एन. माला ने अपने फैसले में कहा कि बैंक में काम करने वालों को आम जनता के पैसे को संभालना होता है. इसलिए उनसे यह उम्मीद की जाती है कि उनका अपना वित्तीय अनुशासन मजबूत हो. कोर्ट ने माना कि SBI ने CIBIL रिपोर्ट में डिफॉल्ट या निगेटिव जानकारी वाले उम्मीदवारों को नियुक्त नहीं करने का जो फैसला लिया, वह पूरी तरह व्यावहारिक और तार्किक था.

जज ने कहा, “बैंक का यह फैसला समझदारी भरा है कि जिन उम्मीदवारों से अपने निजी लोन चुकाने में चूक हुई है या जिनकी CIBIL रिपोर्ट निगेटिव है, उन्हें बैंक में नौकरी के लायक नहीं माना जाएगा. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र में कर्मचारी सीधे पब्लिक मनी से डील करते हैं.”

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कोर्ट ने नहीं माना कैंडिटेट का दावा

SBI में सर्कल बेस्ड ऑफिसर (CBO) के पद के लिए आवेदन करने वाले कैंडिडेट ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उसने नौकरी के लिए जरूरी योग्यता की सभी शर्तें पूरी की थीं. इसमें परीक्षा, इंटरव्यू, मेडिकल टेस्ट और CIBIL जांच समेत डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन क्लियर करना शामिल है. इसके बाद ही 16 मार्च 2021 को उसे अपॉइंटमेंट लेटर मिला था. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि 12 मार्च 2021 को उसकी CIBIL रिपोर्ट तैयार हुई थी, जिसके बाद बैंक ने उससे कुछ सफाई मांगी थी. इसके बाद उसने सभी सवालों के जवाब दिए और अप्वाइंटमेंट बनाए रखने का अनुरोध किया. उसने दावा किया कि जॉब नोटिफिकेशन वाले दिन उस पर कोई बकाया नहीं था और उसने पहले के सभी लोन चुका दिए थे. उसने यह दावा भी किया कि CIBIL या किसी अन्य एजेंसी ने उसे कभी डिफॉल्टर घोषित नहीं किया.

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सेलेक्शन प्रॉसेस में भेदभाव का आरोप भी लगाया

अपनी याचिका में कैंडिटेट ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ दूसरे उम्मीदवारों को CIBIL रिकॉर्ड क्लियर नहीं होने के बावजूद नौकरी दी गई है. इससे सेलेक्शन में भेदभाव का पता चलता है. याचिका में कैंडिटेट ने कहा कि एलिजिबिलिटी क्लॉज 1(E) का इस्तेमाल करके उसकी नियुक्ति को रद्द करना मनमाना और गैरकानूनी है.

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सारी कार्रवाई नियमों के मुताबिक : SBI

वहीं SBI ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि एलिजिबिलिटी के क्लॉज 1(E) के तहत कोई भी ऐसा उम्मीदवार, जिसका लोन डिफॉल्ट या CIBIL/बाहरी एजेंसी की रिपोर्ट निगेटिव हो, नौकरी के लिए योग्य नहीं है. बैंक ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता की रिपोर्ट में क्रेडिट कार्ड और लोन चुकाने में डिफॉल्ट की बात सामने आई थी. बैंक ने यह भी आरोप लगाया कि उम्मीदवार ने कुछ जरूरी वित्तीय जानकारियां छिपाईं, इसलिए उसे नौकरी पाने का अधिकार नहीं है. जहां तक भेदभाव का सवाल है, बैंक ने साफ किया कि दूसरे उम्मीदवारों के मामले में इतने ज्यादा डिफॉल्ट नहीं थे जितने इस याचिकाकर्ता के थे.

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हाई कोर्ट ने खुद की CIBIL रिकॉर्ड की जांच

मद्रास हाई कोर्ट ने CIBIL रिकॉर्ड की जांच की तो पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 9 डिफॉल्ट और 10 से अधिक क्रेडिट इन्क्वायरी दर्ज थीं. जबकि नियमों के अनुसार नौकरी देने के लिए साफ-सुथरी क्रेडिट हिस्ट्री होना जरूरी था. कोर्ट ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता ने खुद भी माना है कि उसने लोन की कुछ किस्तें नहीं चुकाई थीं. तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने माना साफ किया कि सेलेक्शन प्रॉसेस में कोई भेदभाव नहीं किया गया. सभी नियुक्तियां योग्यता से जुड़ी सारी शर्तें पूरी करने वालों को ही दी गईं.

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