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Mutual Fund Investing: निवेश के लिए खोज रहे हैं सही म्यूचुअल फंड? ये 10 बातें भूले तो हो जाएगी गलती

Mutual Fund Investing: सही म्यूचुअल फंड का सेलेक्शन करने के लिए सिर्फ पिछला रिटर्न देखना काफी नहीं है. अगर इन 10 जरूरी बातों का ध्यान नहीं रखा तो फैसला लेने में गलती हो सकती है.

Mutual Fund Investing: सही म्यूचुअल फंड का सेलेक्शन करने के लिए सिर्फ पिछला रिटर्न देखना काफी नहीं है. अगर इन 10 जरूरी बातों का ध्यान नहीं रखा तो फैसला लेने में गलती हो सकती है.

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Viplav Rahi
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Mutual Fund Investing Tips : सही म्यूचुअल फंड स्कीम चुनने के लिए कुछ अहम बातों का ध्यान रखना जरूरी है. (Image : Pixabay)

Mutual Fund Investing: म्यूचुअल फंड निवेश का एक पॉपुलर और स्मार्ट तरीका बन चुका है. ये एक ऐसा ऑप्शन है, जिसमें छोटे निवेशकों को भी प्रोफेशनल मैनेजमेंट, डायवर्सिफिकेशन और फ्लेक्सिबिलिटी का फायदा मिल पाता है. लेकिन अपने लिए सही म्यूचुअल फंड का सेलेक्शन करते समय केवल पिछले रिटर्न को देखना ही काफी नहीं होता. सही फंड चुनने के लिए कुछ अहम बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि निवेश से बेहतर रिटर्न मिले और रिस्क भी कंट्रोल में रहे. अगर इन जरूरी बातों पर ध्यान नहीं दिया तो सही फंड चुनने में चूक हो सकती है और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

1. अपना फाइनेंशियल गोल तय करें

सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि आप निवेश क्यों कर रहे हैं—घर खरीदने के लिए, बच्चों की पढ़ाई के लिए, रिटायरमेंट प्लान करने के लिए या फिर एसेट्स बनाने के लिए. अगर आपका निवेश का लक्ष्य साफ होगा, तो आपके लिए यह तय करना भी आसान हो जाएगा कि आपके लिए किस तरह का फंड बेहतर रहेगा. मिसाल के तौर पर अगर आपका लक्ष्य लंबी अवधि का है, तो इक्विटी म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प हो सकते हैं, जबकि रिटायरमेंट में ज्यादा वक्त नहीं बचा है तो डेट फंड्स में निवेश करना सही हो सकता है.

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2. रिस्क लेने की क्षमता और इनवेस्टमेंट होराइजन

हर म्यूचुअल फंड का रिस्क लेवल अलग होता है. इक्विटी फंड ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले होते हैं, जबकि डेट या हाइब्रिड फंड ज्यादा स्टेबल रिटर्न देते हैं. आपकी रिस्क लेने की क्षमता आपकी उम्र, आमदनी और वित्तीय जिम्मेदारियों के हिसाब से भी तय होती है. साथ ही यह भी सोचें कि आपको पैसों की जरूरत कितने समय बाद पड़ेगी. अगर आपका लक्ष्य कुछ साल दूर है, तो इक्विटी में निवेश कर सकते हैं, लेकिन शॉर्ट टर्म के लिए डेट या लिक्विड फंड ज्यादा अच्छे माने जाते हैं.

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3. म्यूचुअल फंड की कैटेगरी को समझें

म्यूचुअल फंड्स की कई कैटेगरी हैं. मिसाल के तौर पर इक्विटी, डेट, हाइब्रिड, इंडेक्स, सेक्टोरल, ELSS वगैरह. हर फंड कैटेगरी की खूबियां अलग-अलग होती हैं. इसलिए यह जानना जरूरी है कि कौन-सा फंड किस तरह की जरूरत के लिए बना है. फंड एक्टिव है या पैसिव, यह जानना भी जरूरी है, क्योंकि इससे निवेश की रणनीति बदल सकती है.

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4. पिछला ट्रैक रिकॉर्ड जरूर चेक करें

म्यूचुअल फंड्स के पिछले रिटर्न भविष्य की गारंटी नहीं देते, लेकिन यह जरूर बताते हैं कि किसी फंड ने बाजार के अलग-अलग साइकल या हालात में कैसा प्रदर्शन किया है. किसी फंड के तीन, पांच और सात साल के औसत रिटर्न की तुलना स्कीम के बेंचमार्क इंडेक्स और कैटेगरी एवरेज से करने पर उसके प्रदर्शन का काफी-कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है.

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5. फंड का पोर्टफोलियो देखें

कोई फंड किन कंपनियों में निवेश कर रहा है, यह जानना भी जरूरी है. इससे पता चलता है कि फंड मैनेजर की इनवेस्टमेंट फिलॉसफी क्या है और यह आपके जोखिम प्रोफाइल से मेल खाती है या नहीं. मिसाल के तौर पर लार्ज कैप स्टॉक्स में ज्यादा निवेश करने वाले फंड, मिड कैप या स्मॉल कैप में ज्यादा इनवेस्ट करने वाली स्कीम के मुकाबले कम रिस्क वाले हो सकते हैं.

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6. फंड मैनेजर का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड

म्यूचुअल फंड्स में फंड मैनेजर की भूमिका बहुत अहम होती है. उनका अनुभव और ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि वे बाजार की चाल को कितना समझते हैं और निवेशकों के पैसों को संभालने में कितने माहिर हैं. यह भी देखें कि जिस फंड में आप निवेश करना चाहते हैं, उसके फंड मैनेजर कितने अनुभवी हैं.

7. निवेश के खर्च पर भी गौर करें

किसी फंड में निवेश करने पर कितना खर्च आता है, यह उसके एक्सपेंस रेशियो (Expense Ratio) से पता चलता है. अगर यह ज्यादा है तो आपकी कमाई पर असर पड़ सकता है. एक्टिव फंड्स में यह रेशियो कुछ अधिक हो सकता है, लेकिन पैसिव या इंडेक्स फंड्स में इसे कम ही रहना चाहिए. साथ ही डायरेक्ट प्लान का एक्सपेंस रेशियो भी उसी स्कीम के रेगुलर प्लान से कम होता है.

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8. एग्जिट लोड और लॉक-इन पीरियड को समझें

कुछ फंड्स में तय समय से पहले पैसे निकालने पर एग्जिट लोड लगता है. ELSS जैसे फंड में 3 साल का लॉक-इन पीरियड होता है. कुछ फंड्स में यह 5 साल भी हो सकता है. इसलिए निवेश से पहले यह जानना जरूरी है कि आप जरूर पड़ने पर अपने पैसे कितनी जल्दी निकाल सकते हैं और उसका खर्च कितना होगा.

9. टैक्स के असर को भी जानें

इक्विटी और डेट फंड्स पर टैक्स की दरें अलग-अलग होती हैं. लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म के टैक्स रेट भी अलग होते हैं. निवेश का फैसला करते समय टैक्स इम्पैक्ट को ध्यान में रखें ताकि नेट रिटर्न का सही कैलकुलेशन हो सके.

10. फंड हाउस का पुराना प्रदर्शन भी देखें

जिस एसेट मैनेजमेंट कंपनी से फंड जुड़ा है, उसकी क्रेडिबिलिटी और पिछले इतिहास को जानना भी जरूरी है. एक मजबूत और भरोसेमंद AMC आपके पैसों को बेहतर तरीके से मैनेज कर सकता है.

म्यूचुअल फंड में निवेश से अच्छा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन इसके लिए आंख बंद करके किसी भी फंड में पैसा न लगाएं. अपनी जरूरत, रिस्क लेने की क्षमता और इनवेस्टमेंट होराइजन को समझें और ऊपर बताए गए हर प्वाइंट को ध्यान में रखकर फैसला करें. अगर जरूरत हो तो किसी फाइनेंशियल एक्सपर्ट की सलाह भी लें.

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