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हर वो SIP किस्त जो आप छोड़ते हैं, वही पैसा होता है जिसकी आपको सबसे ज्यादा जरूरत पड़ने पर सबसे ज्यादा कमी महसूस होगी. Photograph: (AI Image)
By Chinmayee P Kumar
इस महीने अपनी SIP यानी सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान की एक किस्त छोड़ने का सोच रहे हैं? हो सकता है आपको लग रहा हो कि इसमें कोई खास नुकसान नहीं है. आखिर सिर्फ एक महीने की ही तो बात है, क्या फर्क पड़ जाएगा? क्यों न इस महीने थोड़ा रिलैक्स कर लिया जाए - बाहर एक डिनर कर लिया जाए, एक एक्स्ट्रा मूवी देख ली जाए या किसी और खर्च को पहले निपटा लिया जाए? लेकिन यहीं सबसे बड़ी गलती हो जाती है. दरअसल, यही एक छोड़ी गई SIP किस्त आपके पूरे साल का सबसे महंगा फैसला बन सकती है, वो भी चुपचाप, बिना आपको तुरंत एहसास कराए.
अगर आपको लग रहा है कि ये बात थोड़ी बढ़ा-चढ़ाकर कही जा रही है, तो आप अकेले नहीं हैं. ज़्यादातर लोगों को यही लगता है कि छोटी-छोटी फाइनेंशियल चूक कोई फर्क नहीं डालती. लेकिन सच्चाई ये है कि निवेश की दुनिया में छोटी चूकें भी भविष्य की बड़ी कामयाबी को रोक सकती हैं. हर SIP किस्त एक ईंट की तरह होती है जो आपके भविष्य के फाइनेंशियल घर की नींव रखती है. जब आप इनमें से कोई एक ईंट निकाल देते हैं, चाहे मजबूरी में या "बस इस बार" सोचकर, तो पूरी इमारत हिल सकती है.
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असल नुकसान ये नहीं है कि आपने 5,000 या 10,000 रुपये इस महीने खर्च कर दिए. नुकसान ये है कि आपने उस पैसे को बढ़ने का, आपके लिए दौलत बनाने का मौका खो दिया. और जो एक छोटी सी किस्त आप आज छोड़ते हैं, उसकी भरपाई के लिए आपको बाद में बड़ी रकम या ज्यादा वक्त देना पड़ सकता है, शायद तब, जब आपके पास वो विकल्प न हो.
SIP की असली ताकत किसी हाई रिटर्न में नहीं, बल्कि अनुशासन, आदत और समय की ताकत में होती है. जब आप इन्वेस्टमेंट की लय तोड़ते हैं, तो ये तीनों चीजें धीरे-धीरे आपके हाथ से फिसलने लगती हैं.
अगर आपने कभी सोचा है कि बस इस बार SIP स्किप कर लें, तो अब आपको सच जानना चाहिए. आगे हम बात करेंगे उन पांच छुपे हुए नुकसानों की जो आपकी भविष्य की दौलत को अंदर ही अंदर खोखला कर सकते हैं और यह भी समझेंगे कि कैसे अभी से सही कदम उठाकर आप अपने फाइनेंशियल सफर को दोबारा मजबूती से ट्रैक पर ला सकते हैं.
सिर्फ 5,000 रुपये नहीं, आप स्किप करके गंवा रहे हैं 5 लाख से ज्यादा
अगर आप कभी 5,000 रुपये की SIP एक-दो बार नहीं भरते तो लगता है कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जरा ठहरिए और गणित देखिए. मान लीजिए कोई व्यक्ति हर महीने 5,000 रुपये की SIP करता है और लगातार 20 साल तक ऐसा करता है. अगर उसे सालाना 12 फीसदी का औसत रिटर्न मिलता है, तो उसका कुल फंड करीब 49.5 लाख रुपये बनता है. लेकिन अगर उसने सिर्फ एक साल यानी 60,000 रुपये की SIP नहीं की, तो उसका फाइनल अमाउंट 6.1 लाख रुपये तक कम हो जाता है.
यानि नुकसान सिर्फ 60,000 रुपये का नहीं बल्कि 6.5 लाख रुपये कमाने का मौका हाथ से निकल गया. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कंपाउंडिंग यानी ब्याज पर ब्याज की ताकत तब सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है जब आप निवेश में रुकावट डालते हैं. हर एक मिस की गई SIP का मतलब होता है कि वह पैसा समय के साथ आगे बढ़ने और बढ़ने के मौके से वंचित रह गया.
जो 5,000 रुपये आज बचाने जैसा एक छोटा सा फैसला लगता है, वही आगे चलकर रिटायरमेंट की प्लानिंग, बच्चों की पढ़ाई या किसी इमरजेंसी में बड़ा अफसोस बन सकता है.
अब बात करते हैं उस प्रवृत्ति की जो इन दिनों और भी तेजी से दिख रही है. SIP स्टॉपेज रेशियो यानी जितनी SIP शुरू होती हैं उनके मुकाबले कितनी बंद की जाती हैं, अप्रैल 2025 में रिकॉर्ड 297.74 फीसदी तक पहुंच गया. मतलब, जितनी 100 नई SIP शुरू हुईं, उससे करीब तीन गुना ज़्यादा SIP बंद कर दी गईं. ये आंकड़ा अपने आप में एक चेतावनी है.
SIP स्टॉपेज रेशियो का यह उछाल आंशिक रूप से इसलिए भी हुआ क्योंकि म्यूचुअल फंड कंपनियों और रजिस्ट्रार एजेंसियों ने पुराने निष्क्रिय और महीनों से बंद पड़ी SIP फोलियोज़ की सफाई की. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि बहुत से निवेशक आदत बनते-बनते बीच में ही SIP छोड़ रहे हैं और अक्सर यह अस्थायी ब्रेक धीरे-धीरे स्थायी बन जाता है.
मई 2025 में यह स्टॉपेज रेशियो घटकर 72.12 फीसदी पर आया, जो थोड़ा बेहतर है लेकिन अब भी खतरे की घंटी है. उस महीने SIP इनफ्लो रिकॉर्ड 26,864 करोड़ रुपये पहुंच गया, लेकिन इसके बावजूद हर चार में से तीन SIP फोलियो बंद हो रहे थे.
यह सिर्फ एक संख्या नहीं है बल्कि एक आईना है जो हमें दिखाता है कि जहां बाजार ऊपर जा रहा है, वहां निवेशकों का अनुशासन नीचे गिर रहा है. और जो लोग इस अनुशासन से हटकर SIP बीच में छोड़ रहे हैं, उन्हें इसका असली नुकसान कई साल बाद तब दिखेगा जब वे अपने तय किए हुए वित्तीय लक्ष्यों से काफी पीछे रह जाएंगे.
तो अगली बार जब आप SIP छोड़ने का सोचें, तो याद रखिए कि आप सिर्फ 5,000 रुपये नहीं छोड़ रहे, आप शायद 5 लाख रुपये या उससे भी ज़्यादा का भविष्य गंवा रहे हैं.
गिरावट से डरे तो फायदे का मौका भी खो बैठेंगे
जब शेयर बाजार गिरता है, तो ज़्यादातर लोग घबरा जाते हैं, लेकिन SIP करने वालों के लिए यही गिरावट एक छुपा हुआ मौका होती है. जब बाजार नीचे आता है, तो आपकी SIP उसी पैसे से ज़्यादा यूनिट्स खरीदती है क्योंकि प्राइस कम होता है. इससे आपके निवेश की औसत लागत घट जाती है और लंबे समय में रिटर्न बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है. इसे ऐसे समझिए जैसे वही अच्छी चीज़ आपको छूट पर मिल रही हो.
लेकिन ज़्यादातर लोग इसका ठीक उल्टा करते हैं. बाजार में गिरावट आते ही SIP बंद कर देते हैं, ये सोचकर कि वे नुकसान से बच रहे हैं. जबकि हकीकत ये है कि ऐसा करके वे भविष्य की कमाई के दरवाज़े खुद ही बंद कर लेते हैं. सोचिए अगर बाजार 25% गिर जाए और आप तीन महीने के लिए अपनी SIP बंद कर दें, और उसके छह महीने बाद बाजार तेज़ी से रिकवर करने लगे, तो उस समय जब कीमतें अब भी कम हैं लेकिन धीरे-धीरे ऊपर जा रही हैं, निवेश का वो फेज़ सबसे बेहतरीन हो सकता था.
अगर आपने SIP जारी रखी होती, तो उस गिरावट के दौरान खरीदी गई सस्ती यूनिट्स की वैल्यू रिकवरी के दौरान तेजी से बढ़ती और आपको बड़ा फायदा होता. लेकिन आपने SIP रोक दी, तो वो सुनहरा मौका हाथ से चला गया और साथ ही कंपाउंडिंग का जादू भी मिस हो गया.
मार्केट क्रैश में SIP रोकना ऐसा ही है जैसे दुकान में भारी छूट लगी हो और आप खरीदारी करने की बजाय बाहर निकल जाएं.
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सपने इंतज़ार नहीं करते, लेकिन SIP छोड़ने से आपको करना पड़ेगा
आप निवेश सिर्फ इसलिए नहीं करते कि बस पैसा लगाया जाए, बल्कि इसलिए करते हैं ताकि ज़िंदगी में कुछ बड़ा हासिल कर सकें - जैसे जल्दी रिटायर होना, अपना घर खरीदना या बच्चों को एक बेहतरीन भविष्य देना. हर SIP किसी न किसी सपने से जुड़ी होती है और जब आप इसे स्किप करते हैं, तो आप सिर्फ एक ऐप नोटिफिकेशन को नजरअंदाज नहीं कर रहे होते, बल्कि अपने ही भविष्य से किया गया एक वादा तोड़ रहे होते हैं.
समस्या यहीं खत्म नहीं होती. उस एक छोड़ी गई किस्त की भरपाई करना बाद में आसान नहीं होता. या तो आपको हर महीने पहले से ज़्यादा पैसा लगाना पड़ेगा, जो शायद आपकी आमदनी या बजट में मुमकिन न हो, या फिर आपको अपने लक्ष्य को आगे टालना पड़ेगा, जो ज़िंदगी की जरूरतों और हालातों के चलते शायद हो ही न पाए.
मान लीजिए आपने आज 5,000 रुपये की SIP छोड़ दी, तो हो सकता है कि अगले पांच साल बाद उसी लक्ष्य को पाने के लिए आपको 15,000 रुपये हर महीने निवेश करना पड़े. और तब तक शायद बहुत देर हो चुकी हो.
आप रुक सकते हैं, लेकिन महंगाई नहीं
अगर आप निवेश नहीं कर रहे, तो आप एक ही जगह पर खड़े नहीं हैं - आप धीरे-धीरे पीछे जा रहे हैं. हर साल चीज़ों के दाम बढ़ते हैं, कभी धीरे और कभी तेज़, लेकिन रुकते नहीं हैं. जब आप अपनी SIP रोक देते हैं, तो आपके पैसों की ग्रोथ भी वहीं रुक जाती है, लेकिन आपके खर्च वैसे ही बढ़ते रहते हैं.
मान लीजिए आपने 5,000 रुपये की SIP एक साल के लिए बंद कर दी. आपको लगेगा कि नुकसान छोटा है. लेकिन अगर मंहगाई हर साल 6% की दर से बढ़ती रही, जैसा कि भारत में आम है, तो इसका असर आपकी भविष्य की खरीदने की ताकत पर साफ़ दिखेगा. जो 1 करोड़ रुपये आपने रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त समझा था, SIP रोकने के बाद वही रकम शायद सिर्फ ज़रूरी खर्चों के लिए ही काफी रहेगी. छुट्टियां, आराम या सम्मान से जीने जैसी चीज़ें सपना बनकर रह जाएंगी.
महंगाई के दौर में SIP रोकना ऐसा है जैसे चलती ट्रेडमिल पर दौड़ते हुए अचानक कूद जाना - गिरना तय है.
अब सोचिए कि आपने सालों तक SIP की आदत बना रखी थी. आपने इसे ऑटोमैटिक कर दिया था, ताकि बिना सोचे-समझे हर महीने निवेश होता रहे. लेकिन इस महीने कोई ज़रूरी खर्च आ गया और आपने एक बार SIP रोक दी. शायद लगा कि एक बार का ब्रेक लेने से कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन यहीं से आदत टूटने लगती है. उस बचे हुए पैसे की आदत लग जाती है. फिर लगता है - "इस बार नहीं तो अगली बार कर लेंगे." और देखते ही देखते छह महीने बीत जाते हैं. आपकी निवेश करने की आदत कमजोर पड़ जाती है.
सच ये है कि निवेश सिर्फ रणनीति से नहीं चलता, ये आदत और अनुशासन से टिकता है. SIP का सबसे बड़ा फायदा ये नहीं कि वो कितना रिटर्न देती है, बल्कि ये है कि वो आपको हर महीने निवेश के खेल में बनाए रखती है. रिटर्न तो बाद में मिलते हैं, पहले जरूरी है कि आप मैदान में टिके रहें.
एक चूक से बिखर सकती है सालों की मेहनत
अगर आपके ऊपर पैसों की टेंशन है, तो SIP बंद मत कीजिए - बस रफ्तार कम कर दीजिए. SIP की रकम थोड़ी कम कर लीजिए, 500 रुपये की मामूली सी राशि भी आपकी निवेश की आदत को ज़िंदा रखती है. जब ज़िंदगी में मुश्किलें आएं, तो SIP रोकने की बजाय इमरजेंसी फंड का सहारा लीजिए. SIP को ऑटोमैटिक बनाए रखिए ताकि हर महीने निवेश बिना किसी मानसिक बोझ के होता रहे. जितना कम आप सोचेंगे, उतना ज़्यादा आप इस आदत को बनाए रख पाएंगे.
SIP छोड़ना कोई छोटी बात नहीं है, ये एक तरह की फाइनेंशियल इमरजेंसी होती है. आज भले ही आपको लगे कि बस एक बार की बात है, लेकिन यही छोटे-छोटे ब्रेक उस फाइनेंशियल ढांचे को धीरे-धीरे कमजोर कर देते हैं जो आपने अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए तैयार किया था.
जब आपके लक्ष्य पूरे नहीं होते, जब सपने अधूरे रह जाते हैं या किसी इमरजेंसी में सारी सेविंग खत्म हो जाती है, तो उसकी जड़ में अक्सर एक ही चीज़ होती है — निवेश में लगातार बने न रह पाना.
ये बात किसी को दोष देने के लिए नहीं, बल्कि एक साफ़ नज़रिए से सोचने के लिए है. हर बार जब आप अपनी SIP छोड़ते हैं, आप उस पैसे से खुद को दूर कर लेते हैं जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको आगे चलकर पड़ने वाली है.
इसलिए हर महीने मैदान में डटे रहिए - चाहे हालात जैसे भी हों. यही असली वित्तीय जीत होती है.
(Disclaimer : Chinmayee P Kumar is a finance-focused content professional with a sharp eye for investor communication and storytelling. She specializes in simplifying complex investment topics across equity research, personal finance, and wealth management for a diverse audience from first-time investors to seasoned market participants.
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