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Income Tax Bill 2025 : लोकसभा की सेलेक्ट कमेटी ने इनकम टैक्स बिल 2025 के विवादित प्रावधान को बरकरार रखा है. (AI Generated Image)
Income Tax Bill 2025 : लोकसभा की सेलेक्ट कमेटी ने इनकम टैक्स बिल 2025 की रिपोर्ट संसद में पेश कर दी है. इस रिपोर्ट में एक बेहद विवादित प्रावधान को जस का तस बनाए रखा गया है, जो अधिकारियों को टैक्स सर्च के दौरान किसी भी व्यक्ति के सोशल मीडिया अकाउंट्स, ईमेल और डिजिटल डिवाइसेज़ को जबरन एक्सेस करने की इजाजत देता है. इस प्रावधान को देश के करोड़ों टैक्सपेयर्स की प्राइवेसी के लिए गंभीर चुनौती खड़ी करने वाला माना जा रहा है.
विवादित प्रावधान में बदलाव के बिना पेश हुई रिपोर्ट
संसद में 21 जुलाई को पेश की गई सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट 4575 पेज की है, और इसमें उस विवादित प्रावधान पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई है, जिसमें टैक्स अधिकारियों को किसी भी व्यक्ति की डिजिटल जानकारी जैसे सोशल मीडिया अकाउंट्स, ईमेल, बैंकिंग ऐप्स और क्लाउड स्टोरेज तक एक्सेस का अधिकार दिया गया है.
इसका मतलब साफ है कि अब अगर किसी टैक्सपेयर के खिलाफ तलाशी अभियान चल रहा है, तो अधिकारी उसके पर्सनल डिजिटल डाटा तक पहुंच बना सकते हैं – वो भी उसकी मर्जी के बिना.
क्या कहता है नया इनकम टैक्स बिल 2025
फरवरी 2025 में संसद में पेश किया गया इनकम टैक्स बिल 2025 टैक्स अधिकारियों को डिजिटल इन्वेस्टिगेशन के लिए बेहिसाब अधिकार देता है.
इस बिल के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति के पास कोई डिजिटल दस्तावेज़, रिकॉर्ड या जानकारी पाई जाती है, तो उसे आयकर अधिकारी को हर प्रकार की तकनीकी सहायता देनी होगी, ताकि वह उस जानकारी तक पहुंच सके. इसमें पासवर्ड, लॉगिन क्रेडेंशियल्स और एक्सेस कोड देना भी शामिल है.
अगर कोई पासवर्ड या एक्सेस कोड उपलब्ध नहीं हुआ, तो अधिकारी तकनीकी उपायों से उस ‘वर्चुअल डिजिटल स्पेस’ तक जबरन पहुंच बना सकते हैं.
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क्या है ‘वर्चुअल डिजिटल स्पेस’
‘वर्चुअल डिजिटल स्पेस’ में आपके व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया अकाउंट्स, जीमेल जैसे ईमेल अकाउंट्स, ऑनलाइन ट्रेडिंग या निवेश ऐप्स, बैंकिंग ऐप्स, क्लाउड स्टोरेज और अन्य डिजिटल एप्लिकेशन शामिल हैं.
यानी अगर किसी भी वजह से आपके खिलाफ जांच या तलाशी चल रही है, तो अब अधिकारी आपके मोबाइल, लैपटॉप, ऐप्स और ईमेल में मौजूद निजी बातचीत और डेटा को भी एक्सेस कर सकते हैं – वह भी आपकी इजाजत के बिना.
एक्सपर्ट्स के एतराज नजरअंदाज किए गए
कमेटी की रिपोर्ट में माना गया है कि इस प्रावधान की समीक्षा के दौरान कई पार्टियों और विशेषज्ञों ने गंभीर आपत्तियां जताईं थीं. उनका कहना था कि यह नागरिकों की प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हो सकता है और इसका दुरुपयोग भी हो सकता है. लेकिन इसके बावजूद कमेटी ने इस प्रावधान में कोई बदलाव नहीं किया और इसे वैसे ही बनाए रखा.
टैक्सपेयर्स के लिए इसका क्या मतलब है?
अब अगर किसी टैक्सपेयर के खिलाफ आयकर विभाग की कोई जांच चल रही है, तो अधिकारी उनके सोशल मीडिया, ईमेल, क्लाउड डेटा जैसी निजी जानकारियों तक पहुंच सकते हैं. अगर टैक्सपेयर ने पासवर्ड या एक्सेस कोड देने से इनकार किया, तो तकनीकी रूप से इसे क्रैक किया जा सकता है.
हालांकि यह केवल छापेमारी या जांच की स्थिति में ही लागू होगा, लेकिन अभी तक इसकी लिमिटेशन, नियम और निगरानी का कोई स्पष्ट सिस्टम नहीं बताया गया है.