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हर साल 12% का सपना? शायद यही आपका सबसे बड़ा रिस्क है।

कई निवेशक हर साल 12% रिटर्न की उम्मीद में गलत फैसले ले बैठते हैं. ये “एंकरिंग बायस” उन्हें अच्छे निवेश छोड़कर ज़्यादा रिस्क वाले फंड्स की ओर धकेलता है. असली सफलता नंबर नहीं, डिसिप्लिन और धैर्य में है.

कई निवेशक हर साल 12% रिटर्न की उम्मीद में गलत फैसले ले बैठते हैं. ये “एंकरिंग बायस” उन्हें अच्छे निवेश छोड़कर ज़्यादा रिस्क वाले फंड्स की ओर धकेलता है. असली सफलता नंबर नहीं, डिसिप्लिन और धैर्य में है.

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Chinmayee P Kumar
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क्या ‘परफेक्ट रिटर्न’ की तलाश में आप असली रिटर्न खो रहे हैं? Photograph: (Gemini)

आपने भी शायद ऐसा किया होगा. अपने आप से कहा — “मुझे तो हर साल 12% रिटर्न चाहिए ही चाहिए.”
आपको लगा ये कोई जुआ नहीं, आप समझदारी से प्लान बना रहे हैं, कोई रिस्क नहीं ले रहे. यह एक ठोस, लक्ष्य-आधारित रणनीति है.            

लेकिन फिर बाज़ार ने आपकी योजना पर पानी फेर दिया. आपका फंड 8% पर अटक गया, और बेचैनी ने दस्तक दी. आपने सोचा शायद कहीं और 12%  मेरा इंतज़ार कर रहा है. और बस, वहीं से गलती शुरू हुई. आप ज़्यादा जोखिम वाले फंड्स की ओर मुड़ गए, इस उम्मीद में कि वहाँ “वो जादुई रिटर्न” मिलेगा. पर असल में वही एंकर, वही “12% का सपना” आपको नीचे खींच लाया.

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ऐसा होते ही समझये कि आप अपने ही एंकरिंग बायस के जाल में फँस गए, जहाँ एक संख्या, एक रेफ़रेंस पॉइंट, आपकी पूरी सोच पर कब्जा कर लेता है. धीरे-धीरे वो आंकड़ा हकीकत नहीं, बल्कि आपका सच बन जाता है और फिर आपका हर फैसला उसी के इर्द-गिर्द घूमने लगता है.

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एक आंकड़ा जो यक़ीन भी देता है, धोखा भी

एंकरिंग हमें आराम का एहसास देती है. ऐसा लगता है जैसे इस उलझे हुए, हर पल बदलते बाज़ार में हमने कुछ कंट्रोल पा लिया हो. लेकिन सच्चाई ये है कि 12% रिटर्न का लक्ष्य यह  एक नंबर जैसे बस यूँ ही बना लिया जाता है.
उसके पीछे न कोई ठोस वजह होती है, न कोई असली हिसाब-किताब. वो न तो असली रिस्क को समझता है, न मार्केट के उतार-चढ़ाव को. यह सिर्फ एक ऐसा आंकड़ा जो हमें भरोसा तो देता है पर सच से दूर ले जाता है.

कई भारतीय निवेशक इसी  'psychological  crutch' पर टिक जाते हैं. इसका नतीजा? एक साल फंड ने कम रिटर्न दिया नहीं कि लोग लार्ज-कैप फंड बेच देते हैं,और अगले ही पल उस पकड़ में न आने वाले 15% रिटर्न की तलाश में मिड-कैप फंड्स में कूद जाते हैं. असल में, ये कोई स्ट्रैटेजी नहीं होती बस इमोशन को डिसिप्लिन का रूप दे दिया जाता है.

जब निफ्टी 50 ( Nifty) डगमगा रहा हो, और महंगाई फिक्स्ड रिटर्न को कुतर रही हो, तो ऐसे मनमाने नंबरों से चिपके रहना वैसा ही है जैसे पिछले साल के स्पीडोमीटर को देखकर आज की कार चलाने की कोशिश करना.  

हर कुछ सालों में बाज़ार वही पुराना भ्रम फिर से पैदा कर देता है. कुछ अच्छे साल आते हैं, और निवेशकों को लगने लगता है कि उन्होंने सफलता का फॉर्मूला ढूंढ लिया है. लार्ज-कैप्स उछाल मारते हैं, स्मॉल-कैप्स अजेय दिखते हैं, और हर कोई अपने आपको “जीनियस” समझने लगता है.

फिर चक्र पलट जाता है. अचानक आपका “स्मार्ट” फंड पीछे रह जाता है. रिटर्न घटते हैं. आत्मविश्वास की जगह डर ले लेता है. रिडेम्प्शन रिक्वेस्ट्स बढ़ जाते हैं. और वही निवेशक, जो कल तक “लॉन्ग-टर्म विज़न” की बातें कर रहे थे, रातों-रात शॉर्ट-टर्म ट्रेडर्स बन जाते हैं.

किसी तय नंबर से चिपके रहना सिर्फ़ आपकी परफ़ॉर्मेंस को ही नहीं, आपके सब्र को भी खत्म कर देता है. आप उस झूठे यक़ीन के पीछे उन अच्छे निवेशों को भी छोड़ देते हैं कि शायद कोई एक नंबर ही आपको यकीनी सफलता दिला देगा.

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कैसे एक “ठीक-ठाक” लक्ष्य आपके रिटर्न्स बिगाड़ देता है

मान लीजिए, आपने ₹10 लाख एक लार्ज-कैप म्यूचुअल फंड  (Mutual Fund) में लगाए. आपकी उम्मीद थी हर साल करीब 12% रिटर्न मिलेगा.

पहला साल: बढ़िया रहा, 15% रिटर्न मिला.

दूसरा साल: थोड़ा कम, 10% मिला.

तीसरा साल: बस 6% मिला और आप परेशान हो गए.

आपको लगा, “ये फंड तो अब स्लो हो गया,” तो आपने पैसा निकालकर उस मिड-कैप फंड में डाल दिया जिसने हाल ही में 18% दिया था.

चौथा साल: वही नया फंड 14% गिर गया.

चार साल बाद आपके ₹10 लाख बढ़कर सिर्फ ₹11.5 लाख बने. अगर आप पहले वाले फंड में ही टिके रहते (और मान लें चौथे साल उसमें 0% रिटर्न मिलता), तो आपके पैसे ₹13.4 लाख होते.

ये बुरा नसीब नहीं था ये गलत सोच थी.

वो “12% रिटर्न” का सपना आपको बार-बार फंड बदलने पर मजबूर करता रहा. असल नुकसान बाज़ार में नहीं, आपकी उम्मीदों में हुआ.

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अब ध्यान किस पर लगाना चाहिए

अगर किसी चीज़ से जुड़ना ही है, तो रिटर्न से नहीं, सही तरीके से जुड़िए.

🔹 हकीकत में रहने वाली उम्मीदें रखें
शेयर बाज़ार हमेशा एक जैसा नहीं चलता यह कभी ज़्यादा रिटर्न देगा, कभी कम. इसलिए एक फिक्स नंबर नहीं, बस एक रेंज सोचिए.

🔹 रिस्क को समझिए
अगर 10% रिटर्न कम उतार-चढ़ाव के साथ आता है, तो वो 14% के रोलर-कोस्टर से बेहतर है. देखिए, उस “थोड़े ज़्यादा” रिटर्न के लिए आप कितना रिस्क झेल सकते हैं.

🔹 समय पर भरोसा करें, टाइमिंग पर नहीं
परफॉर्मेंस को 5 साल में देखें, 5 महीने में नहीं. थोड़े समय की गिरावट, लंबी दौड़ की सच्चाई नहीं बताती.

🔹 डिसिप्लिन बनाए रखें
हर बार नया “हॉट” फंड पकड़ने की ज़रूरत नहीं. लंबे समय तक टिके रहना ही सबसे समझदारी है.

🔹 निवेशों को संतुलित रखें
लार्ज-कैप से स्थिरता लाएं, पर थोड़ा मिड- और स्मॉल-कैप भी रखें —बस उतना, जितना आपको  रिस्क लेवल के हिसाब से ठीक लगे.

🔹 संतुलित सोच रखिए
मार्केट किसी को तय रिटर्न नहीं देता. वो जो देगा, वही रियल है. जितनी जल्दी आप ये मान लेंगे, उतने बेहतर इन्वेस्टर बनेंगे.

आप बाज़ार से नहीं हारे,आप खुद से हारे

हर निवेशक यही मानता है कि वो बिलकुल तर्कसंगत है. लेकिन सच्चाई ये है — मार्केट को आपकी मान्यताओं की कोई परवाह नहीं होती. 'एंकरिंग बायस' ऐसा है जैसे आप दूर चमकते लाइटहाउस को देखते रह जाते हैं, जबकि लहरें आपको धीरे-धीरे समुद्र के भीतर खींच रही होती हैं. आपको लगता है कि आप “फोकस्ड” हैं पर असल में आप किनारे से और दूर होते जा रहे होते हैं.

इसके पीछे की कड़वी सच्चाई? आपने खुद को ही नुकसान पहुँचाया. अपनी बेंचमार्क की जिद में आपने रिटर्न, सुकून और समझ तीनों खो दिए. आपने अच्छे फंड्स छोड़ दिए सिर्फ़ इस झूठे भरोसे में कि आप सब कंट्रोल कर सकते हैं.तो असल में आप बाज़ार से नहीं हारे, आप अपने ही मन से हारे.

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कैसे छूटें एंकरिंग के जाल से

अगली बार कोई निवेश निर्णय लेने से पहले खुद से ये सवाल पूछिए —

  1. क्या मैं रिटर्न देखकर रिएक्ट कर रहा हूँ या अपने असली लक्ष्यों को दोबारा देख रहा हूँ?

  2. क्या मेरी उम्मीदें सही जानकारी पर हैं, या सिर्फ़ पुराने अच्छे रिटर्न्स को याद करके बना ली हैं?

  3. क्या मैंने इस फंड का रिटर्न और रिस्क, दोनों को देखकर तुलना की है या बस उसका ताज़ा रिटर्न नंबर ही देखा है?

  4. क्या मैं परफॉर्मेंस को लंबे समय (कम से कम 5 साल) में आंक रहा हूँ?

  5. अगर ये फंड अगले साल कम प्रदर्शन करे, तो क्या मैं फिर भी इसमें निवेश करूंगा?

अगर आप इन सवालों में से कम से कम तीन का जवाब “हाँ” में नहीं दे सकते, तो ज़रा ठहर जाइए. आप निवेश नहीं कर रहे आप बस रिएक्ट कर रहे हैं.

'एंकरिंग बायस' आपको सिर्फ़ कमजोर नहीं, बल्कि अंधा निवेशक बना देता है. बाज़ार कभी आपकी सपनों वाली 12% की सीधी-सादी ग्रोथ के हिसाब से नहीं चलेगा. यह कभी ऊपर जाएगा, कभी नीचे — यही उसका असली स्वभाव है. अगर आप उस एक नंबर को छोड़ दें और डिसिप्लिन, सही तरीके और धैर्य पर ध्यान रखें तो शायद वही रिटर्न मिल जाए जिसकी आप इतने समय से उम्मीद कर रहे हैं.

डिसक्लेमर
नोट : इस लेख में फंड रिपोर्ट्स, इंडेक्स इतिहास और सार्वजनिक सूचनाओं का उपयोग किया गया है. विश्लेषण और उदाहरणों के लिए हमने अपनी मान्यताओं का इस्तेमाल किया है.

इस लेख का उद्देश्य निवेश के बारे में जानकारी, डेटा पॉइंट्स और विचार साझा करना है. यह निवेश सलाह नहीं है. यदि आप किसी निवेश विचार पर कदम उठाना चाहते हैं, तो किसी योग्य सलाहकार से सलाह लेना अनिवार्य है. यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है. व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं और उनके वर्तमान या पूर्व नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते.

चिन्मयी पी. कुमार एक फाइनेंस-फोकस्सड कंटेंट प्रोफेशनल हैं, जिन्हें निवेश से जुड़ी कहानियों को समझदारी और सादगी से पेश करने का हुनर है. वो जटिल निवेश विषयों जैसे इक्विटी रिसर्च, पर्सनल फाइनेंस, और वेल्थ मैनेजमेंट  को आसान भाषा में समझाने में माहिर हैं. उनका लेखन पहले बार निवेश करने वालों से लेकर अनुभवी बाज़ार विशेषज्ञों दोनों के लिए असरदार रहता है.

Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.

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