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Mutual Funds vs Stocks: म्यूचुअल फंड्स में निवेश, सीधे शेयर में पैसे लगाने के मुकाबले क्यों बेहतर है? (Image : Pixabay)
Mutual Funds vs Stocks: Which is a better tax saving investment option:शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड में निवेश करना वेल्थ क्रिएशन का एक बेहतर तरीका हो सकता है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि इन दोनों में टैक्स सेविंग के लिहाज से कौन सा रास्ता बेहतर है? हाल ही में हुए टैक्स कानूनों में बदलाव ने म्यूचुअल फंड्स को कई निवेशकों के लिए पहले से बेहतर इनवेस्टमेंट ऑप्शन बना दिया है. आइए जानते हैं कि टैक्स सेविंग के नजरिये से म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना, सीधे शेयर में पैसे लगाने की तुलना में क्यों बेहतर साबित हो सकता है.
क्या हैं टैक्स के नियम
इस मसले को समझने के लिए सबसे पहले लॉन्ग और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के बारे में बात करते हैं. लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स, आप उन निवेशों से हुए मुनाफे पर चुकाते हैं, जिन्हें आपने लंबे समय तक रखा है. फिलहाल यह दर लिस्टेड शेयर्स और इक्विटी म्यूचुअल फंड, दोनों के लिए 12.5% है. वहीं, कम अवधि वाले निवेश से हुए मुनाफे पर 20% की दर से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स देना पड़ता है. हालांकि टैक्स की दर शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड, दोनों के लिए एक जैसी है, लेकिन इसे लागू करने से जुड़े नियमों का फर्क आपके कुल रिटर्न पर बड़ा असर डाल सकता है.
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स्टॉक ट्रेडिंग में छिपी टैक्स देनदारी
जब आप शेयर बाजार के जरिए कंपनियों के स्टॉक्स यानी शेयरों में सीधे-सीधे निवेश करते हैं, तो खरीदने और बेचने की जिम्मेदारी आपकी होती है. जैसे-जैसे कंपनियां बदलती हैं और बाजार में उतार-चढ़ाव आता है, आपको अपने पोर्टफोलियो को फायदेमंद बनाए रखने के लिए कुछ स्टॉक्स बेचने और खरीदने पड़ सकते हैं. जब भी आप लाभ के लिए स्टॉक बेचते हैं, तो उस पर आपकी टैक्स देनदारी बनती है. इसका मतलब है कि आपको उस मुनाफे पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) की स्थिति में 12.5% और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) की हालत में 20% टैक्स देना पड़ सकता है.
म्यूचुअल फंड्स है टैक्स-एफिशिएंट
ऐसी स्थिति में म्यूचुअल फंड्स की खासियत आपके काफी काम आ सकती है. म्यूचुअल फंड में प्रोफेशनल फंड मैनेजर शेयरों की खरीद-बिक्री का काम संभालते हैं. जब वे फंड की होल्डिंग्स में बदलाव करते हैं, तो बेहतर पोर्टफोलियो मैनेजमेंट का फायदा तो आपको मिलता है, लेकिन उस लेन-देन पर आपकी कोई टैक्स देनदारी नहीं बनती. आपको टैक्स केवल तब देना होता है जब आप म्यूचुअल फंड की अपनी यूनिट्स को रिडीम करते यानी बेचते हैं.
टैक्स की बचत और कंपाउंडिंग की ताकत
टैक्स देनदारी कम होने के कारण होने वाली बचत शुरुआत में छोटी लग सकती है, लेकिन कंपाउंडिंग की ताकत के कारण समय के साथ यह काफी बड़ी रकम में तब्दील हो सकती है. मान लीजिए कि आप इस साल 2 लाख रुपये का टैक्स बचाते हैं क्योंकि आपने व्यक्तिगत स्टॉक्स की बजाय म्यूचुअल फंड में निवेश किया. अगर वह पैसा निवेशित रहता है और पांच साल तक बढ़ता है, तो यह रकम 5 लाख या उससे अधिक हो सकती है. यह अतिरिक्त रकम आपको सिर्फ इसलिए मिल रही है, क्योंकि आपने एक अधिक टैक्स-एफिशिएंट निवेश विकल्प को चुना.
टैक्स की चिंता के बिना री-बैलेंसिंग
म्यूचुअल फंड्स का एक और फायदा यह है कि वे एसेट री-बैलेंसिंग में सहायक होते हैं. जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है या आपके वित्तीय लक्ष्य बदलते हैं, हो सकता है आप अपनी कुछ रकम शेयर जैसे अधिक जोखिम वाले निवेशों से निकालकर बॉन्ड्स जैसे सुरक्षित निवेशों में डालना चाहें. अगर आप सीधे शेयर्स में निवेश करते हैं, तो इसके लिए आपको फिर से खरीद-बिक्री करनी होगी, जिससे आपकी टैक्स देनदारी बनेगी. लेकिन अगर यही काम आप स्टॉक्स और बॉन्ड्स दोनों में निवेश करने वाले हाइब्रिड म्यूचुअल फंड्स के जरिए करते हैं, तो आप टैक्स देनदारी को कम रखते हुए भी अपने पोर्टफोलियो को री-बैलेंस कर सकते हैं.
NPS टियर 2 का इस्तेमाल
जो लोग नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) का हिस्सा हैं, उनके लिए एक अतिरिक्त लाभ है. एनपीएस टियर 2 अकाउंट में कम लागत वाले म्यूचुअल फंड्स होते हैं जिन्हें आप सामान्य फंड्स की तरह खरीद और बेच सकते हैं. सबसे बड़ा फायदा? आप टियर 2 अकाउंट के भीतर अलग-अलग स्कीम के बीच अपने निवेश को आवंटित कर कर सकते हैं, वो भी बिना कोई कैपिटल गेन टैक्स दिए. यह लचीलापन आपके निवेश को टैक्स-एफिशिएंट तरीके से मैनेज करने का एक बेहतर जरिया हो सकता है.
समझदारी से करें सही फंड्स का चुनाव
यह ध्यान रखना जरूरी है कि टैक्स-एफिशिएंसी के मामले में सभी म्यूचुअल फंड्स एक जैसे नहीं होते. डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स बड़े रेंज के स्टॉक्स में निवेश करते हैं. लिहाजा उनमें आमतौर पर कम बार ट्रेडिंग की आवश्यकता होती है. इसका मतलब है कि ऐसे फंड्स में टैक्स देनदारी कम होती है. दूसरी ओर, स्पेशलाइज्ड फंड्स, जो किसी खास सेक्टर या थीम पर फोकस्ड रहते हैं, उन्हें अधिक बार एडजस्टमेंट करना पड़ता है, जिससे टैक्स देनदारी बढ़ सकती है.
क्यों जरूरी है टैक्स-एफिशिएंसी
स्टॉक्स और म्यूचुअल फंड्स दोनों आपके निवेश रणनीति के महत्वपूर्ण हिस्से हो सकते हैं. लेकिन टैक्स-एफिशिएंसी के मामले में म्यूचुअल फंड्स अक्सर बेहतर साबित होते हैं. टैक्स कानूनों में हो रहे बदलावों की वजह से भी निवेशकों के लिए जरूरी हो गया है कि वे अपने निवेश से जुड़े फैसले करते समय टैक्स देनदारी पर उनके असर के बारे में भी सोच लें. अगर आप इस मसले को अच्छी तरह समझकर फैसला करेंगे, तो अपने मेहनत से कमाए गए पैसों को बचा पाएंगे और लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन का अपना लक्ष्य हासिल कर सकेंगे.