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NFO Explained : म्यूचुअल फंड एनएफओ में निवेश से पहले इन 9 बातों का रखें ध्यान, न्यू फंड ऑफर और IPO में क्या है अंतर?

Mutual Fund NFO का सही मतलब क्या है और यह कंपनियों के IPO से कितना अलग है? किसी न्यू फंड ऑफर में निवेश से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?

Mutual Fund NFO का सही मतलब क्या है और यह कंपनियों के IPO से कितना अलग है? किसी न्यू फंड ऑफर में निवेश से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?

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Viplav Rahi
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NFO में निवेश करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? IPO से कितना अलग है न्यू फंड ऑफर? (Image : Pixabay)

NFO or New Fund Offer Explained : जब भी म्यूचुअल फंड की बात होती है, तो एक शब्द जो अक्सर सुनने में आता है, वह है "एनएफओ" यानी न्यू फंड ऑफर. लेकिन एनएफओ का असल मतलब क्या होता है और इसमें निवेश करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? किसी कंपनी के IPO से कितना अलग है म्यूचुअल फंड का NFO, आइए जानते हैं इन तमाम सवालों के जवाब.

क्या है NFO का मतलब?

जब कोई म्यूचुअल फंड कंपनी (AMC) अपना नया फंड लॉन्च करती है, तो निवेशकों को उसमें 10 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से निवेश का मौका दिया जाता है. इसे ही न्यू फंड ऑफर या NFO कहते हैं. कंपनियां एनएफओ के जरिये पूंजी जुटाने के बाद उसे अपने निवेश की रणनीति के अनुसार बाजार में लगाती हैं. एनएफओ का सब्सक्रिप्शन खत्म होने के बाद भी निवेशक उस फंड की यूनिट्स को उस वक्त की मौजूदा एनएवी (Net Asset Value) के हिसाब से खरीदकर निवेश कर सकते हैं.

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IPO और NFO में अंतर

एनएफओ की तुलना अक्सर IPO (Initial Public Offering) से की जाती है, क्योंकि दोनों में ही शुरुआती निवेश का मौका मिलता है. लेकिन एनएफओ और आईपीओ में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं. 

  • आईपीओ में किसी कंपनी के इक्विटी शेयर की इश्यू प्राइस उसके फंडामेंटल्स, यानी बिक्री, मुनाफे, मार्केट में उसकी स्थिति और भविष्य की संभावनाओ जैसी बातों के आधार पर तय की जाती है. इसमें कंपनी के शेयर की डिमांड का भी बड़ा रोल होता है.

  • शेयर के इश्यू प्राइस को कंपनी के कारोबार के कुल मौजूदा वैल्यूएशन से भी जोड़ा जाता है.

  • आईपीओ में जारी किए जाने वाले एक शेयर की फेस वैल्यू भले ही 10 रुपये हो, उसकी इश्यू प्राइस आमतौर पर इससे काफी अधिक होती है.

  • एनएफओ में एक म्यूचुअल फंड यूनिट की इश्यू प्राइस 10 रुपये पर फिक्स रहती है. 

  • एनएफओ में म्यूचुअल फंड यूनिट की कीमत का उस म्यूचुअल फंड हाउस या स्कीम लाने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के पिछले कारोबार के वैल्यूएशन से कोई लेना-देना नहीं होता. 

  • एनएफओ के बाद म्यूचुअल फंड यूनिट की कीमत उसकी नेट एसेट वैल्यू यानी NAV के आधार पर तय होती है. यह कीमत उस फंड के जरिये किए गए निवेश की ताजा वैल्यू से जुड़ी होती है. 

  • आईपीओ के बाद बाजार में कंपनी के शेयर की कीमत उसकी डिमांड-सप्लाई, कंपनी के मौजूदा प्रदर्शन और भविष्य की संभावनाओं और मार्केट सेंटिमेंट के मिलेजुले असर से तय होती है.

  • आईपीओ के जरिये कंपनी के शेयर की पब्लिक लिस्टिंग होती है. शेयर खरीदने वाले निवेशक, उस कंपनी के शेयरहोल्डर बन जाते हैं. 

  • एनएफओ का मकसद नया फंड लॉन्च करना है, जिसे अलग-अलग कंपनियों के शेयरों, डेट इंस्ट्रूमेंट्स या पहले से घोषित किसी और एसेट क्लास में निवेश किया जाता है.

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NFO में निवेश से पहले किन बातों का ध्यान रखें?

किसी भी न्यू फंड ऑफर में निवेश का फैसला करते समय किन बातों पर गौर करना जरूरी है, इसकी एक चेकलिस्ट आपकी सुविधा के लिए हम यहां दे रहे हैं. NFO में पैसे लगाने के बारे में कोई भी निर्णय करते समय अगर आप इन 9 बातों पर ध्यान देंगे तो सही फैसला लेने में मदद मिलेगी.

1. फंड का उद्देश्य और रणनीति  

NFO में निवेश से पहले यह समझना जरूरी है कि फंड का उद्देश्य क्या है. वह फंड किस सेक्टर, मार्केट कैप या थीम पर फोकस करेगा? यह जानने से आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि यह NFO आपके निवेश के लक्ष्य से मेल खाता है या नहीं. 

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2. फंड मैनेजर और एएमसी का अनुभव  

किसी भी फंड की सफलता में उसके फंड मैनेजर की भूमिका अहम होती है. खास तौर पर एक्टिव फंड्स में तो फंड मैनेजर का रोल और भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ऐसे फंड्स में निवेश के सारे फैसले उसकी समझदारी पर ही टिके होते हैं.  यही वजह है कि NFO में निवेश करने से पहले फंड मैनेजर और एएमसी के ट्रैक रिकॉर्ड और अनुभव की जांच करना जरूरी है. उनके पिछले फंड्स के प्रदर्शन के आधार पर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अब तक वे फंड्स को मैनेज करने में कितने सफल रहे हैं.

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3. खर्च और फीस  

NFO में पैसे लगाने से पहले एंट्री और एग्जिट लोड, मैनेजमेंट फीस जैसे तमाम खर्चों की जानकारी हासिल करना जरूरी है. इस जानकारी की तुलना बाजार में पहले से मौजूद फंड्स से करने पर आपको सही फैसला करने में मदद मिलेगी.

4. लॉक-इन पीरियड

कुछ NFO में लॉक-इन पीरियड हो सकता है, जिस दौरान आप अपनी यूनिट्स को रिडीम नहीं कर सकते यानी उन्हें बेचकर अपने पैसे नहीं निकाल सकते. लॉक इन पीरियड का असर आपके निवेश की लिक्विडिटी पर पड़ता है, इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी है.

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5. बाजार का माहौल

NFO लॉन्च करते समय बाजार का माहौल कैसा है, यह देखना भी जरूरी है. अगर बाजार में अस्थिरता का माहौल है या बाजार काफी ऊंचाई पर है, तो इसका असर फंड के शुरुआती प्रदर्शन पर पड़ सकता है.

6. मिलते-जुलते फंड्स का पिछला प्रदर्शन

हालांकि NFO का अपना कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं होता, लेकिन आप उसे लॉन्च करने वाले एएमसी या फंड मैनेजर के मिलते-जुलते फंड्स के पिछले प्रदर्शन को देख सकते हैं. इससे आपको नए फंड की संभावनाओं का अंदाजा मिल सकता है.

7. म्यूचुअल फंड स्कीम से जुड़े रिस्क फैक्टर

NFO के साथ जुड़े रिस्क फैक्टर को जानना भी जरूरी है. इसके लिए फंड के उद्देश्य और रणनीति को समझना चाहिए. अगर फंड हाई रिस्क वाला है, तो उसमें निवेस से पहले यह देख लें कि क्या आप उतना रिस्क उठा सकते हैं या नहीं.

8. लंबी अवधि में क्या है संभावना

NFO लॉन्च होने पर उसकी थीम, फंड हाउस के नाम या किसी एक बात से प्रभावित होकर जल्दबाजी में निवेश न करें. यह समझना बेहद जरूरी है कि उस NFO के जरिये लॉन्च किए जा रहे फंड में लंबी अवधि के दौरान बेहतर रिटर्न देने की क्षमता है या नहीं.

9. रेगुलेटरी हिस्ट्री

यह देखना भी जरूरी है कि तमाम नियम-कानूनों के पालन के मामले में NFO लाने वाले म्यूचुअल फंड हाउस या एएमसी का पिछला इतिहास कैसा है. NFO लाने वाली कंपनी फंड मैनेजमेंट के दौरान सभी नियमों और कामकाज के बेहतर तौर-तरीकों का पालन करती है या नहीं.

आगे भी मिलेगा फंड में निवेश का मौका

यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि NFO किसी भी ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश का इकलौता मौका नहीं होता. NFO का सब्सक्रिप्शन पीरियड बीत जाने के बाद भी आप उस फंड की यूनिट्स को कभी भी खरीद सकते हैं. इसलिए अगर आप किसी नए फंड की कंसेप्ट या थीम से बेहद प्रभावित हैं, तब भी उसके NFO में निवेश की हड़बड़ी दिखाने की बजाय अच्छी-तरह सोच समझकर फैसला कर सकते हैं. 

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