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Investors Alert : निवेशकों को टैरिफ को लेकर हर कंडीशन के बारे में विचार करना चाहिए, जिसके बाद निवेश का निर्णय लेना आसान होगा. (AI Generated)
How to think about tariff war : डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा टैरिफ को लेकर एग्रेसिव अप्रोच ने दुनियाभर के बाजारों और निवेशकों में खलबली मचा दी है. बाजार लगातार अनिश्चितताओं का सामना कर रहे हैं और निवेशक पूरी तरह से कनफ्यूज हैं. ऐसे में बाजारों में रह रहकर बिकवाली देखने को मिल रही है. डर के चलते निवेशकों को लेकर गलत निर्णय लिए जा रहे हैं. यहां तक कि निवेशकों को समझ में नहीं आ रहा है कि अभी अपने पैसे किन विकल्पों में लगाएं.
डीएसपी म्यूचुअल फंड का कहना है कि इसके लिए टैरिफ को समझने का सही तरीका अपनाया जाना जरूरी है. निवेशकों को हर कंडीशन के बारे में विचार करना चाहिए, जिसके बाद निवेश (Investment ) का निर्णय लेना कुछ आसान हो जाएगा. मौजूदा समय के लिए म्यूचुअल फंड हाउस ने डायनमिक एसेट एलोकेशन फंड (DAAF) और मल्टी एसेट एलोकेशन फंड (MAAF) कैटेगरी को बेहतर विकल्प बताया है.
टैरिफ को कैसे समझ सकते हैं, ये 4 प्वॉइंट करेंगे मदद
(1) टैरिफ वापस लिए जा सकते हैं, यह बस कुछ दिनों की परेशानी है. यह सोचना स्वाभाविक है कि कोई भी राष्ट्रपति अपनी ही अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाएगा और यह बस डराने की रणनीति है. हो सकता है यह सही हो, लेकिन यह गलत भी हो सकता है. मुख्य बात यह समझना है कि अगर ये कदम एक महीने तक भी चलते रहे, तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं. शेयर बाजार इंतजार नहीं करता, उम्मीद को हकीकत बनने तक नहीं देखता. अगर हम गलत समय पर घबरा गए, तो असली नुकसान स्थायी हो सकता है. यही कारण है कि सही एसेट एलोकेशन (asset allocation) बहुत जरूरी है.
(2) भारत का टैरिफ 26% और चीन का 54% है, तो हम बेहतर स्थिति में हैं. यह सोचना सही नहीं है. ट्रेड वार (trade wars) का असर व्यापक और आर्थिक विकास के लिए नुकसानदायक होता है. सिर्फ किसी विशेष सेक्टर पर ध्यान मत दें. जब ग्लोबल स्तर पर व्यापार सुस्त पड़ता है, तो ओवरआल इकोनॉमिक ग्रोथ को बड़ा झटका लगता है.
(3) अमेरिका को भारत का निर्यात सिर्फ भारत की GDP का 2% है, इसलिए हमें बड़ा असर नहीं होगा. यह समस्या को देखने का अधूरा नजरिया है. ट्रेड वार कभी द्विपक्षीय (bilateral) नहीं होते. चीन, जिस पर 9 अप्रैल तक 104 फीसदी का टैरिफ लगाया गया था, अमेरिका को पहले वाली कीमत पर निर्यात नहीं कर सकता. ऐसे में वह अपने माल को दूसरे देशों में भेज सकता है जहां टैरिफ कम हैं. यह दूसरा देश जवाबी कदम उठा सकता है और इससे एक बहुपक्षीय, ग्लोबल ट्रेड वार शुरू हो सकता है. भारत का कुल निर्यात GDP का 12 फीसदी है, और यह खतरे में पड़ सकता है, अगर दूसरे देश सिर्फ अमेरिका पर नहीं, बल्कि एक-दूसरे पर भी टैरिफ लगाना शुरू कर दें.
(4) अगर हम COVID और 2008 के वित्तीय संकट (GFC) से बच गए, तो इससे भी बच जाएंगे. बेहतर सोच यह है कि बचने के बजाय पहले से तैयारी करें. ऐसे पोर्टफोलियो जो सावधानीपूर्वक एसेट एलोकेशन, डाइवर्सिफिकेशन, और रिस्क कंट्रोल के साथ बनाए गए हों, किसी भी बाजार संकट से बच सकते हैं. नहीं तो बड़े नुकसान हमारी व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं को सबसे गलत समय पर प्रभावित कर सकते हैं.
ट्रेड वॉर के बारे में सोचने का तरीका
(a) सबसे अच्छी स्थिति : अगर डोनाल्ड ट्रंप लगाए गए टैरिफ को हटा देते हैं या अस्थायी रूप से रोक लगाने का ऐलान करते हैं. यह सबसे अच्छा डैमेज कंट्रोल होगा और बाजार के लिए थोड़े समय के लिए पॉजिटिव रहेगा.
(b) सबसे संभावित स्थिति : ट्रंप द्विपक्षीय बातचीत के लिए राजी होते हैं. इससे अलग-अलग देशों के फायदे और नुकसान की संभावना बढ़ जाती है, जिससे बाजार अस्थिर और चिंतित रह सकता है.
(c) सबसे खराब स्थिति: दूसरे देश जवाबी कदम उठाते हैं, वह भी सिर्फ अमेरिका के खिलाफ नहीं, बल्कि एक-दूसरे के खिलाफ भी. यह स्थिति ग्लोबल और भारत की ग्रोथ पर गंभीर असर डाल सकती है. बाजार इसे हल्के में नहीं लेगा, और हर गुजरते दिन के साथ यह परिणाम ज्यादा संभावित होता जा रहा है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए
डीएसपी म्यूचुअल फंड का कहना है कि अगर नए सिरे से निवेश करना है तो हाइब्रिड फंड (Hybrid Mutual Fund) बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि बाजार में पहले से ही गिरावट आ चुकी है. खास तौर पर डायनमिक एसेट एलोकेशन फंड (DAAF) और मल्टी एसेट एलोकेशन फंड (Multi Asset Allocation) कैटेगरी पर फोकस करें. अगर आपका इक्विटी में एलोकेशन कम है, तो हाइब्रिड फंड के जरिए नॉर्मल लेवल पर रीबैलेंस बना सकते हैं.
टैरिफ या बाजारों के भविष्य का अनुमान लगाने या पूर्वानुमान लगाने से बचें. अगर इंडिया लार्ज-कैप में 10 से 15 फीसदी की और गिरावट आती है, तो वे एवरेज वैल्युएशन पर पहुंच सकते हैं. खुद को उन स्ट्रैटेजी से जोड़ने पर ध्यान दें, जिनमें क्वालिटी के साथ वैल्युएशन का ध्यान रख गया है. निवेश करना कोई सटीक साइंस नहीं है, इसलिए एक ही बार पैसा लगाने की बजाय फेजवाइज खरीदारी करें. निवेश के निर्णय में जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है.
उथल-पुथल के समय में अपने द्वारा किए जाने वाले कामों और ट्रांजेक्शन की संख्या कम करके इमोशनल कैपिटल बचाएं. हाई एक्टिविटी लॉन्ग टर्म कंपाउंडिंग की दुश्मन है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये अनचाही घटनाएं इक्विटी और अन्य एसेट्स में बारगेन (सौदेबाजी) के अवसर पैदा करती हैं. मल्टी-एसेट या कन्जर्वेटिव अप्रोच रखने वाले निवेशक इन घटनाओं से लाभ उठा सकते हैं. जब निवेशक इमोशनल रिस्पांस के चलते बिकवाली करते हैं, तो धैर्य बनाए रखने वाले निवेशक इस बारगेन से लाभ उठा सकते हैं. बेहतर है कि अपने लक्ष्य पर बने रहें.
(नोट : हमने ये आर्टिकल म्यूचुअल फंड हाउस की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की है. इसका उद्देश्य निवेशकों को जानकारी देना है. इस आर्टिकल में कुछ विकल्पों में निवेश की सलाह म्यूचुअल फंड द्वारा दी गई है, यह फाइनेंशियल एक्सप्रेस के निजी विचार नहीं हैं. बाजार में जोखिम होते हैं, इसलिए निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह लें.)