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Mutual Fund Investment: पोर्टफोलियो में जितने ज्यादा फंड, उतना बेहतर होगा डायवर्सिफिकेशन ? क्यों सही नहीं है निवेश की ये रणनीति

Mutual Fund Strategy: क्या आपके पोर्टफोलियो में ज्यादा से ज्यादा म्यूचुअल फंड होना अच्छी बात नहीं है? डायवर्सिफिकेशन के लिहाज से आपके पास कितने फंड होने चाहिए?

Mutual Fund Strategy: क्या आपके पोर्टफोलियो में ज्यादा से ज्यादा म्यूचुअल फंड होना अच्छी बात नहीं है? डायवर्सिफिकेशन के लिहाज से आपके पास कितने फंड होने चाहिए?

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Viplav Rahi
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Mutual Fund Portfolio Diversification : आपके पोर्टफोलियो में म्यूचुअल फंड्स की संख्या कितनी होनी चाहिए? (Image : Freepik)

How to Dirversify Mutual Fund Portfolio : आपके पास जितने ज्यादा अलग-अलग म्यूचुअल फंड होंगे, क्या डायवर्सिफिकेशन के लिहाज से उतना ही बेहतर नहीं रहेगा? आखिर पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन के लिए आपके पास कितने फंड होने चाहिए? ऐसे सवाल कई निवेशकों के मन में उठ सकते हैं. दरअसल, पोर्टफोलियो में ‘डायवर्सिफिकेशन’ यानी विविधता का होना, रिस्क-रिटर्न बैलेंस के लिहाज से काफी जरूरी माना जाता है. कई बार निवेशकों को लगता है कि उनके पोर्टफोलियो में जितने ज्यादा म्यूचुअल फंड्स होंगे, डायवर्सिफिकेशन उतना ही बेहतर होगा. लेकिन क्या ये सोच सही है? इस सवाल के जवाब को अच्छी तरह समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि डायवर्सिफिकेशन का सही मतलब और मकसद क्या है.

डायवर्सिफिकेशन का मतलब क्या है?

इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन (Diversification) का मतलब है अपनी पूंजी को एक ही जगह लगाने की जगह  अलग-अलग एसेट्स और एसेट क्लासेस में बांटकर निवेश करना. मिसाल के तौर पर शेयर बाजार (इक्विटी), बॉन्ड्स (डेट), रियल एस्टेट, कमोडिटीज और कैश. इस डायवर्सिफिकेशन का मकसद ये है कि अगर एक एसेट का प्रदर्शन खराब हो, तो दूसरे एसेट के अच्छे प्रदर्शन से घाटे की भरपाई हो सके. साथ ही कुल मिलाकर औसत रिटर्न बेहतर और स्टेबल बना रहे. लेकिन पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन का सही संतुलन होना भी जरूरी है. ओवरडायवर्सिफिकेशन से फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है. 

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म्यूचुअल फंड में पहले से होता है डायवर्सिफिकेशन

निवेशकों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि म्यूचुअल फंड अपने आप में एक डायवर्सिफाइड इन्वेस्टमेंट टूल होता है. खासकर फ्लेक्सी कैप, मल्टी कैप या मल्टी एसेट एलोकेशन फंड जैसे इक्विटी या हाइब्रिड म्यूचुअल फंड पहले से ही काफी डायवर्सिफाइड होते हैं. इसलिए अगर आप इनमें से किसी कैटेगरी में आने वाले इक्विटी या हाइब्रिड फंड में निवेश कर रहे हैं, तो वह पहले से ही आपको काफी डायवर्सिफिकेशन दे रहा होता है. लेकिन क्या सिर्फ एक ही फंड में निवेश करना काफी है? अगर आप मौजूदा निवेश किसी खास सेगमेंट या सेक्टर के इक्विटी फंड या इक्विटी इंडेक्स फंड में है, तो आप पोर्टफोलियो को बैलेंस करने के लिए उसमें कुछ और फंड्स जोड़ सकते हैं. लेकिन यह फैसला काफी सोच-समझकर लिया जाना चाहिए.

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क्या ज्यादा फंड्स से बढ़ता है डायवर्सिफिकेशन?

क्या  पोर्टफोलियो में जितने ज्यादा फंड होंगे, डायवर्सिफिकेशन उतना बढ़ नहीं जाएगा? इसका जवाब है – ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी. मिसाल के तौर पर अगर आपने 8-10 फंड्स ले लिए, लेकिन सभी देश के टॉप 100 लार्ज कैप स्टॉक्स (Large Cap Stocks) में ही निवेश कर रहे हैं, तो फंड्स की संख्या बढ़ने से आपको डायवर्सिफिकेशन का फायदा नहीं मिलेगा. क्योंकि सभी फंड्स का इनवेस्टमेंट मोटे तौर पर उन्हीं स्टॉक्स के दायरे में होगा. लेकिन अगर आप एक फ्लेक्सी कैप या मल्टी कैप फंड, एक बॉन्ड फंड और एक गोल्ड ईटीएफ में निवेश को बांटते हैं, तो आपको 3 फंड्स में ही बेहतर डायवर्सिफिकेशन का लाभ मिल सकता है, जिससे रिस्क को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है.

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फंड्स की संख्या बहुत अधिक रहने का नुकसान

अगर आप बहुत अधिक यानी 8-10 फंड्स में बांटकर निवेश करते हैं, तो इससे दो समस्याएं हो सकती हैं. एक तो रिटर्न का डाइल्यूशन होता है. यानी अगर कोई एक फंड बहुत अच्छा प्रदर्शन करता है, तो भी पूरे पोर्टफोलियो पर उसका पॉजिटिव असर कम नजर आता है. दूसरे, ज्यादा फंड्स होने पर उन्हें ट्रैक करना और पूरे पोर्टफोलियो को मैनेज करना ज्यादा मुश्किल हो सकता है. साथ ही एक्सपेंस रेशियो भी बढ़ सकता है. इसकी बजाय सिर्फ 3-4 अलग-अलग स्ट्रैटेजी वाले फंड्स को मिलाकर एक अच्छा डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है. इससे रिटर्न की अनिश्चितता भी घटती है और लॉन्ग टर्म में रिस्क कंट्रोल में रहता है.

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सही डायवर्सिफिकेशन के लिए किन बातों का रखें ध्यान?

पोर्टफोलियो के डायवर्सिफिकेशन के लिए फंड्स को शामिल करते समय इन बातों को ध्यान में रखना जरूरी है : 

1. फंड एलोकेशन करते समय इक्विटी, डेट, गोल्ड जैसे अलग-अलग एसेट क्लास को शामिल करें.
2. सेक्टोरल और जियोग्राफिक डायवर्सिफिकेशन पर भी गौर करें. यानी अपने पोर्टफोलियो में ऐसे फंड्स को रखें, जिनका निवेश अलग-अलग सेक्टर्स के साथ ही घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मार्केट, दोनों को शामिल करता हो.
3. लागत और लिक्विडिटी पर भी ध्यान दें. ऐसे फंड्स को चुनें, जिन्हें आसानी से खरीदा-बेचा जा सकता हो और जिनका एक्सपेंस रेशियो भी कम हो. 

सही पोर्टफोलियो कैसे बनाएं?

अगर आप एक आम निवेशक हैं, तो आपको बहुत ज्यादा फंड्स की जरूरत नहीं. उदाहरण के लिए, आप एक डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड, एक बॉन्ड फंड और एक गोल्ड ईटीएफ को मिलाकर अपना पोर्टफोलियो तैयार कर सकते हैं. इससे न केवल आपका रिस्क कम होगा, बल्कि पोर्टफोलियो का मैनेजमेंट भी आसान रहेगा और निवेश की लागत भी काबू में रहेगी.

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स्मार्ट और संतुलित पोर्टफोलियो पर फोकस

सारी बातों का निचोड़ यही है कि सिर्फ म्यूचुअल फंड्स की संख्या बढ़ाने से हमेशा डायवर्सिफिकेशन नहीं बढ़ता. म्यूचुअल फंड अपने-आप में डायवर्सिफाइड होते हैं, इसलिए एक जैसे कंपोजिशन और रणनीति वाले कई फंड्स रखने से कोई फायदा नहीं होता, बल्कि ओवरडायवर्सिफिकेशन का रिस्क बढ़ जाता है. इसलिए बेहतर यही है कि आप अपने फाइनेंशियल गोल्स के हिसाब से थॉटफुली डिजाइन किया गया पोर्टफोलियो बनाएं जिसमें कुछ गिने-चुने लेकिन अलग-अलग एसेट क्लास वाले म्यूचुअल फंड शामिल हों. अधिकतर रिटेल निवेशकों के लिए सही ढंग से चुने हुए 3-4 अच्छे और एक-दूसरे को कंप्लीमेंट करने वाले फंड्स डायवर्सिफिकेशन के लिहाज से काफी होते हैं. ऐसा पोर्टफोलियो कम जोखिम में बेहतर रिटर्न हासिल करने में आपकी मदद करेगा.

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