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Market Cap Explained : लार्ज कैप, मिड कैप या स्मॉल कैप? कहां करें निवेश, आपके लिए क्या है सही

Large Cap, Mid Cap vs Small Cap : निवेश सीधे स्टॉक्स में करना हो या म्यूचुअल फंड्स के जरिये, सही फैसला करने के लिए मार्केट के अलग-अलग सेगमेंट्स यानी लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप का मतलब और उनकी खूबियों को समझना जरूरी है.

Large Cap, Mid Cap vs Small Cap : निवेश सीधे स्टॉक्स में करना हो या म्यूचुअल फंड्स के जरिये, सही फैसला करने के लिए मार्केट के अलग-अलग सेगमेंट्स यानी लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप का मतलब और उनकी खूबियों को समझना जरूरी है.

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Viplav Rahi
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Large Cap, Mid Cap vs Small Cap : बाजार में निवेश से पहले उसके अलग-अलग सेगमेंट के बारे में जानना जरूरी है. (Image : Pixabay)

Investment Tips: Large Cap, Mid Cap and Small Cap Explained : शेयर बाजार में निवेश की बात होने पर लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल का जिक्र आ ही जाता है. फिर चाहे निवेश सीधे कंपनियों के स्टॉक्स में करना हो या फिर म्यूचुअल फंड्स के जरिये. म्यूचुअल फंड्स के एसेट एलोकेशन का डिटेल हो या निवेश की रणनीति के बारे में दी जा रही कोई सलाह, लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप की चर्चा के बिना बात पूरी नहीं होती. यही वजह है कि  मार्केट में निवेश करते समय इन शब्दों के सही मतलब को समझना बेहद जरूरी है. साथ ही यह भी पता होना चाहिए कि आपको इनमें से कहां निवेश करना चाहिए. 

मार्केट कैप का क्या है मतलब 

दरअसल, लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप में आने वाला ‘कैप’ शब्द ‘मार्केट कैपिटलाइजेशन’ का छोटा रूप है. मार्केट कैपिटलाइजेशन या मार्केट कैप किसी कंपनी के कुल शेयरों की ताजा मार्केट वैल्यू का जोड़ होता है और इसी के आधार पर कंपनियों को लार्ज, मिड और स्मॉल - तीन सेगमेंट्स में बांटा जाता है. सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) तमाम लिस्टेड कंपनियों को उनके मार्केट कैप के आधार पर क्लासिफाई करता है और हर छह महीने में ताजा मार्केट कैप के आधार पर उनका फिर से वर्गीकरण भी करता है. 

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लार्ज, मिड और स्मॉल कैप की परिभाषा

SEBI ने लार्ज, मिड और स्मॉल कैप की परिभाषा (Definition), बाजार में उनकी रैंकिंग के आधार पर तय की है. इस परिभाषा के मुताबिक :

  • लार्ज कैप की कैटेगरी में वो टॉप 100 कंपनियां आती हैं, जिनका मार्केट कैप बाजार में सबसे अधिक है.
  • मिड कैप सेगमेंट में उन कंपनियों को रखा जाता है, जो मार्केट कैप के आधार पर 101वीं से 250वीं रैंक तक आती हैं.
  • स्मॉल कैप की श्रेणी में उन कंपनियों को रखा जाता है, जो मार्केट कैप के आधार पर 251वीं रैंक और उसके बाद आती हैं.

इन तीनों मार्केट सेगमेंट में निवेश करने से पहले, यह जानना जरूरी है कि इनमें पैसे लगाने के क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं और आपके लिए निवेश का कौन सा ऑप्शन सबसे सही है.

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लार्ज कैप की विशेषताएं 

लार्ज कैप स्टॉक्स (Large Cap Stocks) यानी मार्केट कैप के हिसाब से टॉप 100 कंपनियों के शेयर्स को "ब्लू-चिप स्टॉक्स" भी कहा जाता है. ये कंपनियां अच्छी तरह से स्थापित होती हैं और इनमें जोखिम तुलनात्मक रूप से कम होता है. आमतौर पर इन कंपनियों का मार्केट में प्रदर्शन अच्छा रहता है और वे गिरावट के समय में भी कम प्रभावित होती हैं. आम तौर पर ये कंपनियां मुनाफा कमाने वाली होती हैं और रेगुलर डिविडेंड भी देती हैं, जिससे निवेशकों को लगातार आय प्राप्त होती है. हालांकि लार्ज कैप कंपनियों की ग्रोथ रेट उतनी तेज नहीं होती, जितनी मिड कैप या स्मॉल कैप कंपनियों की हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये कंपनियां पहले से ही अपने उद्योग या सेक्टर की अगली कतार में शामिल होती हैं.

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मिड कैप की खासियत 

मिड कैप स्टॉक्स (Mid Cap Stocks) उन कंपनियों के शेयरों को कहते हैं, जो मार्केट कैप के हिसाब से बाजार में न सबसे आगे होती हैं और न ही बिलकुल पीछे. SEBI की परिभाषा के अनुसार 101वीं से 250वीं रैंक तक आने वाली ये कंपनियों कंपनियां ग्रोथ के फेज में होती हैं और इसलिए इनका संभावित रिटर्न लार्ज कैप कंपनियों से अधिक होता है. लार्ज कैप की तुलना में हाई ग्रोथ पोटेंशियल मिड कैप की बड़ी खासियत है, लेकिन इनमें निवेश को ज्यादा रिस्की भी माना जाता है. हालांकि स्मॉल कैप के मुकाबले इनमें रिस्क कम होता है. इसीलिए मिड कैप को रिस्क और रिटर्न में संतुलन बनाने वाला निवेश भी माना जाता है.

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स्मॉल कैप की खूबी

स्मॉल कैप स्टॉक्स (Small Cap Stocks) उन कंपनियों के शेयरों को कहते हैं जो SEBI की परिभाषा के अनुसार मार्केट कैप के मामले में 251वीं रैंक या उसके बाद आती हैं. इन स्टॉक्स में निवेश को अधिक रिस्की माना जाता है, लेकिन इनमें हाई ग्रोथ की संभावना रहती है. आमतौर पर, स्मॉल कैप कंपनियों का मार्केट कैप 5000 करोड़ रुपये से कम होता है. इनमें लार्ज कैप और मिड कैप के मुकाबले ज्यादा तेज ग्रोथ की संभावना तो होती है, लेकिन साथ ही रिस्क भी उनसे अधिक होता है. तुलनात्मक रूप से छोटी कंपनियां होने की वजह से इनमें अस्थिरता अधिक होती है और बाजार में उतार-चढ़ाव का सबसे ज्यादा असर भी इन पर पड़ता है.

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आपको किस सेगमेंट में करना चाहिए निवेश ?

लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप स्टॉक्स में से कौन सा विकल्प आपके लिए सही है, इसका फैसला करने से पहले आपको अपने वित्तीय लक्ष्य, जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश की अवधि के बारे में सही ढंग से विचार करके समझ बनानी होगी. ऐसा करते समय आपको इन बातों पर गौर करना चाहिए:

  • लार्ज कैप स्टॉक्स कम अस्थिर होते हैं और निवेशकों के लिए सुरक्षित माने जाते हैं. इसलिए जो निवेशक ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते, उनके लिए लार्ज कैप स्टॉक्स बेहतर विकल्प हैं.
  • मिड कैप स्टॉक्स में जोखिम लार्ज कैप से थोड़ा अधिक होता है, लेकिन ये निवेशकों को संतुलित रिटर्न दे सकते हैं. इसलिए मिड कैप स्टॉक्स जोखिम और रिटर्न के संतुलन के लिए सही माने जाते हैं. 
  • स्मॉल कैप स्टॉक्स में निवेश करने से निवेशकों को सबसे ज्यादा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन इसके साथ ही सबसे ज्यादा रिस्क भी जुड़ा हुआ है. लिहाजा, स्मॉल कैप स्टॉक्स उन लोगों के सिए सही हैं, जो अधिक मुनाफा कमाने के लिए ज्यादा रिस्क लेने की क्षमता रखते हैं.
  • वैसे तो इक्विटी में निवेश हमेशा लंबी अवधि के लिए ही बेहतर माना जाता है, लेकिन मिड कैप और स्मॉल कैप में निवेश करने के लिए लॉन्ग टर्म व्यू होना और भी जरूरी है. क्योंकि शॉर्ट टर्म में इनमें होने वाले उतार-चढ़ाव निवेशकों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. 

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अलग-अलग मार्केट कैप में डायवर्सिफिकेशन का लाभ

अपने लिए निवेश की सही रणनीति बनाते समय आप अलग-अलग मार्केट कैप में डायवर्सिफिकेशन का रास्ता भी चुन सकते हैं. अलग-अलग मार्केट कैप वाले स्टॉक्स या फंड्स में निवेश करके आप अपने पोर्टफोलियो को स्टेबिलिटी और ग्रोथ दोनों के लिए तैयार कर सकते हैं. मिसाल के तौर पर जब अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो लार्ज कैप कंपनियां बेहतर प्रदर्शन करती हैं, क्योंकि वे अच्छी तरह से स्थापित होती हैं. लेकिन जब अर्थव्यवस्था में तेजी आती है, तो मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनियां अधिक लाभ कमा सकती हैं. ऐसे पोर्टफोलियो में शामिल लार्ज कैप स्टॉक्स आपको स्टेबल रिटर्न देंगे, जबकि मिड कैप और स्मॉल कैप स्टॉक्स समय के साथ बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. इक्विटी में निवेश सीधे स्टॉक्स में हो या म्यूचुअल फंड के जरिये, उसके साथ मार्केट रिस्क हमेशा जुड़ा रहता है. लिहाजा निवेश का फैसला करने से पहले किसी अच्छे फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लेना जरूरी है.

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