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सिर्फ तारीफों पर भरोसा? ये आपके पैसे को डुबो सकता है! Photograph: (Gemini)
अक्सर ऐसा होता है कि आप कि नज़र 'ग्लोइंग हेडलाइंस' पर रुक जाती है.
“साल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला.”
“दशक का फंड मैनेजर.”
“लगातार बेहतर प्रदर्शन करने वाला.”
रिव्यू पढ़े, YouTube वीडियो देखे. खुश निवेशक, जो अपनी बढ़ती NAV दिखा रहे थे, आपको आत्मविश्वास दे रहे थे. आप सोच रहे थे — हाँ, यही विजेता है.
लेकिन फिर आपने कुछ महत्वपूर्ण चीजें नजरअंदाज कर दीं. वे लेख जो फंड के उच्च खर्च, एक-आयामी रणनीति, और साइडवेज़ बाजार में कमजोर प्रदर्शन पर सवाल उठाते थे, आपने पढ़े ही नहीं. लंबी अवधि के आंकड़े और अन्य फंड्स से तुलना? उसे भी आपने टाल दिया. आपने खुद से कहा, “अगर हर कोई कह रहा है कि यह अच्छा है, तो यह अच्छा ही होगा.”
और शायद यही हमारी सबसे बड़ी भूल होती है — 'ग्लोइंग हेडलाइंस' के पीछे की कहानी न देखना.
यही कन्फर्मेशन बायस (confirmation bias) का खेल है. आप वही जानकारी ढूंढते हैं जो आपकी पहले से मान्य राय को सही ठहराए. और जो जानकारी आपकी सोच को चुनौती देती है, उसे आप नजरअंदाज कर देते हैं. यह निवेश (investment) में सबसे खतरनाक जालों में से एक है.
क्यों? क्योंकि यह आपको ठीक उसी समय अक्लमंद महसूस कराता है, जब आप एक महंगी गलती करने वाले होते हैं.
जब आंकड़ों ने अपनी बात खुद कहनी शुरू की
तो चलिए बात करते हैं — आंकड़े सच में क्या कह रहे हैं.
SPIVA India Mid-Year 2025 Scorecard के अनुसार, पिछले दशक में लगभग 73% सक्रिय रूप से प्रबंधित large-cap equity funds अपने बेंचमार्क से पीछे रहे. मिड और स्मॉल-कैप फंड्स के लिए यह संख्या बढ़कर 82% हो जाती है.
इसका मतलब? जो निवेशक (investors) सोचते थे कि वे “मार्केट को मात दे रहे हैं,” वे असल में ज्यादा फीस देकर मार्केट से पीछे रह गए. और अगर आपने मीडिया के शोर-शराबे या विज्ञापनों की वजह से कोई नया “hot” म्यूचुअल फंड (mutual Fund) खरीदा, तो संभावना है कि आपने परफॉर्मेंस साइकल के चरम पर खरीदा, शुरुआत में नहीं.
राज की कहानी जिसे आपने सीखने से इनकार कर दिया
आइए इसे एक निवेशक तक सीमित करे. मान लीजिए राज वो निवेशक है. वह असली नहीं है, लेकिन उसकी की गई गलतियाँ असली हैं.
राज ने एक मिड-कैप फंड देखा, जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा था. तीन साल में इस फंड ने निवेशकों की पूंजी दोगुनी कर दी थी. फंड मैनेजर टीवी और मीडिया में इंटरव्यू दे रहा था. बिज़नेस चैनलों ने उसे “स्टार” कहा. ब्लॉग्स उसकी “जोखिम-सम्भाल वाली रणनीति” की तारीफ कर रहे थे. राज यह मौका खोना नहीं चाहता था.
उसने सिर्फ अच्छी बातें पढ़ीं, सावधानी रखने वाले नोट्स (cautionary notes) को नजरअंदाज किया और अपनी आधी बचत को उस फंड में लगा दिया. जो चीज वह नहीं समझ पाया, वो यह थी कि फंड की शानदार कमाई तेज़ बुल मार्केट की वजह से थी. इसके अलावा, फंड का खर्च (expense ratio) औसत से ज्यादा था और इसका पोर्टफोलियो कुछ महंगे मिड-कैप शेयरों तक ही सीमित था.
अगले साल, जब बाजार ठंडा हुआ, तो वही शेयर फंड की परफॉर्मेंस को पीछे खींचने लगे. साथियों के फंड, जिनमें ज्यादा विविधता (diversification) थी और कम फीस थी, उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया. राज का “विजेता” फंड अब पीछे चलने वाला बन गया.
जब उसने पीछे मुड़कर देखा, तो हर चेतावनी का संकेत वहां था. बस उसने उसे पढ़ने और समझने की ज़रूरत नहीं समझी.
कैसे आप इस जाल में फंस जाते हैं
आपको लग सकता है कि आप तार्किक (rational) हो रहे हैं. लेकिन ये बायस (bias) धीरे-धीरे और बिल्कुल predictable तरीके से आपके फैसलों में घुस जाता है. आखिर क्यों होता है ऐसा?
चुनिंदा पढ़ाई (Selective reading): आप सिर्फ वही चीज़ें पढ़ते या देखते हैं जो आपके फैसले को सही साबित करें. जो बातें इस पर सवाल उठाती हैं वो आपको अजीब लगती हैं, तो आप उन्हें अनदेखा कर देते हैं.
इको चैंबर इफेक्ट (Echo chamber effect): आप वही ब्लॉग पढ़ते हैं, वही वीडियो देखते हैं, उन्ही लोगों की बातें सुनते हैं जो आपकी तरह सोचते हैं. आपको लगता है जैसे आप रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन असल में बस आपके विश्वास को कन्फ़र्मेशन मिल रहा होता है.
अतिआत्मविश्वास (Overconfidence): लगातार अच्छी खबरें और पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने पर आपको लगता है कि आपने कुछ नया खोज लिया है. डेटा फिर से चेक करना भी जरूरी नहीं लगता क्योंकि सब साफ लग रहा होता है.
विपरीत राय को नजरअंदाज करना (Ignoring contrarian voices): जब कोई खर्च ज्यादा होने, जोखिम कम कवर होने, या रणनीति बदलने जैसी बातें उठाता है तो आप किसी बहाने से इसे खारिज कर देते हैं. और खुद से कहते हैं, “ये लोग पूरा मामला नहीं समझते.”
“क्या मैं गलत हो सकता हूँ?” यह सवाल नहीं करना (No “what if I’m wrong” test): आप कभी रुककर यह आसान लेकिन सबसे पावरफुल सवाल नहीं पूछते — क्या यह फैसला गलत हो सकता है?
यही confirmation bias है. ये नहीं देखता कि आप कितना पढ़े-लिखे या समझदार हैं. बस इंतज़ार करता है कि आप सच की बजाय आराम और अपनी सुविधा चुन लें.
क्यों भारतीय निवेशक इस जाल में आसानी से फंस जाते हैं
भारत में म्यूचुअल फंड मार्केट कहानियों पर चलता है. फंड कंपनियां जानती हैं कि निवेशक स्प्रेडशीट से ज्यादा कहानियों पर ध्यान देते हैं. इसलिए नए फंड अक्सर धमाकेदार कैंपेन और catchy नामों के साथ लॉन्च होते हैं, जैसे India Growth Fund, Tech Leaders Fund या Future Stars Portfolio.
आप फंड की कहानी खरीदते हैं, उसका स्ट्रक्चर नहीं
लेकिन सच यही है कि भारत का फंड मार्केट अब काफी matured है, मुकाबला तगड़ा है, और लगातार बढ़िया रिटर्न पाना मुश्किल है. SPIVA India 2025 का डेटा इसे साफ दिखाता है- ज्यादातर एक्टिव फंड अपने बेंचमार्क को फीस निकालने के बाद भी उससे बीट नहीं कर पाते.
फिर आती है फीस की दिक्कत. भारत के इक्विटी म्यूचुअल फंड अब भी विकसित देशों की तुलना में ज्यादा खर्च (expense) लेते हैं. कई छोटे निवेशक यह भी नहीं समझ पाते कि 1% ज्यादा फीस सिर्फ 10 साल में कितनी बड़ी रकम काट सकती है.
मान लो, आपका फंड सालाना फीस से पहले 12% कमाता है और आप 2% pay करते हैं, जबकि कोई और सिर्फ 1% pay करता है. 10 साल में यह फर्क 10 लाख के निवेश पर 1.5 लाख रुपये से ज्यादा हो सकता है. फिर भी, ज्यादातर लोग इस चीज़ को चेक किए बिना ही पैसा लगा देते हैं.
सच्चाई है: आप अपना homework नहीं करते
आप सिर्फ मार्केटिंग ब्रॉशर पढ़ते हैं, फंड के असली डेटा यानी fact sheet नहीं. आप risk disclosures से ज्यादा YouTube reviews पर भरोसा करते हैं. आप सिर्फ एक साल की रिटर्न देखते हैं, लेकिन पाँच साल की consistency चेक करना भूल जाते हैं.
अगला फंड खरीदने से पहले अपने आप से ये सवाल जरूर पूछे:
क्या तुमने फंड की तीन साल की रिटर्न को उसके बेंचमार्क से compare किया है?
क्या तुम्हें पता है कि इसका expense ratio दूसरों की तुलना में कितना है?
क्या तुम समझते हो कि फंड के पोर्टफोलियो में कौन से sectors ज्यादा हैं?
क्या तुमने देखा कि फंड ने पिछले मार्केट correction में कैसा perform किया था?
क्या तुम track कर रहे हो कि वही फंड मैनेजर अभी भी इसे चला रहा है?
अगर इन में से किसी का भी जवाब ना है, तो आप guessing कर रहे हो, investing नहीं.
Confirmation Trap से बाहर कैसे निकला जाए
आप bias को पूरी तरह नहीं हटा सकते, लेकिन इसके नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं. शुरू करें इन आसान steps से:
1. खुद को आलोचना पढ़ने के लिए मजबूर करो
जब भी आप किसी फंड की तारीफ वाला review पढ़ें, उसके साथ कोई ऐसा review भी ढूंढो जो उस फंड पर सवाल उठाता हो. दोनों पढ़ो. सच वही होता है जिसे आप आम तौर पर नजरअंदाज करते हैं.
2. सही तरीके से performance compare करो
हमेशा देखो कि रिटर्न में से खर्च निकालने के बाद असली फायदा कितना है, और इसे सही benchmark के साथ compare करो. अगर आपके फंड की पाँच साल की रिटर्न 14% है और benchmark ने 15% कमाया, तो आप हार गए चाहे brochure कुछ भी कहे.
3. दूसरे फंड्स का रुझान देखें
Credible websites जैसे Screener या TijoriFinance पर देखें कि समान फंड्स ने कैसे perform किया. कभी-कभी जो फंड “top performer” लगता है, fees adjust करने के बाद बस average ही निकलता है.
4. फंड मैनेजर की consistency चेक करें
फंड मैनेजर बदल जाने से strategy, risk और return का profile बदल सकता है. कई निवेशक इसे नजरअंदाज कर देते हैं, और फर्क कुछ महीने बाद दिखाई देता है.
अपनी personal rulebook बनाएं
एक investment checklist तैयार करें, कुछ इस तरह से:
Expense Ratio: 1% से कम
पाँच साल में Peer Ranking: टॉप क्वार्टाइल में
Manager का अनुभव: 5 साल से ज्यादा
Single Stock Weight: कोई भी स्टॉक 7% से ज्यादा नहीं
अगर कोई फंड इन criteria को पूरा नहीं करता, तो आगे बढ़ो. यह आपका personal फैसला है. अपनी rulebook ऐसे बनाओ जो आपके goals और risk tolerance के अनुसार फिट बैठे.
- इसे हर साल चेक करो
निवेश करने के बाद आपका काम खत्म नहीं होता. हर साल देखें कि फंड अभी भी आपके original criteria पर खरा उतरता है या नहीं. अगर आप फिर से negative reviews को नजरअंदाज करने लगो, तो समझो आपका bias फिर से सामने आ गया है.
आपके Comfort Zone की असली कीमत
जब आप अपनी सोच को challenge करने से डरते हो, तो मार्केट यह काम आपके लिए कर देता है. और मार्केट यह काम कभी धीरे-धीरे नहीं करता.
यह इसलिए नहीं होता कि आप फंड चुनते समय unlucky थे. असली नुकसान इसलिए होता है क्योंकि आप सिर्फ आरामदेह कहानियों को पकड़ते हो और असहज सच को नजरअंदाज कर देते हो. आप reassurance चाहते हो, reality नहीं.
अगर आप सोचते हो कि आपका फंड खास है क्योंकि उसने पिछले साल पैसा कमाया, तो याद रखो: पिछले साल का मार्केट, हालात और leadership शायद फिर कभी लौटें ही नहीं. अच्छा फंड मैनेजर adapt करता है, लेकिन biased investor नहीं करता.
2025 का भारतीय मार्केट पहले जैसा नहीं है
2018 या 2021 जैसा हालात अब नहीं हैं. Sector rotations, foreign flows, और domestic liquidity cycles हर समय गेम बदलते रहते हैं.
अगर आप अपने विश्वासों पर सवाल नहीं उठा रहे, तो आप उन लोगों से पीछे रह जाते हो जो ऐसा कर रहे हैं.
सच्चाई को नजरअंदाज करना
देखो 2023 और 2024 में कितने निवेशक small-cap funds की तरफ भागे थे, जब रिटर्न बढ़िया थे. headlines बहुत शानदार लग रही थीं. लोग भूल गए कि valuations पहले से ही ज्यादा थे, और फंड कंपनियां धीरे-धीरे inflows को रोकने लगी थीं.
2025 के बीच तक, जब small-caps गिर गए, तो वही निवेशक double-digit losses देखने लगे, जबकि benchmark बराबर रहा. जानकारी हमेशा मौजूद थी. Analysts ने overheated valuations के बारे में चेताया. फंड कंपनियों ने भी सावधानी के नोट दिए लेकिन confirmation bias ने इन चेतावनियों की आवाज़ दबा दी.
आपने शायद खुद से कहा, “ये फिर ठीक हो जाएगा.” लेकिन ये कोई प्लान नहीं है, ये बस इनकार है.
सच्चाई यह है अगर आप सिर्फ वही पढ़ते हैं जो आपकी सोच को सही साबित करे, तो आप खुद अपने सबसे बड़े financial risk बन जाते हैं.
जब कोई फंड बहुत अच्छा लगता है और सवाल पूछने का मन नहीं करता है, तभी आपको सबसे ज्यादा सवाल करने चाहिए. जब कोई दोस्त कहे, “सभी लोग इसे खरीद रहे हैं,” तभी पहले benchmark चेक करें. जब आपको अपने “smart” pick पर गर्व हो, तो रुकें और खुद से पूछें, “मैं क्या मिस कर रहा हूँ?”
याद रखें मार्केट में आपको सुरक्षित रखने वाली आपकी होशियारी नहीं है, बल्कि ये है कि आप सही टाइम पर खुद पर सवाल उठा सकते हैं या नहीं.
डिसक्लेमर
नोट : इस लेख में फंड रिपोर्ट्स, इंडेक्स इतिहास और सार्वजनिक सूचनाओं का उपयोग किया गया है. विश्लेषण और उदाहरणों के लिए हमने अपनी मान्यताओं का इस्तेमाल किया है.
इस लेख का उद्देश्य निवेश के बारे में जानकारी, डेटा पॉइंट्स और विचार साझा करना है. यह निवेश सलाह नहीं है. यदि आप किसी निवेश विचार पर कदम उठाना चाहते हैं, तो किसी योग्य सलाहकार से सलाह लेना अनिवार्य है. यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है. व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं और उनके वर्तमान या पूर्व नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
चिन्मय पी कुमार एक वित्त-केंद्रित कंटेंट प्रोफेशनल हैं, जिनकी विशेषज्ञता निवेशक संवाद और स्टोरीटेलिंग में है. वह जटिल निवेश विषयों को सरल भाषा में समझाने में माहिर हैं — चाहे वह इक्विटी रिसर्च, पर्सनल फाइनेंस, या संपत्ति प्रबंधन हो. उनका काम पहली बार निवेश करने वालों से लेकर अनुभवी निवेशकों तक सभी के लिए जानकारी को आसान और समझने योग्य बनाना है.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
To read this article in English, click here.
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