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Mutual Fund Investing : म्यूचुअल फंड्स में निवेश से जुड़े रिस्क को सही रणनीति अपनाकर मैनेज किया जा सकता है. (AI Generated Image)
Mutual Fund Risk Management : जिंदगी की तरह निवेश की दुनिया भी उतार-चढ़ाव से भरी होती है. म्यूचुअल फंड्स भी इसके दायरे से बाहर नहीं हैं. इनमें कभी शानदार रिटर्न मिलते हैं तो कभी गिरावट का सामना भी करना पड़ सकता है. हालांकि अलग-अलग म्यूचुअल फंड्स निवेशकों की जोखिम सहने की क्षमता (Risk Appetite) के हिसाब से बनाए जाते हैं, लेकिन इनमें कुछ न कुछ रिस्क हमेशा बना रहता है. इसका मतलब यह नहीं कि म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना हर हाल में खतरनाक है. अगर आप सही रणनीति अपनाएं, तो रिस्क को काफी हद तक कम कर सकते हैं. आइए जानते हैं वे 7 तरीके, जिनसे आप म्यूचुअल फंड्स में निवेश से जुड़े रिस्क को मैनेज कर सकते हैं.
1. पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन
निवेश की सबसे पहली और जरूरी ट्रिक है – डायवर्सिफिकेशन. यानी अपने पैसे को सिर्फ एक ही फंड या एक ही सेक्टर में न डालें. अगर आप लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप और डेट फंड्स में संतुलन बनाकर निवेश करेंगे तो आपका पोर्टफोलियो ज्यादा मजबूत बनेगा. ऐसा करने से अगर किसी एक फंड या सेक्टर का प्रदर्शन खराब भी होता है, तो बाकी निवेश आपको सहारा देंगे और नुकसान कम होगा.
2. लॉन्ग टर्म के लिए करें निवेश
म्यूचुअल फंड्स, खासकर मिड कैप और स्मॉल कैप फंड्स, शॉर्ट टर्म यानी कम अवधि के दौरान काफी वॉलेटाइल रहते हैं. यानी इनमें उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है. लेकिन अगर आप लंबी अवधि यानी कम से कम 5 से 7 साल के नजरिए से निवेश करते हैं, तो रिस्क काफी कम हो जाता है. समय के साथ ऐसे फंड्स में ग्रोथ की संभावना ज्यादा होती है और शॉर्ट टर्म के उतार-चढ़ाव का असर घट जाता है.
3. SIP के जरिये निवेश करें
सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) म्यूचुअल फंड निवेश का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका माना जाता है. इसमें आप हर महीने छोटी-छोटी रकम लगाते हैं. इसका फायदा यह है कि मार्केट ऊपर हो या नीचे, आपका निवेश नियमित रूप से होता रहता है और लंबे समय में औसतन बेहतर रिटर्न मिलते हैं. SIP से मार्केट के उतार-चढ़ाव का रिस्क भी काफी हद तक बैलेंस हो जाता है.
4. पोर्टफोलियो की रेगुलर समीक्षा करें
निवेश करके भूल जाना सही रणनीति नहीं है. साल में कम से कम एक बार अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा जरूर करें. देखें कि आपके चुने हुए फंड्स कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं. अगर कोई फंड लगातार खराब रिजल्ट दे रहा है, तो उसे बदलने से हिचकिचाना नहीं चाहिए. इसी तरह समय-समय पर पोर्टफोलियो को रिबैलेंस करना भी जरूरी है ताकि आपका निवेश आपके फाइनेंशियल गोल्स और जोखिम सहने की क्षमता के हिसाब से बना रहे.
5. बैलेंस्ड फंड्स और फिक्स्ड इनकम के ऑप्शन
अगर आप जोखिम कम करना चाहते हैं, तो अपने पोर्टफोलियो में डेब्ट फंड्स या फिक्स्ड इनकम के ऑप्शन भी शामिल करें. इससे कुल मिलाकर आपके निवेश का रिस्क काफी हद तक कम हो जाएगा. बैलेंस्ड या हाइब्रिड फंड्स भी अच्छे विकल्प हो सकते हैं, क्योंकि इनमें इक्विटी और डेब्ट दोनों का बैलेंस होता है.
6. ओवरएक्सपोजर से बचना है समझदारी
कई बार निवेशक ज्यादा रिटर्न की चाह में स्मॉल कैप या मिड कैप फंड्स में ही सारा पैसा लगा देते हैं. यह बहुत बड़ा रिस्क है. बेहतर यही है कि ऐसे हाई-रिस्क फंड्स में अपने कुल पोर्टफोलियो का सिर्फ 10 से 20 फीसदी ही लगाएं. बाकी हिस्सा सुरक्षित और स्टेबल ऑप्शन्स में होना चाहिए ताकि आपका बैलेंस बना रहे.
7. खराब मार्केट में धैर्य बनाए रखें
स्टॉक मार्केट और म्यूचुअल फंड्स की दुनिया में गिरावट आना आम बात है. लेकिन ऐसे समय पर घबराकर बिकवाली करना अक्सर लंबे समय में नुकसानदेह साबित होता है. गिरावट के दौरान धैर्य बनाए रखना और सही समय का इंतजार करना ही समझदारी है. याद रखिए अच्छी म्यूचुअल फंड स्कीम में वक्त के साथ रिकवरी भी आती है और वे फिर से बेहतर रिटर्न देने लगते हैं.
म्यूचुअल फंड्स में निवेश पूरी तरह से रिस्क-फ्री नहीं है, लेकिन सही कदम उठाकर आप इनसे जुड़ी चुनौतियों को काफी हद तक कम कर सकते हैं. डाइवर्सिफिकेशन, निवेश के लिए लॉन्ग टर्म नजरिया रखना, SIP के जरिये निवेश और पोर्टफोलियो को समय-समय पर रिव्यू करने जैसी आदतें आपको बेहतर निवेशक बना सकती हैं. हमेशा अपने फाइनेंशियल गोल्स और जोखिम उठाने की क्षमता के हिसाब से ही रणनीति बनाएं. तभी म्यूचुअल फंड्स में निवेश का पूरा फायदा उठा पाएंगे.