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Rupee vs US Dollar : इकनॉमिक सर्वे 2024-25 के पेश होने से पहले भारतीय रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. Photograph: (File Photo : Reuters)
Rupee Hits Record Low : इकनॉमिक सर्वे 2024-25 के पेश होने से पहले शुक्रवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई इस कमजोरी से निवेशकों की चिंता बढ़ गई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और संभावित व्यापार प्रतिबंधों की आशंका को रुपये में गिरावट की प्रमुख वजह माना जा रहा है. इस बीच, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा हस्तक्षेप की संभावना जताई जा रही है, जिससे गिरावट को कुछ हद तक काबू में लाया किया जा सके.
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डॉलर इंडेक्स 108.2 पर पहुंचा
शुक्रवार को रुपया 86.65 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जो इस महीने का सबसे खराब स्तर रहा. इससे पहले, रुपया 86.6475 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छू चुका था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर इंडेक्स 108.2 तक पहुंच गया, जिससे अधिकांश एशियाई मुद्राएं कमजोर हुईं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा संभावित व्यापार नीतियों में बदलाव की अटकलों का असर भी भारतीय मुद्रा पर पड़ा है. भारतीय बैंकों ने बाजार में डॉलर की सप्लाई करके रुपये की गिरावट को कम करने का प्रयास किया. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक चार प्रमुख ट्रेडर्स ने पुष्टि की है कि यह दखल शायद RBI की पहल पर किया गया.
विदेशी निवेशकों की बिकवाली और रुपये पर असर
रुपये की कमजोरी के पीछे एक और प्रमुख कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) द्वारा लगातार बिकवाली किया जाना है. जनवरी के दौरान अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय स्टॉक और बॉन्ड मार्केट से करीब 9 बिलियन डॉलर की निकासी की है. इसके चलते रुपये पर दबाव बना हुआ है और यह अपने क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन कर रहा है.
RBI की संभावित रणनीति
भारतीय रिज़र्व बैंक के आगामी मौद्रिक नीति बैठक में ब्याज दरों में कटौती की संभावना जताई जा रही है. इस निर्णय से निवेश धारणा प्रभावित हो सकती है और रुपये पर और दबाव आ सकता है. इस बीच, RBI द्वारा शुक्रवार को 5 बिलियन डॉलर का 6-महीने का डॉलर-रुपया स्वैप ऑक्शन आयोजित किया गया. बाजार विश्लेषकों का मानना है कि इस स्वैप ऑक्शन में बैंकों और कॉरपोरेट्स की मजबूत भागीदारी देखने को मिल सकती है, जिससे रुपये की गिरावट को थामने में मदद मिलेगी.
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बजट 2025 और रुपये की संभावनाएं
भारतीय रुपये की दिशा तय करने में आगामी केंद्रीय बजट 2025 महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए जाने वाले इस बजट से विदेशी निवेश धारणा प्रभावित हो सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बजट में सरकारी खर्चों में वृद्धि होती है, तो इससे रुपये की आपूर्ति बढ़ सकती है और यह और कमजोर हो सकता है. वहीं, यदि नीतिगत सुधारों और रणनीतिक निवेश को बढ़ावा दिया जाता है, तो विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की वापसी हो सकती है, जिससे रुपये को मजबूती मिलेगी.
अंतरराष्ट्रीय और घरेलू आर्थिक इंडिकेटर्स का असर
डॉलर इंडेक्स में मजबूती और यूरोपियन सेंट्रल बैंक द्वारा ब्याज दर में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती ने अमेरिकी डॉलर को और बढ़ावा दिया है, जिससे रुपये पर और दबाव पड़ा है. कच्चे तेल की कीमतें भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ रही हैं, जो भारत के व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं.
भारतीय शेयर बाजार पर भी रुपये की गिरावट का असर देखने को मिल रहा है. BSE सेंसेक्स और निफ्टी में हल्की बढ़त देखी गई, लेकिन विदेशी निवेशकों द्वारा की गई 4,582.95 करोड़ रुपये की बिकवाली बाजार की अस्थिरता को दर्शाती है.
क्या है विशेषज्ञों की राय
CR फॉरेक्स एडवाइजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित पाबरी का कहना है कि, "सरकार के बजट से रुपये की दिशा तय होगी. अधिक सरकारी खर्च से रुपये में गिरावट आ सकती है, जबकि मजबूत नीतिगत सुधारों से निवेश बढ़ेगा और रुपये को समर्थन मिलेगा." LKP सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट व रिसर्च एनालिस्ट, जतिन त्रिवेदी ने कहा कि, "बजट की घोषणा से पहले एफआईआई की बिकवाली जारी है, जिससे रुपये पर दबाव बना रहेगा. रुपये की ट्रेडिंग रेंज 86.25 से 86.80 के बीच रहने की संभावना है."
कुल मिलाकर भारतीय रुपये की स्थिति फिलहाल कमजोर बनी हुई है, और आने वाले दिनों में यह अस्थिर रह सकता है. अमेरिकी व्यापार नीतियों, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की स्थिति, विदेशी निवेश प्रवाह और केंद्रीय बजट 2025 के परिणाम रुपये की चाल तय करेंगे. RBI की ओर से हस्तक्षेप जारी रहने की संभावना है, लेकिन व्यापक आर्थिक कारकों को देखते हुए रुपये की मजबूती के लिए ठोस नीतिगत उपायों की आवश्यकता होगी.